April 19, 2025
धर्म जगत

रामेश्वरम जहां से श्रीराम ने विशेष शिवपूजन किया

रामवन गमन यात्रा कर रहे खरगोन के दिलीप कर्पे की कलम से

नर्मदे हर, जय श्री राम
रामचरित मानस में नर्मदा जी का उल्लेख बाल कांड की इस चौपाई में है तो आज आरंभ यहीं से.
सिवप्रिय मेकल सैल सुता सी, सकल सिद्धि सुख संपति रासी॥
सदगुन सुरगन अंब अदिति सी, रघुबर भगति प्रेम परमिति सी॥
भावार्थ- यह रामकथा शिवजी को नर्मदाजी के समान प्यारी है, यह सब सिद्धियों की तथा सुख-सम्पत्ति की राशि है. सद्गुण रूपी देवताओं के उत्पन्न और पालन-पोषण करने के लिए माता अदिति के समान है. श्री रघुनाथजी की भक्ति और प्रेम की परम सीमा सी है.

आत्मीयजन,
प्रातः श्री रामेश्वरम के शिखर दर्शन करने के बाद श्री हरीश जोशी जी के मार्गदर्शन में संकल्प पूर्ण होने की प्रक्रिया को समझने के बाद वहीं से 26 किलोमीटर की दूरी पर धनुषकोटी नमक एक स्थान है यह स्थान भी रामायण में वर्णित है यही से सेतु का निर्माण भी हुआ था वहां पर हम पहुंचने के पूर्व को कोदंड राम मंदिर के भी दर्शन किए यह वह स्थल है जहां पर श्री राम ,लक्ष्मण जी,हनुमान जी ,सुग्रीवजी जामवंतजी व विभीषण की प्रतिमाएं हैं यह इस प्रकार का एकमात्र मंदिर है. जहां पर श्री राम जी ने विभीषण को समुद्र के जल से आशीर्वाद दिया व उनका पट्टाभिषेक किया.
धनुषकोडी- रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी सिरे पर स्थित है, जहाँ बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर की मन्नार की खाड़ी का संगम होता है. धनुषकोडी, तमिलनाडु के पूर्वी तट पर, रामेश्वरम द्वीप के दक्षिणी किनारे पर स्थित है, यह स्थान बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर की मन्नार की खाड़ी के संगम के लिए प्रसिद्ध है. ऐसा माना जाता है कि रामायण में भगवान राम ने अपने धनुष की नोक की ओर इशारा किया था और अपने सैनिकों से समुद्र पर पुल बनाने को कहा था, जो लंका तक पहुँचने का मार्ग था. धनुषकोडी भारत के सबसे दक्षिणी छोरों में से एक है धनुषकोडी के पास ही रामसेतु (राम के द्वारा बनाया गया पुल) के अवशेष देखे जा सकते है, मान्यता अनुसार लंका से वापस आने पर राम जी के बनाये सेतु को राम जी ने तथा विभिषण के अनुरोध पर अपने धनुष की नोक से तोड़ दिया था इस तरह इस स्थान का नाम धनुषकोडी पड़ा.
यहाँ दोनों सागरों के पानी का रंग अलग अलग दिखाई देता है.
जैसा कि हम जानते हैं, धनुष् कोड़ी समुद्र में द्विप पर बना हुआ स्थल है जिसके दोनों और समुद्र है और बीच में केवल एक सड़क नुमा जगह बनी हुई है वहां से हम धीरे धीरे उस स्थान की ओर बढे जहां पर इस यात्रा का समापन होना था धनुष् कोटी पर पहुंचकर हमने सूर्योदय के दर्शन किए इस संवत्सर के राजा भी सूर्य देव है इसके पश्चात समुद्र संगम में स्नान किया. फिर समुद्री रेत से ही एक शिवलिंग की बनाया और पूजन किया पूजन करते ही समुद्र की एक लहर आई और उस शिवलिंग को बहाकर अपने साथ ले गई ,इस प्रकार जो संकल्प लिया गया था वह पूर्ण हुआ. धनुषकोटी में ही सीआईएसएफ के जवानों की साइक्लोथान का भी आनंद लिया ये वे जवान है जो देश की रक्षा में सतत लगे रहते हैं उनके साथ वार्ता करने का और फोटो लेने का भी अवसर मिला उनकी साइकिल यात्रा को जाना और उन्होंने राम वन गमन पथ यात्रा को भी जाना दोनों ही यात्राएं बहुत ही सम्माननीय है. धनुष् कोटी में दर्शन करने के बाद फिर हम आगे बढ़े और एक ऐसे स्थान पर गए जहां से सेतु निर्माण प्रारंभ हुआ था यहां पर एक कुंड में तैरते हुए पत्थर रखे गए हैं जिनके दर्शन भी किया वापस आए.
नवहान्ह परायण के द्वितीय दिवस के लिये विषय ,जो पारायण नहीं कर रहे हैं वे भी इस जानकारी से मानस के सभी विषयों को जान सकते हैं. नारद का अभिमान और माया का प्रभाव, विश्वमोहिनी का स्वयंवर, शिवगणों को तथा भगवान् को शाप और नारदका मोह-भंग, मनु-शतरूपा तप एवं वरदान , प्रतापभानु की कथा,रावणादि का जन्म, तपस्या और उनका ऐश्वर्य तथा अत्याचार,पृथ्वी और देवताओं की करुण पुकार,भगवान का वरदान,राजा दशरथ का पुत्रेष्टि यज्ञ, रानियों का गर्भवती होना, श्रीभगवान्‌ का प्राकट्य और बाल लीला का आनन्द, विश्वामित्र का राजा दशरथ से राम-लक्ष्मण को माँगना, विश्वामित्र-यज्ञ की रक्षा,अहल्या उद्धार.
श्रीराम-लक्ष्मण सहित विश्वामित्र का जनकपुर में प्रवेश, श्रीराम-लक्ष्मण को देखकर जनक जी की प्रेम-मुग्धता श्रीराम-लक्ष्मण का जनकपुर-निरीक्षण , पुष्पवाटिका-निरीक्षण, सीताजी का प्रथम दर्शन, श्री सीतारामजी का परस्पर दर्शन,श्रीसीताजी का पार्वती-पूजन एवं वरदान प्राप्ति तथा राम-लक्ष्मण-संवाद श्रीराम-लक्ष्मणसहित विश्वामित्र का यज्ञशाला में प्रवेश,श्री सीताजी का यज्ञशाला में प्रवेश,बन्दीजनोंद्वारा जनकप्रतिज्ञाकी घोषणा,राजाओंसे धनुष न उठना, जनक की निराशाजनक वाणी श्रीलक्ष्मणजीका क्रोध, धनुषभंग, जयमाल पहनाना ,श्रीराम लक्ष्मण और परशुराम संवाद,दशरथजी के पास जनकजी का दूत भेजना, अयोध्या से बारात का प्रस्थान. रामायण में सुग्रीव व रावण का मल्लयुद्ध ,मल्लयुद्ध की विधाओं से परिपूर्ण है,इसे वाल्मीकिनिर्मित रामायण में चार मंडलों में निरूपित किया है जो इस प्रकार के हैं. भरत ने मल्लयुद्ध में चार प्रकार के मण्डल बताये हैं. इनके नाम है-चारिमण्डल, करण मण्डल, खण्डमंडल और महा मण्डल. इनके लक्षण इस प्रकार है- एक पैर से आगे बढ़कर चक्कर काटते हुए शत्रु पर आक्रमण करना चारिमण्डल कहलाता है. से पैर से मण्डलाकार घूमते हुए आक्रमण करना करणमण्डल कहा गया है. अनेक करणमण्डलो का संयोग होने से यह खंडमण्डल हो जाता है .तीन या चार खण्डमण्डलो के संयोग से जो मंडल बनता है उसे महामण्डल कहा गया है.भरतमुनि ने मल्लयुद्ध में छः स्थानों का उल्लेख किया है-वैष्णव ,समपाद, वैशाख, मण्डल, प्रत्यालीड और अनालीड पैरो को आगे-पीछे अगल-बगल में चलाते हुए विशेष प्रकारसे उन्हें यथा स्थान स्थापित करना ही स्थान कहलाता है. कोई-कोई बाघ,सिंह आदि जंतुओं के समान खड़े होनेको रीति को ही स्थान कहते हैं.
सुग्रीव एवम रावण के युद्ध में हम इन विधाओं को देख सकते हैं दोनों कभी तिरछी चाल से चलते, कभी टेड़ी चाल से दाएं बाएं घूम जाते. कभी अपने स्थानसे हटकर शत्रु के प्रहार को व्यर्थ कर देते, कभी बदले में स्वयं भी दाँव-पेंच से शत्रु आक्रमण से अपने को बचा लेते, कभी एक खड़ा रहता तो दूसरा उसके चारों ओर दौड़ लगाता, कभी दोनों एक दूसरे के सम्मुख शीघ्रता पूर्वक दौड़कर आक्रमण करते, कमी झुककर या मेंढक की भाँति धीरे से उछल कर चलते, कभी लड़ते हुए एक ही जगह पर स्थिर रहते, कभी पीछे की ओर लौट पड़ते. कभी सामने खड़े-खड़े ही पीछे हटते, कभी विपक्षी को पकड़ने की इच्छा से अपने शरीर को सिकोड़ कर या झुकाकर उसकी ओर दौड़ते, कभी प्रतिद्वन्द्वी पर पैरसे प्रहार करने के लिये नीचे मुँह किये उस पर टूट पड़ते, कभी प्रतिद्वन्दी योद्धा की बाँह पकड़ने के लिये अपनी बाँह फैला देते और कभी विरोधी की पकड़ से बचने के लिये अपनी बाँहों को पीछे खींच लेते. इस प्रकार मल्लयुद्ध की कला में परम प्रवीण वानरराज सुग्रीव व रावण एक दूसरे पर आघात करने के लिए मंडलाकार विचर रहे थे.वानरराज सुग्रीव रावण को थकाकर अत्यंत विशाल आकाश मार्ग का लंघन करके वानरों की सेना के बीच श्री राम चन्द्र के पास आ पहुंचते हैं उस समय प्रधान वानरों का अभिनन्दन किया गया.
24 फरवरी से प्रारंभ इस यात्रा की इति रामनवमी को करेंगे .
गुड़ी पड़वा की पुनः शुभकामनाएं
एक अन्य तीथर् के भी दर्शनलाभ
एक और महत्वपूर्ण स्थान मिसाइल मैन डॉक्टर एपीजे अब्दुल की जन्मभूमि, कलाम साहब के घर गए पतली गली , इसे एक संग्रहालय का स्वरूप दिया गया है एक संकरे चढ़ाव से ऊपर गए ,वहां पर कलाम साहब के कक्ष को देखा और उन वस्तुओं को भी देखा जिन्हें कलाम साहब ने इस्तेमाल किया था, उनके शूज ,कपड़े ,शाल लैपटॉप, पेन और सबसे महत्वपूर्ण उनका वह चश्मा भी था जिसमें से देखकर उन्होंने भारत को महान बनाने की कल्पना की थी. उनके विजन को भी यहां लिखा है उनकी व उनके संम्बंध जो पुस्तकें लिखी गई है वे भी बिक्री के लिए रखी है. देश ही नहीं विदेश में मिले अनेक सम्मान पुरस्कार, प्रतिष्ठित हस्तियों के साथ कलाम साहब के चित्र लगे थे और साथ में ही उनके द्वारा जो उल्लेखनीय भाषण दिए गए थे उनका भी प्रेजेंटेशन वहां पर चल रहा था . पतली गली,संकरे चढ़ाव से निकल कर पूरे विश्व की धरोहर बने डॉ. कलाम के दृष्टिकोण और मानवता के सभी पहलू उस छोटे से घर में देखने को मिले. हाल ही में यहां एक विशाल स्मारक डीआरडीओ ने बनाया है जिसका उद्घाटन 2017 में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने किया. स्मारक को डॉ. कलाम की रुचियों और पसंद को ध्यान में रखते हुए सावधानीपूर्वक योजना बनाकर बनाया गया है. मुख्य द्वार का प्रवेश द्वार इंडिया गेट जैसा दिखता है, जिसमें तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर के द्वार की तरह चेट्टीनाड शैली का भी स्पर्श है. मुख्य गुंबद राष्ट्रपति भवन की प्रतिकृति है. यहां वीणा बजाते हुए डॉ. कलाम की एक कांस्य प्रतिमा भी है. स्मारक में चार हॉल हैं जो डॉ. कलाम के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाते हैं, जिसमें पोखरण परमाणु परीक्षण शामिल है. यहां रॉकेट, मिसाइल और पेंटिंग की प्रतिकृतियां हैं.