September 9, 2025
तीज त्यौहारधर्म जगत

Pitra Paksh श्राद्ध, श्रद्धा और संकल्पों का पर्व

श्राद्ध – क्या और क्यों, एक पड़ताल वैज्ञानिक दृष्टि से

– गिरीश जोशी

श्राद्धपक्ष हिंदू जीवन शैली में अपने पूर्वजों का स्मरण करने, उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने एवं उनकी आत्मा को सद्गति मिले इस भावना के साथ किए जाने वाले संकल्पों का पर्व है.
आज के समय में समाज वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर दिए गए तर्कों से ही किसी अवधारणा को समझता जो बिलकुल ठीक बात है. श्राद्ध पक्ष के लिए कई बार मन में सवाल उठता है कि जो पूर्वज दिवंगत हो चुके हैं उनके लिए किए जाने वाले किसी भी कार्य का फल उन तक कैसे पहुंच पाता होगा और इस क्रिया को करने से हमें क्या लाभ मिलता है.हमारी संस्कृति में मानव जीवन का मूललक्ष्य जीवन –मरण के चक्र से मुक्त होकर ईश्वर से एकाकार हो जाना है, जिसे मोक्ष कहा जाता है. मनुष्य जब जन्म लेता है तो वो पशुवत होता है.हमारी संस्कृति- परंपराओं में पिरोए गए संस्कारों का उद्देश्य मनुष्य को पशुत्व से मानवत्व की ओर तथा मानवत्व से देवत्व की ओर ले जाने का है जिससे मनुष्य मोक्ष को पाने की दिशा में आगे बढ़ सके.

जब मनुष्य जीवित होता है तब वो अपने आत्मकल्याण के लिए स्वयं प्रयास करता है किंतु जब वो शरीर को छोड़ देता है तब उसकी आत्मा जिस अवस्था अथवा स्थिति में होती है वहाँ से उच्चलोक में उन्नति के लिए, मोक्ष पाने के लिए शरीर के बिना वो कैसे प्रयास कर सकता है. इसलिए दिवंगत आत्मा की उन्नति का प्रावधान भी हमारी संस्कृति में श्राद्ध के माध्यम से किया गया है.
मनुष्य, शरीर और आत्मा का समुच्चय है. आधुनिक विज्ञान शरीर को पदार्थ (Matter) और आत्मा को ऊर्जा(Energy) कहता है. ये पदार्थ पंच तत्वों धरती, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना हुआ हैं.आत्मा को विज्ञान उर्जा कहता है, इस उर्जा का भी विज्ञान ने दो भागों में वर्गीकरण किया है -1.Electrical (Impulses and Signals) अर्थात विद्युत ऊर्जा जो स्पंदन एवं संकेत के स्वरूप में होती है. 2.Chemical (Reactions) रासायनिक भाग जो प्रक्रिया स्वरूप में होता है.
जब ये ऊर्जा या आत्मा, पदार्थ से बने शरीर को छोड़ देती है तब उस व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है. उस पार्थिव शरीर को परंपराओं के अनुसार पंचतत्व में विलीन करने के लिए अंतिम संस्कार किया जाता है. यहाँ सवाल ये उठता है कि शरीर तो अपने मूल तत्वों में जाकर विलीन हो जाता है लेकिन उस आत्मा या ऊर्जा का क्या होता है? आधुनिक विज्ञान ऊर्जा के बारे में कहता है कि ” Energy can neither be created nor destroyed – only converted from one form of energy to another”अर्थात ऊर्जा को न तो नष्ट किया जा सकता है न ही बनाया जा सकता है, उसका केवल स्वरूप बदला जा सकता है.

विज्ञान की इस ‘ऊर्जा’ को भारत के आध्यात्मिक विज्ञान में “आत्मा” कहा गया. उस आत्मा के स्वरूप का वर्णन करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है- “नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः. न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः..“ इसका अर्थ हम भली भांति जानते हैं. आज विज्ञान जिस बात को कह रहा है,हमारे शास्त्रों में हजारों वर्षों से ये बात बता दी गई है कि आत्मा अजर व अमर है.
प्रसिद्ध वैज्ञानिक Albert Einstein ने पदार्थ एवं ऊर्जा के अंतरसंबंधों का रहस्य एक सूत्र से दुनिया को समझाने का प्रयास किया. उस सूत्र को E= mc2 कहा जाता है.
इस सूत्र के अनुसार इस अखिल ब्रम्हांड में पदार्थ एवं ऊर्जा स्थिर है.अर्थात यदि इस ब्रम्हांड को एक पिंड के रूप में कल्पना करें तो इस पिंड के भीतर का पदार्थ एवं ऊर्जा न तो बढ़ाई जा सकती है न ही घटाई जा सकती है केवल रूपांतरित की जा सकती है. गीता के अध्याय 2 – श्लोक 22 में भगवान ने कहा है – “वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि.तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-न्यन्यानि संयाति नवानि देही..“ अर्थात- जैसे मनुष्य पुराने कपड़ों को बदल कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है, ठीक उसी तरह आत्मा पुराने शरीरों को छोड़कर दूसरे नये शरीर में चला जाता है. अब सवाल उठता है कि आत्मा कोई दूसरा शरीर अपनी इच्छा से धारण करता है या किसी नियम के आधार पर करता है.चूंकि पूरी सृष्टि एक नियम से चल रही है जैसे सूर्य का उगना अस्त होना, नवग्रहों का अपने पथ पर भ्रमण, धरती पर चलने वाला ऋतु चक्र आदि. उसी तरह मनुष्य का जन्म तथा मृत्यु के बाद आत्मा की गति आदि भी एक नियम से संचालित है. इस नियम को भगवान श्री कृष्ण ने कर्मफल सिद्धांत के माध्यम से समझाया है.

अपनी संस्कृति में वर्णित सर्वोच्च लक्ष्य (मोक्ष) का लाभ अपने पूर्वजों को मिले,उनकी की दिवंगत आत्मा को सद्गति मिले इस हेतु से और यदि अपने कर्मफल के आधार पर उनका जन्म फिर धरती पर होना है तो यहाँ भी उनको सहायता मिले इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए श्राद्ध किया जाता है. अब सवाल उठता है कि धरती पर किए हुए श्राद्धकर्म के प्रतिफल उस आत्मा विशेष तक तक कैसे पहुँचते है. जैसे हमने पूर्व में देखा कि विज्ञान के अनुसार इस आत्मा का स्वरूप स्पंदनों और संकेतों से मिलकर बना है. विज्ञान कहता है कि इस सृष्टि में दिखाई देने वाली हर वस्तु स्पंदनों का घनीभूत स्वरूप है. हमारे शास्त्रों में कहा गया है कि ये सृष्टि ईश्वर के संकल्प का ही प्रतिफल है. हम सब उस ही ईश्वर की संतान हैं.हम भी जब कोई संकल्प अत्यंत निष्ठा एवं श्रद्धा से लेते हैं तो वो संकल्प निश्चित ही साकार होता है. जब किसी भी सतकर्म के आरंभ में हम जो संकल्प लेते हैं उस संकल्प के अनुसार कुछ विशिष्ट स्पंदन और संकेत इस ब्रम्हांड में एक अद्वितीय ऊर्जा का स्वरूप ग्रहण करते हैं और उस संकल्प को पूरा करने के लिए ब्र्म्हांडीय ऊर्जा को एक निश्चित दिशा में कार्य करने के लिए उत्प्रेरित करते हैं.

ये प्रक्रिया ठीक वैसे ही काम करती है जैसे आज के आधुनिक शस्त्रों में खोजी गई टारगेट गाइडेड मिसाइल. जब ये मिसाइल किसी एक लक्ष्य का संधान कर दागी जाती है तब ये अपने निर्धारित लक्ष्य पर जाकर टार्गेट को ध्वस्त कर देती है.उसी तरह जब हम संकल्प लेकर किसी कृति को करते हैं, जिसके नाम से संकल्प करते हैं तो उस कृति विशेष का फल उस संकल्प के स्पंदनों पर सवार होकर लक्षित आत्मा तक पहुंच जाता है.
भगवान दत्तात्रेय के प्रथम अवतार भगवान श्रीपाद श्रीवल्लभ चरित्रामृत में भगवान इस अखिल ब्रम्हांड की व्याप्ति तथा इसमें स्थित लोकों का वर्णन करते हुए कहते है – “….भूगोल के मध्य बिन्दु से ऊपर ध्रुव स्थान तक का क्षेत्र सूर्य लोक है. इसी प्रकार भूगोल के मध्य बिन्दु से दो लाख ब्रम्हांड योजन तक चन्द्र लोक,तीन लाख ब्रम्हांड योजन तक मंगल लोक,पाँच लाख ब्रम्हांड योजन तक बुध लोक,सात लाख ब्रम्हांड योजन तक गुरु लोक,नौ लाख ब्रम्हांड योजन तक शुक्र लोक, ग्यारह लाख ब्रम्हांड योजन तक शनि लोक,चौदह लाख ब्रम्हांड योजन तक सप्तऋषि लोक,पंद्रह लाख ब्रम्हांड योजन तक ध्रुव लोक स्थित है. इसी प्रकार भू मध्य बिंदु से विविध अंतर पर भू,भव,स्व:,म:,जन:, तप:,सत्य:,लोक स्थित है.”

यदि कोई आत्मा विशेष अपने कर्मों के आधार पर इनमें से किसी लोक में अवस्थित होती है और वहाँ से किसी उच्चतर लोक में जाने के लिए प्रयासरत होती है तो उसे हमारे संकल्प के स्पंदनों से ईंधन के रूप में बल मिलता है. यदि वो आत्मा धरती पर पुन: जन्म लेती है तो उसके द्वारा यहाँ किए जा रहे सदकर्मों का मनोवांछित परिणाम देने के लिए वही स्पंदन उत्प्रेरणा का कार्य करते है. हमें अपने आसपास कुछ लोगों को थोड़े से प्रयास में सफलता मिलती दिखलाई पड़ती है तो कुछ को ज्यादा संघर्ष करना पड़ता है.

श्राद्ध करते समय एक संकल्प लिया जाता हैं ….”अहं समस्त पितृ पितामहांनां नाना गौत्राणां पितरानां क्षु‍त्पिपासा निवृत्तिपूर्वकं अक्षय तृप्ति सम्पादनार्थं ब्राह्मण भोजनात्मकं सांकल्पित श्राद्धं पंचबलि कर्म च करिष्ये.”अर्थात ये श्राद्धकर्म मैं अपने पूर्वजों की “क्षु‍त्पिपासा” यानी भूख-प्यास की निवृत्ति एवं उन्हे अक्षय तृप्ति प्राप्त हो इस हेतु से कर रहा हूं. चूंकि आत्मा तो अवयव विहीन होती हैं तो क्या उसे भूख – प्यास लगती है. शास्त्र कहते हैं- सद्गति की आशा, अभिलाषा, ईश्वर से एकाकार होने की आकांक्षा आत्मा की भूख- प्यास है. अक्षय तृप्ति यानी मोक्ष प्राप्ति का ध्येय उसे प्राप्त हो, यही कामना इस संकल्प के माध्यम से की जाती है.

पितृतर्पण – श्राद्ध आदि करने के लिए हाथ में कुशा,जौ,काला तिल, अक्षत् एवं जल लेकर संकल्प किया जाता है. ये सामग्री आत्मा के रासायनिक भाग को स्पंदित करती है. ये सारी सामग्री संकल्पों के माध्यम से उत्पन्न होने वाले स्पंदनों और संकेतों को प्रबलता प्रदान करने का माध्यम बनती है. ये अत्यंत सूक्ष्म विज्ञान है. जिस तरह हमारे हाथ में पकड़ा हुआ मोबाइल एक निश्चित आवृत्ति की ध्वनि तरंगों को ग्रहण करता है और प्रसारित करता है ठीक उसी तरह ये सामग्री,स्थान,समय एवं कृति सम्मिलित रूप से हमारे संकल्प रूपी स्पंदनों को किसी लोक विशेष में विशिष्ट स्थान पर पहुंचाने का माध्यम बनती है. जैसे आधुनिक विज्ञान में उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए अनुकूल समय तय किया जाता है,वैसे ही श्राद्ध पक्ष हमारे स्पंदनों को निर्धारित आत्मा तक पहुंचाने का अनुकूल समय होता है. उसी तरह नासा अपने रॉकेट छोड़ने के लिए एक निश्चित स्थान से ही उन्हें लांच करता है. हमारे देश में श्रीहरिकोटा वह स्थान है जहां से उपग्रहों की अंतरिक्ष में लॉन्चिंग की जाती है. उसी तरह इस अनंत ब्रह्मांड में अपने स्पंदनों को निर्धारित आत्मा तक पहुंचाने के लिए गया, नाशिक, उज्जैन, जलाशयों के तट, स्व निवास आदि स्थानों को श्राद्ध कर्म के लिए अत्यंत अनुकूल माना जाता है. ये स्थान हमारे स्पंदनों को निश्चित आत्माओं तक पहुंचाने के लिए अत्यंत उपयोगी लॉन्चिंग पैड माने गए है.

श्राद्ध के अनुकूल समय,स्थान, विधि, सामग्री आदि का चयन हमारे पूर्वजों ने अनेक वर्षों तक अनुसंधान कर मिले परिणामों के आधार पर तय किया है. हमारे संकल्प स्पंदन आत्मा विशेष को सद्गति प्राप्त करने में सहायता प्रदान करते हैं जिसके फलस्वरूप वो आत्मा हमारे लिए कृतज्ञता के स्पंदन भेजती है. ये स्पंदन धरती पर हमारे संकल्पों को पूरा करने में सहायक बनते है जिसे हम पूर्वजों का आशीर्वाद कहते हैं . श्राद्ध, कृतज्ञता, आत्मोन्नति और संकल्पपूर्ति का पर्व है.