Maharishi Valmiki जयंती पर विशेष
रामायण के ही नहीं विश्व के पहले श्लोक के भी रचयिता थे
आश्विन पूर्णिमा पर ‘रामायण’ के रचयिता महर्षि वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है. सनातन धर्म के प्रमुख ऋषियों में महर्षि वाल्मीकि का नाम आता है और संस्कृत में लिखी उनकी कृति रामायण को सबसे प्राचीन माना जाता है यानी प्रथम महाकाव्य रचयिता बतौर उन्हें ‘आदिकवि’ कहा जाता है. आज यह रामायण 21 से अधिक भाषाओं में उपलब्ध है. रामायण का हर अक्षर पापनाशक माना गया है. यह महाकाव्य ज्ञान-विज्ञान, भाषा ज्ञान, ललित कला, ज्योतिष शास्त्र, आयुर्वेद, इतिहास और राजनीति का केन्द्रबिन्दु है. श्रीराम के जीवन द्वारा सत्य और कर्तव्य से परिचित कराने वाली रामायण को अनूठा ग्रंथ माना जाता है. इस काव्य में कई स्थानों पर सूर्य, चंद्रमा तथा नक्षत्रों की जो सटीक गणना है वह महर्षि के इन विषयों पर ज्ञान को बताने के लिए पर्याप्त हैं. ज्योतिष व खगोल ज्ञान के साथ सामाजिकता को जोड़ने का अद्भुत कार्य भी उन्होंने किया.
कुल चौबीस हजार श्लोक वाली रामायण रचने के लिए जो पहला श्लोक वाल्मीकि ने लिखा उसे इस दुनिया का पहला श्लोक माना जाता है. वाल्मीकि बनने से पहले उनका नाम रत्नाकर था, जो लूट किया करते थे. एक बार नारद मुनि को ही उन्होंने बंधक बनाकर लूटने का प्रयास किया. इसी क्रम में नारद जी ने उनसे पूछा पूछा कि तुम यह क्यों करते हो?
रत्नाकर ने परिवार के पेट भरने की बात कही तो नारद ने पूछा कि क्या परिवार इसमें पाप का भी भागीदार बनने को तैयार होगा?
रत्नाकर जवाब पूछने घर पहुंचे और एक एक सदस्य से पाप का भागी बनने की बात पूछी, जब सभी ने जवाब दिया कि इस पाप में हम हिस्सा नही बन सकते तो रत्नाकर ने लौटकर नारद से क्षमा मांगी और
सत्य और धर्म के मार्ग पर चलना तय किया. अब तक किए पापों से मुक्ति के लिए उन्हें ‘राम’ नाम जपने की सलाह दी, घोर तपस्या के बाद उन्हें ज्ञान प्राप्ति हुई और वे महर्षि वाल्मीकि बने. माता सीता स्वयं वाल्मीकि के आश्रम में ही रहीं और वहीं लव-कुश को जन्म दिया था. उनके जीवन से यह सीख मिलती है कि नई शुरूआत किसी भी समय संभव है. बुरे कर्मों से अच्छे कर्मों की ओर बढ़कर ऊंचाइयां हासिल करने का संदेश देता उनका जीवन असतो मा सद्गमय का सबसे सटीक उदाहरण पेश करता है.