July 20, 2025

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दफ़्तरनामा : ‘एक्स्ट्राऑर्डिनरी’ करते हैं तो ‘ऑर्डिनरी’ बन कर रह जाएंगे

-काम तो करना ही है- कर भी रहे हैं। बस हम थोड़ा एक्स्ट्रा करते हैं क्योंकि ‘एक्स्ट्राऑर्डिनरी’ करने की आदत है। पर हमारा वो ‘एक्स्ट्रा’होना, अब ऑर्डिनरी रह गया है। blog on office politics

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क्या चाहती है एक स्त्री?

अपना मान सम्मान, आत्मविश्वास, निर्णय लेने की आज़ादी और अपनी पसंद के काम करने की छूट हर स्त्री को मिलनी ही चाहिए। यदि न मिले तो उसे छीन कर लेनी होगी पर लेनी होगी…। जी लो जी भर के…

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सुनो…कायदे से रहोगे तो फायदे में रहोगे…

नई बहू तैयार हो रही, इन्हें कमरे में जाना. ससुर/सास ने मना किया. अभी बहू नीचे आ जाएगी मिलने . नहीं जी इन्हें उसका कमरा देखना कैसा सजाया/ तैयार किया? कौन करता है ऐसा? बेटियों के कमरे झाँकने की बेशर्मी?

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सावधान! क्या आप भी बेटी के ससुराल में जमे हुए हैं??

पूरे समय बेटी के घर में उसके सास-ससुर, भरा पूरा परिवार होते हुए भी बार बार उनके घर में डेरा डाल के पड़े रहने का क्या कोई तुक बनता है. हां यदि परिस्थितियां प्रतिकूल हों, अनिवार्यता हो, इकलौती संतान हो, कोई आगा पीछा न हो तो हक़ और दायित्व दोनों बनते हैं. पर बार बार हमेशा तो उचित नहीं. किसी के घर अकारण बहू की मां जमी हुई है, कहीं पिताजी रुक गए, भाई बहन तो रिफ्रेशमेंट सेंटर बना लेते हैं.

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