Nobel विजेताओं की थ्योरी से मिलती है भारत की वर्तमान व्यवस्थाएं
भारत के रचनात्मक विनाश और नवाचार वाली गति को नोबेल विजेताओं का समर्थन
2025 के अर्थशास्त्र के नोबेल पुरस्कार ने वैश्विक विकास की दिशा में नवाचार-संचालित आर्थिक विकास और रचनात्मक विनाश. यह पुरस्कार जोएल मोकिर, फिलिप अघियन और पीटर हॉविट ने नोबेल जीतने वाले अपने शोध में कहा है कि निरंतर समृद्धि कोई स्थिर अवस्था नहीं होते हुए एक सतत या गतिशील प्रक्रिया है. यह प्रक्रिया तभी आगे चलती है जब समाज रचनात्मक विनाश के बाद नवाचार को अपनाते हुए पुरानी, अप्रचलित तकनीकों व संस्थानों को पीछे छोड़ता है. इस विचार को भारत के वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में देखा जा सकता है. भारत अपने पारंपरिक विकास मॉडल को लगातार सुधारते हुए नवाचार, स्व-नवीनीकृत अर्थव्यवस्था पर बढ़ रहा है. स्टार्टअप, डिजिटलाइजेशन, और एमएसएमई में तकनीकी बढ़त ऐसे बदलाव के स्पष्ट संकेत हैं. भारत अब ऐसा इको सिस्टम बना रहा है जहाँ नवाचार आयातित न होकर आज की जरुरतों के मान से खुद विकसित किए हुए हों.
नोबेल विजेताओं फिलिप अघियन और पीटर हॉविट कहते हैं कि आर्थिक विकास केवल पूँजी या श्रम के संचय से न होकर एक प्रतिस्पर्धात्मक प्रक्रिया से बढ़ता है. जिसे रचनात्मक विनाश कहा जा सकता है. भारत में यह प्रक्रिया डिजिटल भुगतान प्रणाली के उदाहरण से समझी जा सकती है जहां यूपीआई ने पारंपरिक बैंकिंग मॉडल को चुनौती दी और एक नया इको सिस्टम ही तैयार हो गया. टेलीकॉम, एग्रीटेक स्टार्टअप्स में भी पूरी श्रंखलाएं ही नए सिरे से बन रही हैं. 2025 का नोबेल पुरस्कार इस बात की पुष्टि करता है कि भारत जिस दिशा में बढ़ रहा है, वह केवल व्यावहारिक नहीं बल्कि सैद्धांतिक रूप से भी दृढ़ है. यह पुरस्कार भारत के उस वैचारिक बल को आगे बढ़ाता है कि रचनात्मक विनाश कोई संकट नहीं, बल्कि अवसर है.