Woke Olympics क्यों कहा जा रहा है पेरिस ओलंपिक
ओलंपिक कमेटी चाहती ही है कि जेंडर विवाद को हवा मिले ताकि LGBT वाला एजेंडा आगे बढ़े
ओलंपिक यूं तो पूरा ही विवादित होता जा रहा है लेकिन बॉक्सिंग को लेकर विवाद थमने के बजाए बढ़ते ही जा रहे हैं. केरिनी और इमेन के मैच का विवाद ही नहीं थम पाया था कि एक और जेनेटिकली पुरुष के एक महिला को हरा देने वाला मुकाबला फिर चर्चा में है.इस बार ताईवान के लिन यू टिंग के उज्बेकिस्तान की महिला खिलाड़ी सितोरा को हराने पर विवाद उठ रहा है.
लिन भी इमेन की तरह ही एक्सवाई क्रोमोसोम वाले खिलाड़ी हैं और पिछले साल के वर्ल्ड चैंपियनशिप में जेंडर टेस्ट में फेल हो चुके हैं. उनका मामला इतना सीधा XY का था कि उन्हें पिछले सााल प्रतियोगिता में भाग लेने से रोक दिया गया था. ओलपिक समिति गलती सुधारने के बजाए लोगों को एक्स वाय क्रोमोसोम को लेकर न सिर्फ ज्ञान दे रही है बल्कि पिछले साल इन बॉक्सर्स के जेंडर टेस्ट पास न कर पाने के बाद भी उन्हें ओलंपिक में शामिल होने के पक्ष में तर्क दे रही है. यूं भी मामले को अब मेल फीमेल से आगे एलजीबीटी वाले वोक मामलों की तरफ बढ़ा दिया गया है और हद यह कि इमने का अगला मैच फिर एक महिला के साथ रख दिया गया है यानी ओलंपिक समिति इस पूरे आयोजन को वोक तरीके से ही निपटाने में तुली हुई है और इसमें महिलाओं के प्रति न्याय या सम्मान जैसी कोई संभावना वह छोड़ने को ही तैयार नहीं है.
यह मनमानी सिर्फ बॉक्सिंग में की जा रही हो ऐसा भी नहीं है, उद्घाटन वाले शो से लेकर सीन नदी में ही तैराकी प्रतियोगिताएं रखने की बीसियों ऐसी जिद हैं जिनसे एक अच्छे भले आयोजन की भद पिट रही है. ‘द लास्ट सपर’ के वोक संस्करण पर पूरी दुनिया में यही संदेश गया कि ईसाइयों को लेकर जानबूझकर यह मजाक बनाया गया और एक अमेरिकी कंपनी ने तो इसके चलते ओलंपिक से अपने सभी विज्ञापन भी वापस ले लिए. सीन नदी में तैराकी प्रतियोगिताओं का विरोध खुद पेरिस वासी भी कर रहे थे लेकिन मेयर साहिबा ने छोटी सी डुबकी लगाकर यह बताया कि पानी बढ़िया है और ओलंपिक वाले इस बुनियाद पर जिद पर अड़ गए कि तैराकी तो यहीं होगी, कनाडाई स्विमर ने लाइव टीवी पर पानी में जाते ही वोमिट कर दिया क्योंकि पानी गंदा था.
दरअसल ओलंपिक समिति एक शक्तिशाली संस्था है जो गेम्स के दौरान सारे निर्णय स्वतंत्र तरीके से लेती है और तो और इसका खुद की अदालत भी होती है और सरकार कोई भी इसके काम में ज्यादा हस्तक्षेप करने का सोचती भी नहीं हैं. इसी बात का फायदा ओलंपिक समिति उठाती है और मनमाने निर्णय करते हुए भी उनके पालन की जबरदस्ती करती है. फ्रांस में पड़ रही भीषण गर्मी के बावजूद समिति ने फैसला लिया कि खिलाड़ियों को एसी रुम नहीं दिए जाएंगे जब मेहमानों की हालत खराब होने लगी तो भी कुछ एसी मंगवाए गए, अब ये कुछ एसी रुम और किसी को भले मिले हों खिलाड़ियों को तो नहीं मिले. समिति ने बोर्ड के जो सोने के पलंग बनवाए उनको लेकर भी एक के बाद एक शिकायतें आती रहीं और खिलाड़ियों का कहना है कि इन पर सोने से बेहतर है कि नीचे जमीन पर सो जाया जाए. कुछ खिलाड़ी तो यहां तक कह रहे हैं कि एक एक वॉशरुम पांच खिलाड़ियों को शेयर करने को कह दिया गया है और ऐसे निर्णयों के चलते ही खेलगांव में रहने से अधिकतर खिलाड़ी बच रहे हैं. इन सबाक खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर भी असर हो रहा है लेकिन ओलंपिक समिति के लिए तो ये बस ‘खेल’ हैं. मनमानी करने का जो लाइसेंस ओलंपिक कमेटी के पास है उसके पीछे सिर्फ एक वजह है कि इसमें बड़ा पैसा इन्वॉल्व रहता है और सरकारें भी इस पैसे के देश में लाने के लिए तमाम समझौते करती रहती हैं. पेरिस ने नए निर्माणों को लेकर थोड़ा प्रतिरोध किया और उसे ही बड़ी बात माना जा रहा है क्योंकि कमेटी की ज्यादा नजर इसी बात पर रहती है कि कितने निर्माण नए हो रहे हैं और कितना पैसा कट में आ सकता है. खिलाड़ियों की सुविधा के लिए समिति सोचती हो ऐसे निर्णय आपको बमुश्किल ही नजर आएंगे लेकिन पैसे को लेकर समिति हर बार, हर निर्णय के बीच में खड़ी आती है और इस बार तो उसका पूरा ध्यान उन मुद्दों की तरफ है जो इन खेलों से जुड़े हुए ही नहीं है.
ट्रंप जिस सेटेनिक बता रहे हैं, मेलोनी जिनके नतीजों पर सवाल उठा रही हैं और हजारों वो आवाजें जो इन गेम्स में चल रही मनमानियों के खिलाफ हैं लेकिन बहते पैसे की बाढ़ में जिनकी सुनी ही नहीं जा रही है…इन ओलंपिक गेम्स के लिए पहले भी कहा जा चुका है कि ये वोक लोगों का अड्डा बन चुके हैं और जिस तरह ट्रांसजेंडर्स का प्रदर्शन ओपनिंग सेरेमनी में किया गया था कमोबेश वैसा ही शो अब खेलों में भी जारी है. इमेन और लिन यू के मामले में ओलंपिक समिति कह रही है कि उनके पासपोर्ट पर भी फीमेल लिखा हुआ है और इससे ज्यादा बात हो तो आपको यह बताया जाने लगता है कि सिर्फ एक्सवाई क्रोमोसोम पुरुष होने को परिभाषित नहीं करते लेकिन यहां सवाल एक्सवाई का तो था ही नहीं क्योंकि मुकाबले एक्सएक्स क्रोमोसोम वाली महिलाओं के बीच होने थे. चूंकि पूरे आयोजन को इस तरह के विवाद में लाकर ही ‘लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर’ यानी LGBT मामलों को पूरी दुनिया के सामने हाइलाइट करने की ही मंशा थी इसलिए महिलाओं को पीटने का अधिकार उन्हें दे दिया गया जिन्हें गेम में शामिल होने से पहले केटेगरी टेस्ट पास करना ही भारी पड़ रहा था. इन गेम्स को वोकलंपिक्स के नाम पर जो लोग सोशल मीडिया पर ट्रेंड करा रहे हैं वे कहां गलत हैं यह ओलंपिक कमेटी ही बता सकती है आखिर खेलगांव और चल रहे खेलों की मालिक भी तो वही बनी हुई है.