Ujjain की ‘विष्णु चतुष्टिका’ बेहद अनूठी प्रतिमा
गढ़कालिका से कुछ ही दूरी पर है यह अनोखाी मूर्ति
उज्जैन की धरोहर और पहचान में सबसे पहला नाम महाकाल का आता है और अधिकतर लोग सिर्फ बाबा के दर्शन तक अपनी उज्जैन यात्रा को सीमित रखते हैं, मां हरसिद्धि, गढ़कालिका और मंगलनाथ के अलावा भी यहां धार्मिक, ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि सें महत्व के हजारों अन्य स्थान मौजूद हैं. आइये उज्जैन की एक ऐसी ही अनमोल धरोहर से आपका परिचय कराते हैं और यह है ‘विष्णु चतुष्टिका’…
नाम से तो साफ है कि कुछ संशय हो कि यह मूर्ति विष्णुजी से जुड़ी हुई हैँ लेकिन दरअसल यह श्रीकृष्ण और उनके परिवारजनों से जुड़ी चौमुखी मूर्ति है. बलुआ पत्थर से बनी इस मूर्ति को लेकर पुरातत्व विभाग और उज्जैन नगर निगम ने दो अलग अलग जानकारियां दी हैं और इनमें मूर्ति की लंबाई, चौड़ाई और ऊंचाई को लेकर अलग नाप दिए हैं लेकिन पुरातत्व का दिया हुआ विवरण ज्यादा सटीक लगता है जिसके अनुसार इसकी चौड़ाई 93 और ऊंचाई 96 सेंटीमीटर बताई गई है. हालांकि इस जानकारी में वह खासियत शामिल नहीं है जो नगर निगम वाले बोर्ड में शामिल की गई है.
यह मूर्ति इतने खास तरीके से बनाई गई है कि वासुदेव, संकर्षण और प्रद्युम्न की इस संयुक्त मूर्ति को छूने पर अलग आवाजें आती हैं. जैसे बांसुरी को स्पर्श करें तो अलग ध्वनि और दूसरे हाथ में मौजूद गदा को छुएं तो अलग प्रतिध्वनि. जब आप धाुत या लकड़ी के किसी टुकड़े के साथ इन्हें ध्वनित करें तो आप इस बात पर चकित हो जाते हैं कि इस मूर्ति के अंग प्रत्यंग से आप समान ध्वनि नहीं पाते हैं. एक पत्थर से इतने अलग अलग स्वर निकलना और वह भी मूर्ति में शामिल वाद्यों के अनुसार निकलना बेहद हैरान करने वाला अनुभव है. आप ढाल से स्वर निकालें तो एकदम अलग ध्वनित होगा और शंख से ध्वनि लेंगे तो वह बिलकुल भिन्न स्वर होगा.
हरिवंशपुराण में सिंहमुख बलराम का जो उल्लेख है चह आप यहां साक्षात देख सकते हें. वैष्णव मत के पंचरात्र शाखा से संबद्ध इस मूर्ति को बनाने का काल नौंवी या दसवीं शताब्दी का माना जाता है, चूंकि इसके चारों ओर मुख बने हुए हैं इसलिए इसे चतुष्टिका का नाम दिया गया है. मूर्ति के चतुर्भुजी स्वरुप में अक्षमाला, वरदमुद्रा, शंख, धनुषबाण, किरीट मुकुट, श्रीवत्स, कुंडल, कयूर, कटकवलय और यज्ञोपवीत बेहद बारीकी से तराशे गए हैं. पद्मासन को लेकर बनाई गई इस चतुर्मुखी प्रतिमा को इस मायने में दुर्लभतम कहा जा सकता है कि यह (साम्ब सहित) पंचरात्र की अल्पज्ञात प्रतिमाओं में शायद सबसे महत्वपूर्ण है. कलात्मकता और संगीत विद्या का यह अनूठा संगम भी है हालांकि अब इसे छूने और इससे ध्वनि निकालने पर सख्त मनाही है लेकिन सिर्फ दर्शनीयता के लिहाज से भी यह अतिसुंदर और चित्ताकर्षक है.