हिंदू साम्राज्य दिवस (20 जून) पर विशेष: लोकमंगल था शिवाजी के ‘हिंदवी स्वराज’ का शासन मंत्र
सुशासन,समरसता और सामाजिक न्याय से जीता जनविश्वास
–प्रो.संजय द्विवेदी

शिवाजी का नाम आते ही शौर्य और साहस की प्रतिमूर्ति का एहसास होता है. अपने सपनों को सच करके उन्होंने खुद को न्यायपूर्ण प्रशासक रूप में स्थापित किया. इतिहासकार भी मानते हैं कि उनकी राज करने की शैली में परंपरागत राजाओं और मुगल शासकों से अलग थी. वे सुशासन, समरसता और न्याय को अपने शासन का मुख्य विषय बनाने में सफल रहे. सन् 1674 में ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी के दिन शिवाजी का राज्याभिषेक हुआ. यह दिन हिंदू साम्राज्य दिवस के रूप में मनाया जाता है. बिखरे हुए मराठों को एक सूत्र में पिरोकर उन्होंने जिस तरह अपने सपनों को साकार किया वह प्रेरित करने वाली कथा है. एक अप्रतिम सैनिक, कूटनीतिज्ञ, योद्धा के साथ ही वे कुशल रणनीतिकार के रूप में भी सामने आते हैं. वे अपनी मां जीजाबाई और गुरू के प्रति बहुत श्रद्धाभाव रखते थे. शायद इन्हीं समन्वित मानवीय गुणों से वे ऐसे शासक बने जिनका कोई पर्याय नहीं है.
इतिहासकार ईश्वरी प्रसाद कहते हैं- “प्रशासन की उनकी प्रणाली कई क्षेत्रों में मुगलों से बेहतर थी.” इतिहास के पन्नों में ऐसा शासक कभी-कभी आता है, जिसने लोकमन में जगह बनाई हो. शिवाजी एक ऐसे शासक हैं जिनके प्रति उनकी प्रजा में श्रद्धाभाव साफ दिखता है क्योंकि लोकमंगल ही उनके शासन का मूलमंत्र था. उनकी राज्य प्रणाली, प्रशासन में आम आदमी के लिए, स्त्रियों के लिए, कमजोर वर्गों के लिए ममता है, समरसता का भाव है. वे न्यायपूर्ण व्यवस्था के हामी हैं. प्रख्यात इतिहासकार डा. आरसी मजूमदार की मानें तो “शिवाजी न केवल एक साहसी सैनिक और सफल सैन्य विजेता थे,बल्कि अपने लोगों के प्रबुद्ध शासक भी थे.” बाद के इतिहासकारों ने तमाम अन्य भारतीय नायकों की तरह शिवाजी के प्रशासक स्वरूप की बहुत चर्चा नहीं की है. आज भारतीय पुर्नजागरण का समय है और हमें अपने ऐसे नायकों की तलाश है, जो हमारे आत्मविश्वास को बढ़ा सकें. ऐसे समय में शिवाजी की शासन प्रणाली में वे सूत्र खोजे जा सकते हैं, जिससे देश में एकता और समरसता की धारा को मजबूत करते हुए समाज को न्याय भी दिलाया जा सकता है.शिवाजी अपने समय के बहुत लोकप्रिय शासक थे. उन पर जनता की अगाध आस्था दिखती थी. साथ ही उनके राजतंत्र में बहुत गहरी लोकतांत्रिकता भी दिखती है. क्योंकि वे अपने विचारों को थोपने के बजाए या ‘राजा की बात भगवान की बात है’ ऐसी सोच के बजाए अपने मंत्रियों से सलाहें लेते रहते थे. विचार-विमर्श उनके शासन का गुण हैं. जिससे वे शासन की लोकतांत्रिक चेतना को सम्यक भाव से रख पाते हैं.
शिवाजी ऐसे शासक हैं जो सत्ता के विकेंद्रीकरण की वैज्ञानिक विधि पर काम करते हुए दिखते हैं. समाज के सभी वर्गों,जातियों, सामाजिक समूहों की अपनी सत्ता में वे भागीदारी सुनिश्चित करते हैं, जिनमें मुसलमान भी शामिल हैं. उन्होंने मंत्रियों को अलग-अलग काम सौंपे और उनकी जिम्मेदारियां तय कीं ताकि अनूकूल परिणाम पाए जा सकें. वे परंपरा से अलग हैं इसलिए वे अपने नागरिकों या सैन्य अधिकारियों को कोई जागीर नहीं सौंपते. किलों( दुर्ग) की रक्षा के लिए उन्होंने व्यवस्थित संरचनाएं खड़ी की ताकि संकट से जूझने में वे सफल हों. रक्षा और प्रशासन के मामलों को उन्होंने सजगता से अलग-अलग रखा और सैन्य अधिकारियों के बजाए प्रशासनिक अधिकारियों को ज्यादा अधिकार दिए. उनकी यह सोच बताती है नागरिक प्रशासन उनकी चिंता के केंद्र में था. उन्होंने राजस्व प्रणाली में व्यापक सुधार करते हुए किसानों से सीधा संपर्क और संवाद बनाने में सफलता पाई. उन्होंने केंद्रीय प्रशासन और प्रांतीय प्रशासन की साफ रचना खड़ी और उनके अधिकार व कर्तव्य भी सुनिश्चित किए. उन्होंने ‘अष्ट प्रधान’ नाम से केंद्रीय मंत्रियों की टोली बनाई जिसमें आठ मंत्री थे. उनमें कुछ पेशवा कहे गए जो वरिष्ठ थे. चार प्रांतों विभक्त शिवाजी की राज्य रचना एक अनोखा उदाहरण थी. प्रत्येक प्रांत को जिलों और गांवों में बांटा गया था. गांव का प्रमुख देशपाण्डेय या पटेल कहलाता था. शिवाजी गांवों में राजस्व प्रणाली को वैज्ञानिक बनाने का काम किया और उनको किसानों के लिए उपयोगी बनाया. इस व्यवस्था में किसान किस्तों में भी भुगतान कर सकते थे. राज्यस्व अधिकारियों पर नियंत्रण रहे इसलिए नियमित उनके खातों की गहन जांच भी की जाती थी. उन्होंने न्यायिक प्रशासन को भी जवाबदेह बनाया.
शिवाजी स्वयं योद्धा थे. जाहिर तौर पर उनकी सैन्य प्रणाली बहुत अग्रगामी थी. पूर्व की परंपरा में सैनिक छः माह काम करते थे फिर छः माह दूसरे कामों से अपना जीवन यापन करते थे. शिवाजी ने नियमित सेना को स्थापित किया, उन्हें पूरे साल सैनिक जीवन जीना होता था. सैनिकों को नियमित भुगतान के साथ उनकी योग्यता और देशभक्ति के आधार पर जगह मिलने लगी. शिवाजी ने लगभग 280 किलों के माध्यम से अभेद्य रचना खड़ी की. उनकी सेना में कठोर अनुशासन था. सेना में सभी वर्गों के सैनिक थे. 700 से अधिक मुस्लिम भी उनकी सेना में थे.अपने सैनिकों को उन्होंने गुरिल्ला युद्ध में प्रशिक्षित कर बड़ी सफलताएं पाईं. मृत सैनिकों के परिजनों का खास ख्याल रखा जाता था. इसके साथ ही उन्होंने बहुत अनुशासित सेना खड़ी की. सेना में अनुशासन बनाए रखने के लिए शिवाजी बहुत सख्त थे. महिलाओं और बच्चों को मारना या प्रताड़ित करना, ब्राह्मणों को लूटना, खेती को खराब करना आदि युद्ध के दौरान भी दंडनीय अपराध थे. अनुशासन के रखरखाव के लिए विस्तृत नियम सख्ती से लागू किए गए थे. किसी भी सैनिक को अपनी पत्नी को युद्ध के मैदान में ले जाने की अनुमति नहीं थी. शिवाजी ने अपनी सेना को सब तरह से सुसज्जित किया जिसमें छह विभाग थे. जो इस प्रकार हैं- घुड़सवार सेना, पैदल सेना, ऊंट और हाथी बटालियन, तोपखाने और नौसेना. यह विवरण बताता है कि उनका राज्यतंत्र किस तरह लोगों की सुरक्षा और शांति के लिए काम कर रहा था. वे प्रेरित करने वाले नेता था. इसलिए उनकी शक्ति बढ़ती चली गयी.उनके कट्टर दुश्मन औरंगज़ेब को स्वयं स्वीकार करना पड़ा कि “मेरी सेनाओं को उन्नीस वर्षों से उनके खिलाफ काम में लगाया गया है और फिर भी उनकी (शिवाजी की) स्थिति हमेशा बढ़ती रही है.”
शिवाजी जी ने अपनी जंग मुगलों के विरूद्ध लड़ी, किंतु वे सामाजिक समरसता और सामाजिक न्याय के मंत्रदृष्टा थे. उन्होंने कभी किसी जाति और धर्म के विरूद्ध कभी कुछ न किया, न ही कहा. उनके शासन में सभी सुखी थे क्योंकि वे सबको अपना मानते थे. अपनी आठ सदस्यीय केंद्रीय मंत्रिपरिषद में उन्होंने सात ब्राम्हणों को जगह दी. वे बेहद सहिष्णु हिंदू शासक थे. उन्होंने साफ कहा कि वे हिंदुओं, ब्राम्हणों और गायों के रक्षक हैं. उन्होंने सभी पंथों और उनके ग्रंथों के प्रति अपना सम्मान प्रदर्शित किया. किसी मस्जिद को अपने राज में कभी कोई नुकसान नहीं पहुंचाया न पहुंचने दिया. युद्ध के दौरान महिलाओं और बच्चों के सम्मान और सुरक्षा उनकी चिंता का मूल विषय थे.
मुस्लिम महिलाओं को सम्मान देने की उनकी अनेक कथाएं बहुश्रुत हैं. उन्होंने मुस्लिम विद्वानों और आलिमों को हमेशा आर्थिक मदद दी. सरकारी विभागों में उन्होंने मुस्लिम अधिकारियों को नियुक्त किया. औरंगजेब द्वारा सभी हिंदुओं पर जजिया कर लगाने पर शिवाजी ने उसे एक पत्र भी लिखा. बहुत खराब सामाजिक परिस्थितियां और मुगल शासकों द्वारा हिंदु विरोधी कृत्यों के बाद भी शिवाजी ने अपने राज्य में मुस्लिम जनता को कभी पराएपन का एहसास नहीं होने दिया और उनका संरक्षण किया. उन्होंने यह नियम ही बना दिया था कि किसी भी युद्ध, छापामार युद्ध में महिलाओं, मस्जिदों और पवित्र पुस्तक कुरान को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए.
शिवाजी ऐसे भारतीय शासक के रूप में सामने आते हैं, जिसने अपनी बाल्यावस्था में जो सपना देखा, उसे पूरा किया. भारतीय समाज में आत्मविश्वास का मंत्र फूंका और भारतीय लोकचेतना के मानकों के आधार पर राज्य संचालन किया. मूल्यों और अपने धर्म पर आस्था रखते हुए उन्होंने जो मानक बनाए वे आज भी प्रेरित करते हैं. ऐसे महापुरुष सदियों में आते हैं, जिनका व्यक्तित्व और कृतित्व लंबे समय तक लोगों के लिए आदर्श बन जाता है.
( लेखक भारतीय जन संचार संस्थान(IIMC) के पूर्व महानिदेशक हैं.)