Placenta Accreta का सबसे सफल उपचार यूटेराइन आर्टरी एम्बोलिज़ेशन
केयर सीएचएल दे रहा उपचार के शत प्रतिशत परिणाम
गर्भावस्था की समस्याओं में एक प्रमुख समस्या तब आती है जब महिला के गर्भ में प्लेसेंटा नामक एक अस्थायी अंग निर्मित हो जाता है, यह यूट्राइन वॉल से जुड़ा होता है और अम्बिलिकल कॉर्ड के जरिए शिशु के लिए ऑक्सीजन और जरुरी पोषक तत्व पहुंचाता है. शिशु जन्म के बाद प्लेंसेंटा निकाल दिया जाता है लेकिन कुछ मामलों में यह गर्भाशय में ही रह जाता है, इस स्थिति को प्लेसेंटा एक्रीटा कहा जाता है. इस स्थिति में गर्भाशय निकालने या ज्यादा खून बहने से जान को खतरे जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं. इंदौर में केयर सीएचएल हॉस्पिटल में गायनोकॉलोजिस्ट डॉ. नीना अग्रवाल पिछले कुछ सालों से बिना गर्भाशय को निकाले इसका सफल इलाज करने की सफल कोशिश कर रही हैं और पिछले 3 सालों में 23 महिलाओं को गर्भाशय निकालने की स्थिति से बचाया है.
डॉ. अग्रवाल के अनुसार, “प्लेसेंटा के जरिए शिशु को ऑक्सीजन और पोषक तत्व मिलते हैं. हार्मोंस और इम्यूनिटी बनाने में भी इसकी भूमिका है. शिशु के जन्म लेने पर तुरंत प्लेसेंटा निकाल दिया जाता है. सी-सेक्शन में डॉक्टर इसे काटकर हटा देते हैं लेकिन कुछ दुर्लभ मामलों में प्लेसेंटा के हिस्से गर्भाशय में ही रह जाते हैं. इससे ब्लीडिंग, दर्द और इंफेक्शन हो सकता है. पहली डिलीवरी में सिजेरियन करने के बाद महिलाओं को प्लेसेंटा एक्रीटा का जोखिम बढ़ जाता है. हर बार सिजेरियन के बाद महिलाओं को अगली प्रेग्नेंसी में प्लेसेंटा एक्रीटा होने की संभावना बढ़ जाती है. इसके साथ ही इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) भी प्लेसेंटा एक्रीटा के खतरे को बढ़ा सकती है.
इसके उपचार के बारे में डॉ नीना बताती हैं कि, “मेडिकल साइंस में लगातार शोध से अब यूटेराइन आर्टरी एम्बोलिज़ेशन के माध्यम से बिना गर्भाशय को हटाए प्लेसेंटा एक्रीटा हटाया जा सकता है लेकिन इसके लिए विशेषज्ञों की एक दक्ष टीम और अत्याधुनिक मशीनों की आवश्यकता होती है. यूटेराइन आर्टरी एम्बोलिज़ेशन की प्रक्रिया में सबसे पहले प्लेसेंटा एक्रीटा तक रक्त का प्रवाह रोका जाता है ताकि उसे आसानी से निकाला जा सके. इसके लिए रेडियोलॉजिस्ट की टीम की मदद ली जाती है। एम्बोलिक एजेंट (जो जेल फोम या जैसे छोटे मोती जैसे होते हैं) को गर्भाशय की आर्टरीज़ में इंजेक्ट किया जाता है. ये एम्बोलिक एजेंट प्लेसेंटा एक्रीटा में जाने वाली रक्त के प्रवाह को रोक देते हैं जिससे वह सिकुड़ जाता है और उसे निकालने में आसानी हो जाती है। इस पूरी प्रोसेस के दौरान, इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट, फ्लोरोस्कोपी जैसी इमेजिंग टेक्निक का उपयोग किया जाता है. एम्बोलिज़ेशन के बाद रिकवरी में लगने वाला समय हर महिला में अलग-अलग होता है, लेकिन अन्य सर्जिकल ऑप्शन की तुलना में यूटेराइन आर्टरी एम्बोलिज़ेशन की रिकवरी जल्दी होती है. अधिकतर महिलाएँ कुछ दिनों से एक हफ़्ते के भीतर अपने सामान्य रूटीन में लौट जाती हैं. केयर सीएचएल हॉस्पिटल में अत्याधुनिक सुविधाओं के साथ रेडियोलॉजिस्ट डॉ आलोक उडिया और उनकी टीम के सहयोग से हम पिछले 3 सालों से यूटेराइन आर्टरी एम्बोलिज़ेशन कर रहे हैं, इन तीन सालों में 23 महिलाओं की सर्जरी की गई है, और इसका परिणाम शत प्रतिशत रहा.