Paris Olympic संघ की मनमानी, खिलाड़ियों पर भारी
शर्म जिनकों मगर नहीं आती
अब तक आपने किसी भी सभ्य देश में यही सुना होगा कि लड़की को पीटने वाले मर्द को सजा का ही प्रावधान होता है लेकिन ओलंपिक का सभ्यता से शायद कोई वास्ता ही नहीं रह गया है लेकिन खेलेां की दुनिया में क्रिकेट के बाद कोई बादशाह है तो वह यही संस्था है. यह संस्था तय कर ले तो पुरुष को महिला वर्ग में महिलाओं को मुक्केबाजी की इजाजत दे सकती है,
यह उन एथलीट को खेलने की अनुमति दे सकती है जिन पर ड्रग्स ले लेकर खेलने के आरोप रहे हों और तो और ऐसे लोग जिन पर रेप के आरोप रहे हों उन्हें भी खेल में भाग लेने की इजाजत यह संस्था बड़ी बेशर्मी से दे देती है. सवाल और जवाबों से परे, मनमानी के लिए इनके पास सारे तर्क हैं. यदि इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन किसी को ‘पूरी तरह’ स्त्री न होने के आरोप में महिला वर्ग में खेलने से प्रतिबंधित कर दे तो ओलंपिक समिति उस एसोसिएशन को गलत बता देगी लेकिन उस अल्जीरियाई इमेन खेलिफ को नहीं रोकेगी जिसके गुणसूत्र में एक्सएक्स क्रोमोसोम नहीं हैं, खूब तर्क कुतर्क देकर यह साबित करने की कोशिश करते ओलंपिक संघ को रिंग में रोती हुई इटली की वह लड़की नहीं दिखती जो असमान मुकबाले में उतार कर हरा दी गई, उसे दूसरी खिलाड़ी की वह सोशल मीडिया पोस्ट नहीं दिखती जिसमें लड़की रिंग में उतरने से पहले खुद को एक केरिकेचर के माध्यम से एक शैतान के सामने सकुचाती हुई बता रही है.
उसे सिंगापुर का वह बॉक्सर लड़की लगता है जिसे बड़े स्तर पर जांच के बाद प्रतिबंधित किया गया था और माना गया था कि वह महिला वर्ग में खेलने के लिए सही नहीं है. पूरा ओलपिक वोक लोगों का अड्डा बन गया है और अव्यवस्थाओं की शिकायतों का कोई अंत नहीं है. गर्मी से जूझते खिलाड़ियों को एसी तक न देने पाने वाले इस संघ के विरोध में गोल्ड मेडल लेने वाला बगीचे में जाकर सो जाता है लेकिन संघ का पूरा ध्यान इस बात पर है कि कैसे महिलाओं की रिंग में पुरुष को गोल्ड मैडल दिया जाए. भारत ने अपने खिलाड़ियों के लिए यहां से एसी पहुंचाए लेकिन संघ को शर्मिंदा होने की भी फुरसत नहीं है.