June 21, 2025
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Olympic में विनेश पर निवेश ही क्यों, जब वो नकली पदक से ही खुश हैं

हजार ओलंपिक पदकों के बराबर है यह पदक-विनेश

लीजिए साहब, विनेश फोगाट को तमाम कनस्तर भर भर घी भिजवाने के बाद सर्व खाप पंचायत ने गोल्ड मेडल भी दे दिया.

इसके लिए बाकायदा ओलंपिक के पांच रिंग्स वाला मेडल बनवाया और उस पर सर्वखाप पंचायत का ठप्पा लगाकर विनेश को पहना दिया, विनेश तो पहले ही कह चुकी हैं कि जो माल (मान) सम्मान उन्हें मिल रहा है उसके आगे तो ओलंपिक के हजार पदक भी छोटे हैं. सवाल यह नहीं कि खाप उन्हें स्वर्ण पदक क्यों नहीं दे सकती बल्कि खाप चाहे तो उन्हें अलग से ओलंपिक कमेटी बनाकर हर खेल का स्वर्ण पदक दे सकती है लेकिन यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि जिन्हें ओलंपिक पदक इतना ही छोटा लगता है उन पर सरकार ने करोड़ों रुपया क्यों खर्च किया.

विनेश की बात गलत भी नहीं है, अब जो स्वर्ण पदक ओलंपिक वाले दे रहे हैं उसमें सोना तो बहुत कम है, एफिल टॉवर का लोहा भी मिला हुआ है और यानी कुल जमा भारतीय रुपए में 79750 रुपए का जो पदक ओलंपिक ने बांटा है उससे तो खाप का दिया स्वर्ण पदक ज्यादा कीमती है. आप जिन नीरज चोपड़ा के गाने गा रहे हैं कि कम से कम सिल्वर तो लाया, तो उसके पदक की भी असली कीमत सुन लीजिए, महज 570 ग्राम चांदी वाला यह पदक ओलंपिक वालों को सिर्फ 40800 रुपए का पड़ा है और इसमें भी 18 ग्राम लोहा मिला हुआ है.

आप मनु भाकर के दो कांस्य की भी बातें कर रहे हैं तो समझ लीजिए कि यह तो सिर्फ 1090 में थोक के भाव बनवाए गए हैं यानी मनु के पदकों की कीमत 2180 रुपए की कीमत वाले पदकों को लेकर आप इतने उछल रहे हैं. अब आप जरा हरियाणे के खाप वाले ताऊ से पूछिए कि शुद्ध सोने का तमगा उन्होंने कितने में बनवाया है और जो मुगदर भेंट किए हैं उनकी कीमत कितनी है. सो विनेश की बात गलत भी नहीं है कि ऐसे मान सम्मान पर तो हजार ओलंपिक कुर्बान लेकिन कुर्बान तो तब करें जब अपने पास हों, यहां तो बिना कुछ जीते ही कुर्बान किए जा रहे हैं. पूछने वाले पूछ रहे हैं कि दूसरों का हक मार मार कर दो केटेगरी में जाने वाले हंगामे का जवाब कौन देगा, यह जवाब कौन देगा कि कम वजन केटेगरी में खेलकर जीतने का इरादा था तो वजन कम करने की जिम्मेदारी किसकी थी और यह भी कि यदि ऐसे ही पदक लेने हैं तो ऐसे लोगों को जाने देते जो ओलंपिक पदकों की कीमत समझते हैं न कि वो जो नकली पदक गले में डाल डालकर पूरी हरियाणे में नाचते फिर रहे हैं. इस सबके बाद भी एक बात तो माननी होगी कि विनेश ने एक नई दिशा तो दे ही दी है उन लोगों को जीवन खपा देते हैं एक एक पदक के लिए. सबसे आसान रास्ता निकाल कर विनेश ने दुनियाभर के एथलीटों को बताया है कि मेडल ओलंपिक में जीतना तब कतई जरुरी नहीं जब आप बढ़िया राजनीति कर सकते हों, एक इकोसिस्टम का हिस्सा बन जाएं जहां आपकी बेवकूफियां भी आपकी महाानता की निशानी बताई जाएं और फिर यदि आप रवीश कुमार जैसे कुछ लोगों को विरुदावली गाने के लिए रख सकें तो पचास सौ ताऊ मिलकर आपको गोल्ड मेडल दे देंगे जिसके लिए आपको पसीना नहीं बहाना है बल्कि सिर्फ दिमाग लगाना है कि कहां और किसके साथ राजनीति में उतरना फादे का सौदा है.