Muslims में जातियां हैं ही नहीं या उनका जिक्र नहीं होता
जब जाति नहीं हैं तो प्रमाणपत्र कैसे बनते हैं
पिछले दिनों जब मोदी ने कहा कि हिंदुओं की जाति की बात तो काफी की जा रही है लेकिन मुस्लिमों में जाति को लेकर कोई कुछ नहीं कह रहा तो मुस्लिम धर्म के पैरोकारों ने कहना शुरु कर दिया कि इस्लाम में जाति प्रथा की गुंजाइश ही नहीं है. जबकि हकीकत यह है कि मुसलमान चार श्रेणियों में तो सीधे बंटे हुए हैं. उच्च वर्ग यानी अशराफ में सैयद, शेख, पठान, अब्दुल्ला, मिर्जा, मुगल शामिल किए जाते हैं. पिछड़े वर्ग में कुंजड़ा, जुलाहा, धुनिया, दर्जी, रंगरेज, डफाली, नाई, पमारिया आदि शामिल हैं. पठारी क्षेत्रों में रहने वाले मुस्लिम आदिवासी जनजातियों की श्रेणी में आते हैं. अनुसूचित जातियों के समतुल्य धोबी, नट, बंजारा, बक्खो, हलालखोर, कलंदर, मदारी, डोम, मेहतर, मोची, पासी, खटीक, जोगी, फकीर आदि हैं. इनमें अहमदिया को लेकर तो हालत यह है कि इन्हें मुस्लिम माना ही नहीं जाता और पाकिस्तान में अहमदियाओं के लिए जीवन उतना ही दुश्वार है जितना किसी अल्पसंख्यक का.
देश की ही बात करें तो मुस्लिमों में देश के ऐसी कई जातियां है जो क्षेत्रीयता के दायरे में हैं. जैसे बंगाल में मंडल, विश्वास, चैधरी, राएन, हालदार, सिकदर आदि बंगाल में सबसे ज्यादा हैं. दक्षिण भारत में मरक्का, राऊथर, लब्बई, मालाबारी, पुस्लर, बोरेवाल, गारदीय, बहना, छप्परबंद आदि मिलेंगे तो उत्तर-पूर्व में भी उपजातियों वाले क्षेत्रीय मुसलमान मिलते हैं. राजस्थान में सरहदी, फीलबान, बक्सेवाले आदि हैं. गुजरात में संगतराश, छीपा जैसी बिरादरियां हैं. जम्मू-कश्मीर में ढोलकवाल, गुडवाल, बकरवाल, गोरखन, मरासी, डुबडुबा, हैंगी वगैरह जातियां हैं. तो पंजाब में राइनों और खटीक हैं. यानी यह तो साफ है कि जाति प्रथा मुस्लिम समाज में भी गहरे तक पैठी हुई है. दरअसल सारा खेल सरकार से मिलने वाली सुविधाओं पर एकाधिकार का है. 1931 में हुई जनगणना में बिहार और ओड़ीसा में मुस्लिम डोम, मुस्लिम हलालखोर और मुस्लिम जुलाहों का जिक्र है. बाकी सभी जातियों को हटा दिया गया और सीधे मुस्लिम खाते में डाला गया.
सरकारी दस्तावेजों में मुस्लिमों की जाति लिखने का चलन नहीं है या शातिर तरीके से यह होने नहीं दिया गया यह समझने की बात है. बॉम्बे हाईकोर्ट में मुसलमानों में जाति का उल्लेख करने का प्रचलन न होने वाली बात सामने आई है ऐसे में सवाल है कि जब जाति ही सुनिश्चित न हो तो जातिगत आरक्षण कैसे दिया जा रहा है? आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था में मुसलमानों को ओबीसी में आरक्षण का लाभ मिलता है. तो सवाल उठना तय ही है कि बिना जाति के आरक्षण कैसे मिल रहा है और यदि जातियां हैं तो उनका साफ जिक्र करने में परेशानी कहां है.