Mrinal Pandey से तो इन गालियों की उम्मीद नहीं थी
टिप्पणी -स्मृति आदित्य
दुनिया भर की गालियों के बीच उठते बैठते रहते हम गालियों को सीरियसली नहीं लेते हैं राजनीति की दुनिया और बॉलीवुड की “राखी सावंती” दुनिया में तो बिलकुल भी नहीं…. लेकिन बात तब खलती है जब साहित्य, पत्रकारिता और बौद्धिक विमर्श के गलियारों से गालियां छन कर आती हैं… स्टेण्ड अप कॉमेडी से लेकर वेब सीरिज तक गालियों की प्रदूषित नालियां बह रहीं हैं ऐसे में क्या कहीं कुछ बचेगा जो उम्मीद का दामन थामे रखने को प्रेरित करेगा…. क्या दुनिया में शुद्ध और सात्विक कुछ नहीं बचा… मृणाल जी की बात इसलिए भी बुरी लगी कि उनसे बार बार गरिमामयी और गंभीर होने की उम्मीद करने की गलती हम कर बैठते हैं… समय समय पर वे उन उम्मीदों को बेदर्दी और लापरवाही से तोड़ती नज़र आई हैं. हाशिये पर पटक दिए जाने और भुलाए जाने का यह कैसा खौफ है कि सामान्य मर्यादित व्यवहार भी अब आपसे अपेक्षित करना गुनाह हो गया…. तर्क वितर्क कुतर्क कि कंगना ने उर्मिला को गाली दी थी… इससे मृणाल की गाली और उसका असर कमतर तो नहीं हो जाता… शिवानी जी की सुंदर समृद्ध विरासत को सहेजने और हस्ताँतरित करने के बजाय इस तरह कलंकित तो न किया जाए… और गाली देने वालों के साथ खड़े हर पुरुष स्त्री से सवाल है कि क्या मंडी सिर्फ औरतों के जिस्म से चलती है? क्या पतित पुरुष की अय्याशियाँ और दौलत वहां नहीं बजबजाती… मंडी में रेट औरतों का लगता है मगर जेब कौन खाली करता है? बहरहाल सौ बात की एक बात मृणाल और मृणाल जैसे बौद्धिक क्षेत्रों से आने वाले हर व्यक्ति से एक विशेष संयमित और संतुलित व्यवहार की अपेक्षा थी, है और रहेगी… कोई और अगर जुबान की गन्दगी झरने की तैयारी में है तो विरोध के स्वर का सामना करने को भी तैयार रहे… न मैं कंगना की प्रशंसक और पक्षधर हूं और न मृणाल की विरोधी… बस अच्छे समाज के लिए गालियां बर्दाश्त नहीं कर सकते … और पढ़े लिखे कहे जाने वालों से तो बिलकुल नहीं…