July 17, 2025
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Kejriwal की ‘सफलता’ के पीछे जो सुनीता हैं…

सुनीता केजरीवाल के बारे में ज्यादा जानने से पहले उनके नाम पर गौर फरमा लें, सुनीता का सीधा मतलब अच्छी नीति से है. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर, राष्ट्रपति की तरह पीछे राष्ट्रीय झंडे लगा कर और भगतसिंह व अंबेडकर के वही चित्र पीछे लगा कर अरविंद के पत्र का वाचन करती सुनीता इस बात के लिए लंबे समय से तैयारी कर रही थीं कि यदि पतिदेव जेल जाएं तो मुख्यमंत्री का कामकाज कैसे संभालना है. बेहिचक वो पत्र पढ़ती हैं, पत्र में लिखे झूठ पढ़ती जाती हैं और बिना किसी शर्म के देशसेवा की बात भी कह जाती हैं जबकि पतिदेव देशसेवा में नहीं शराब सेवा में अंदर हैं. बीस साल से ज्यादा सरकारी नौकरी में हिसाब किताब संभालने वाली सुनीता के दो सौ वाले कॉटन सूट से धोखा मत खाइए क्योंकि वह तो अरविंद की अर्धांगिनी होने के नाते वे सीख ही चुकी होंगी कि कैसे ओवरसाइज शर्ट, सादी चप्पल और पुरानी वैगन आर के जरिए दुनिया को चलाया जा सकता है.
उन्हें आम मानने की भी गलती भी मत कीजिए क्योंकि IRS की भूमिका निभा चुकी सुनीता बड़े स्तर के सरकारी कायदे जानती ही हैं. आम गृहिणी वो हैं नहीं वरना अपने बच्चों की झूठी कसम खाने वाले पति के हलक से प्राण खींच लेती लेकिन वो केजरीवाल की पक्की पार्टनर हैं. जब कुमार विश्वास जैसे दसियों साल पुराने दोस्त समझने के बाद साथ छोड़ रहे थे तब आम पत्नी पचास सवाल कर डालती और सही गलत जरूर पूछती. बड़ा बंगला लेते समय, शीश महल पर बेतहाशा खर्च करते देख कर या तमाम शातिरों को पति के आसपास जमा होते भी यदि सुनीता जी ने कुछ नहीं कहा तो वजह क्या रही होगी आप समझ ही सकते हैं. जब पति ने इस दलदल में अपने बेटे को घसीट कर उसको जिम के ठेके में साथ लिया तब शायद ही कोई मां चुप बैठती कि तुम डूब रहे हो तो डूबो मेरे बच्चों को तो बख्श दो लेकिन महत्वाकांक्षा इस परिवार के सिर चढ़ कर इस कदर बोलती है कि वह मक्कारी की हद छू जाती है. केजरीवाल जब भगत सिंह वाला ज्यादा चला देना एक चैनल वाले से कह सकते हैं तो पत्नी को तो समझा ही गए होंगे कि एक्सप्रेशन क्या रखने हैं, कहां और कैसे बोलना है और कपड़े कैसे धारण करने हैं ताकि बेचारगी झलके.

अरविंद के लिए लोग जितने विशेषण इस्तेमाल करते हैं उनमें ठग जैसे तो बहुत हल्के लगते हैं क्योंकि जब आप इस आदमी से धोखा खाए हुए लोगों की लिस्ट देखते हैं तो वह खत्म होने का नाम ही नहीं लेती. जाहिर है हर ऐसे कार्यकलाप के पीछे एक स्त्री जरूर रही होगी जो इस मामले में उनकी धर्मपत्नी हैं. अचरज है कि एक महिला जिसने कभी पति को बच्चों की झूठी कसम खाने से नहीं रोका, बिना सिर पैर के किसी पर भी इल्जाम लगा देने से नहीं रोका, जिसने संदीप दीक्षित जैसे दोस्त की मां पर ही राजनीति के लिए गंदे आरोप लगाने से नहीं रोका, जिसने कभी पति से नहीं पूछा कि चंदा देश के दुश्मनों से तो नहीं ले रहे हो, जिसने खालिस्तानियों से मुलाकात पर कभी पति से सवाल नहीं पूछा, जिसने अन्ना को धोखा देने के बाद भी पति को बाज आने को नहीं कहा और जिसने अपने बेटे को भी इसी दलदल में डालने पर अपने पति का विरोध नहीं किया उसे आज राबड़ी देवी क्रमांक दो कहा जा रहा है. सुनीता कभी राबड़ी नहीं थीं, न हैं और न हो सकेंगी. जो हालात हैं और राजनीति का जो रंग वो पति के साथ देखती आई हैं उसमें उनको मुख्यमंत्री बनने की लालसा स्वाभाविक होगी और यकीन मानिए यदि उन्हें एक बार कुर्सी मिल गई तो शायद केजरी से ज्यादा शानदार नौटंकी वो कर सकने में सक्षम होंगी. फिलहाल आतिशी, स्वाति, सौरभ जैसों को कुर्सी से दूर रखने का दायित्व उन्हें मिला हुआ है और वो अपने दायित्व में सफल होती दिख रही हैं. केजरीवाल जो भी आज हैं उसका आधा और स्वाभाविक श्रेय सुनीता को है लेकिन कल जो वो होंगी उसमें पूरा श्रेय खुद उनका होगा.