Kejriwal की यादों की रील और मान-संजय की झप्पी (भाग 1)
आदित्य पांडे
अब तक केजरीवाल के पास जेल में पूरी जानकारी पहुंच ही चुकी होगी कि ईडी द्वारा गिरफ्त में लेने को जिस तरह वे गलत बता रहे थे उस पर कोर्ट ने किस बुरी तरह फटकार लगाई है और कायदे से यह कह डाला है कि केजरीवाल षड्यंत्र के ही भागीदार नहीं थे बल्कि उन्होंने अपराध को छुपाने की भी हरसंभव कोशिश की. इसी के साथ संजय सिंह और भगवंत मान के गले मिलकर खुश होते हुए फोटो भी उन तक निश्चित ही पहुंची होगी क्योंकि उन्हें कई विशेष सुविधाएं हासिल हैं (जिनमें घर से जाने वाला खाना, पसंद की किताबें वगैरह शामिल हैं) अब कल्पना कीजिए तिहाड़ की जेल नंबर दो में सतेंद्र और मनीष की जेलों के बीच कहीं केजरीवाल इन दोनों खबरों में अपने लिए कौन से भविष्य की कल्पना कर रहे होंगे. जितनी डपट केजरीवाल को हाइकोर्ट ने लगाई है और जितना साफ ईडी के अधिकार को कोर्ट ने माना है उसके बाद यह साफ है कि वे संजय सिंह की तरह जल्द बाहर आने के बारे में फिलहाल नहीं सोच सकेंगे, यूं भी संजय सिंह ने छह महीने का समय जेल में बिताया था और अभी केजरीवाल को एक महीना भी पूरा नहीं हुआ है. केजरीवाल आतिशी, सौरभ और ऐसे ही कुछ ‘दावेदारों ‘ का तो जेल जाने से पहले ही इंतजाम कर गए थे, जिसमें चिटि्ठयों वगैरह जैसे सारे साजोसामान भी थे और सुनीता केजरीवाल की ट्रेनिंग भी थी लेकिन संजय सिंह तब जेल में थे और मान भले ही उनके ड्राइवर बनकर खुशी जताते हों लेकिन केजरीवाल एक पूरे मुख्यमंत्री तो हैं नहीं जैसे भगवंत मान हैं लिहाजा मान का भी इंतजाम बाकी रह गया था. सुनीता जी ने भी कौशल दिखाया, सोनिया से लेकर तेजस्वी तक सभी को एक मंच पर ले आईं, पहली नजर में यह काम केजरीवाल की स्क्रिप्ट से बाहर का लगता है यानी दावेदारी बतौर सुनीताजी बिसूरती सूरत से लेकर सूती ड्रेस तक में बेहतर परफॉर्म कर रही थीं लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. केजरीवाल की स्क्रिप्ट साफ थी कि न मेरे कहीं साइन हैं और न मेरे पास कोई मंत्रालय है, बाकी चाहे जिसे जेल में डाल दो. मनीष को एक साल जेल में हो गया लेकिन केजरीवाल ने ऐसी सक्रियता कभी नहीं दिखाई क्योंकि साथियों का जेल जाते रहना खुद उनके लिए प्रतिस्पर्धा का कम होना है.