July 16, 2025
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Kachnar की ही रंग क्यों बनाया गया अयोध्या मंदिर के लिए

अयोध्या श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में रामलला के लिए गोरखनाथ मंदिर मेंखासतौर पर कचनार से हर्बल गुलाल बनाया गया. आखिर रामलला के गुलाल के लिए कचनार को ही क्यों चुना गया आइये जानते हैं. दरअसल त्रेतायुग में अयोध्या का राज्य वृक्ष होने के नाते, इसे दिव्यता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता था और तब भी इसी का बना गुलाल होली के लिए इस्तेमाल किया जाता था. बौहिनिया वरिएगाटा, जिसे आमतौर पर कचनार के नाम से जाना जाता है दरअसल भारतीय उपमहाद्वीप का एक अनोखा और महत्वपूर्ण वृक्ष है. इसकी खूबसूरती और औषधीय गुणों के कारण, यह पेड़ न केवल पर्यावरणीय बल्कि सांस्कृतिक और आयुर्वेदिक महत्व का भी है.

कचनार का इतिहास और सांस्कृतिक महत्व

कचनार का इतिहास भारतीय संस्कृति के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। प्राचीन काल से ही इसका उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में होता आया है. त्रेतायुग में अयोध्या का राज्य वृक्ष होने के नाते, इसे दिव्यता और पवित्रता का प्रतीक माना जाता था. इसके फूलों का उपयोग होली जैसे त्योहारों में रंगों के रूप में भी किया जाता है, जो प्राकृतिक और सुरक्षित होते हैं. इसके औषधीय गुणों को लेकर भी इसे खास माना जाता है. कचनार के फूल और पत्तियों में एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-बैक्टीरियल, और एंटी-फंगल गुण पाए जाते हैं. आयुर्वेद में इसका उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार में होता है, जैसे कि ग्रंथियों की सूजन, त्वचा रोग, और पाचन संबंधी समस्याएं। इसके अलावा, इसके फूलों का उपयोग खाने में भी किया जाता है, जो स्वादिष्ट और पौष्टिक होते हैं. कचनार का पेड़ पारिस्थितिकी तंत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह पेड़ मधुमक्खियों और अन्य परागणकों के लिए आकर्षण का केंद्र होता है, जो वनस्पति विविधता और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने में सहायक होते हैं। इसकी छाया और ठंडक प्रदान करने वाली प्रकृति के कारण, यह पेड़ वन्यजीवों के लिए आश्रय स्थल का काम करता है.