हिंदी कविता- लौट आओ लड़की, कहां खो गई हो
स्मृति आदित्य
-लौट आओ लड़की… कहाँ खो गई हो….
कैसी बंजर धरती पर अपने सपने बो गई हो -लौट आओ लड़की कहाँ खो गई हो….
कच्च लाल रिबन, खाकी बस्ता, टूटे हुक की काली सेंडल,खिसकती मोज़े…
बचपन की बाल्टी में सब धो गई हो… लौट आओ लड़की कहाँ खो गई हो…
हाँ पता है न,तुम पराई हो गई हो… पर जागने की उमर में तुम क्यों सो गई हो… लौट आओ लड़की कहाँ खो गई हो….
कैरी, जामुन, खीरनी मौलश्री… इमली शहतूत का स्वाद चला गया है जबसे तुम गई हो… लौट आओ लड़की कहाँ खो गई हो…
पेन्सिल की छीलन, रबर की रगड़, स्याही के धब्बे, कागज की कतरन, कापियों की फर-फर, यूँ ही छोड़ गई हो…
खुद से ही क्यों अजनबी हो गई हो… छुपम छाई, घोड़ा बादाम छाई, लंगड़ी पव्वा,नदी पहाड़, पोषम्पा और पांचे… जाने किस मोड़ पर छोड़ गई हो…
बताओ तो लड़की कहाँ खो गई हो… लौट आओ लड़की कहाँ खो गई हो…
चम्पक, पराग, नंदन, टिंकल, सुमन सौरभ और देवपुत्र… चकमक, दमनक, क्षपनक, सुंदर वन की जगमग…
अतीत की दहलीज पर इन्हें क्यों छोड़ गई हो… तुम्हारे लिए लिखी बातों से हमको भिगो गई हो….
लौट आओ लड़की… क्या बहुत दूर चली गई हो… बोलो न क्यों खो गईं हो…
लौट आओ लड़की कहाँ खो गई हो… जहाँ खो गई हो वहां चुप चुप रो रही हो…
बात मानो मेरी, लौट आओ लड़की बता दो जल्दी कहाँ खो गई हो….©स्मृति