hanuman chalisa पढ़ते हुए शब्दों का रखें ध्यान
हनुमान चालीसा पढ़ते हुए आप भी तो नहीं करते ये गलतियां
हनुमान चालीसा को लेकर स्वामी रामभद्राचार्य कई बार कही चुके हैं कि इसे पढ़ते हुए हमें शब्दों का विशेष ध्यान रखना चाहिए और अब तो कई चालीसा में वैसी ही गलती छपी भी आने लगी है जैसी कि बोलने में अक्सर पाई जाती है. तुलसी पीठाधीश्वर संत का यह भी कहना है कि कम से कम चार गलतियां ऐसी हैं जो हनुमान चालीसा में बोली जाती हैं और दिक्कत यह है कि अब चालीसा में छपा भी वैसा ही आ रहा है. रामभद्राचार्य के अनुसार जो सबसे बड़ी गलती हो रही है वह है ”शंकर सुवन केसरी नंदन’ कहने की क्योंकि इससे अर्थ का अनर्थ हो रहा है. मूल रुप से यह ‘शंकर स्वयं केसरी नंदन’ है और इसका अर्थ भी सीधा है कि शिव शंकर का ही अवतार हनुमान हैं लेकिन जब हम शंकर सुवन बोलते हैं तो मतलब गणेश या कार्तिकेय हो जाता है क्योंकि शंकर सुवन यानी शंकर पुत्र तो ये दोनों ही हैं जबकि हनुमान तो मारुतिनंदन हैं. इसी तरह हनुमान चालीसा के अंतिम हिस्से में कहा जाता है ‘सदा रहो रघुपति के दासा’ इसे लेकर संत का कहना है कि सदा की जगह सादर शब्द इस्तेमाल होना चाहिए. रामभद्राचार्यजी का कहना है कि तुलसीदास ने ये गलतियां नहीं की हैं बल्कि बाद में ये गलतियां होती गईं और उसी के अनुसार चालीसा छपते जाने के चलते ये गलतियां आम हो गईं जबकि इन्हें सुधारे जाने की जरुरत है.