June 21, 2025
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Gangaur पर्व के पूजन के पीछे की कथा

गणगौर के महाव्रत के दौरान यह जानना भी आवश्यक है कि गणगौर और ईसर पूजन क्यों किया जाता है.

गणगौर की कथा – एक बार भगवान शंकर पार्वती जी के साथ भ्रमण के लिए निकले, उनके साथ देवर्षि नारद भी थे. चैत्र शुक्ल तृतीया का दिन था जब वे एक गाँव में पहुंचे.सभी ग्रामीणजन निर्धन स्त्रियाँ उनके स्वागत के लिए थालियां सजाकर, हल्दी अक्षत लेकर पूजन हेतु पहुंचीं. पार्वती जी ने पूजा भाव से प्रसन्न होकर सुहाग रस उन पर छिड़क दिया. वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटीं. धनी वर्ग वाली स्त्रियाँ कई पकवान सोने चाँदी के थालों में सजा कर पूजन हेतु पहुंचीं. इन्हें देख शंकर भगवान ने पार्वतीजी से पूछा- तुमने सारा सुहाग रस पहले आई स्त्रियों को दे दिया है अब इन्हें क्या देना है. पार्वतीजी ने कहा- प्उन स्त्रियों को ऊपरी पदार्थो से बना रस मिला है और इन स्त्रियों को अब मैं अपनी अंगुली चीरकर रक्त से सुहाग रस दूँगी. इन स्त्रियों ने पूजन समाप्त किया तो सचमुच पार्वती जी ने अपनी अंगुली चीरकर रक्त उन पर छिड़क दिया. जिस पर जैसे छीटें पडे उसे वैसा ही सुहाग मिल गया. इसके बाद पार्वती जी स्नान कर आईं और स्नान फिर बालू की शिव प्रतिमा बनाकर पूजन किया. पार्वती को वरदान मिला कि इस दिन जो स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी होगा. इतना सब करते करते पार्वती जी को काफी समय हो गया. पार्वतीजी वापस वहां पहुंचीं जहाँ वे भगवान शंकर व नारदजी को छोड़ स्नान पूजा के लिए गई थीं. शिवजी ने विलम्ब को लेकर पूछा तो पार्वती जी ने मेरे भाई-भावज नदी किनारे मिले, उन्होने मुझसे दूध भात खाने व ठहरने का आग्रह किया. इसी कारण से देर हुई. भगवान शंकर भी दूध भात खाने हेतु नदी तट पर चल दिए. पार्वतीजी ने मौन भाव से प्रभु प्रार्थना की कि अब आप ही मेरी लाज रखना. प्रभु के पीछे ही पार्वती मां भी चल रही थीं और उन्हें दूर नदी तट पर माया महल दिखा. महल में शिवजी के साले तथा सहलज ने शिव का आतिथ्य किया. दो दिन बाद जब वापस कैलाश चलने का आग्रह किया तो शिवजी चलने को तैयार न हुए. पार्वती जी रुष्ट हुईं तब शिव चले लेकिन कुछ ही दूरी पर उन्हें याद आया कि वे अपनी माला भूल आए हैं. शिवजी ने पार्वतीजी को न भेजकर नारद जी को माला लाने भेजा. वहाँ नारद जी को कोई महल नहीं दिखा लेकिन माला एक वृक्ष पर दिख गई. इससे नारद जी समझ गए कि यह मां पार्वती का रचा हुआ खेल है, इस बारे में चर्चा हुई तो देवी पार्वती ने कहा कि यह तो शिवजी की ही माया है क्योंकि मैंने तो उन्हीं से लाज रखने को कहा था.