July 17, 2025
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Daughters Day- जो सुलगते संसार को सृजन की ओर मोड़ देंगी

-सहबा जाफरी

अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजो-
-सहबा जाफ़री
-बेटियां ईश्वर की बगिया का सबसे सुन्दर फूल हैं. वे जीवन की गति और विराम के बीच संतुलन का वह बिंदु हैं जिन्हें हम विश्राम कहते हैं. वे धूप में छांव हैं, वीराने में गांव हैं, समय के अविश्वास में विश्वास की धुरी हैं, चाहे ज़िन्दगी कितनी ही अधूरी हो, वे अपने आप में पूरी की पूरी हैं. बेटा न हो तो आंगन कसकता है, पर बेटियां न हो तो आंगन कहां महकता है! कभी कभी तो लगता है, देहलीज़ की रंगोली से पिछले द्वार के बगीचे तक, पूरी कायनात का सारा कुदरती नूर जैसे इन्ही के दम से है. कुमार विश्वास साहब ने बेटियों के इस पूरेपन को बड़े ही सुन्दर ढंग में शब्दों में ढाल लिखा है, “बेटियाँ शीतल हवाएं हैं जो, पिता के घर बहुत दिन तक नहीं रहतीं / बेटियाँ पावन ऋचाएं हैं, बात जो दिल की कभी खुल कर नहीं कहतीं”. बेटी दिवस पर आईये, बेटियों से ही जाने बेटी होना इस जन्म में कितना सार्थक रहा और बेटी की माँ होना स्वयं में कैसा अनुभव है:

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सैफिया विज्ञान महाविद्यालय भोपाल के वाणिज्य एवं प्रबंधन विभाग की प्रोफ़ेसर एवं हैड, डॉ मिन्हाल हैदर, एक सुयोग्य प्राध्यापिका , कुशल प्रबंधक एवं एक सफल शिक्षिका भी हैं. मासूम एवं नमकीन सुश्री हैदर व्यक्तित्व की धनी एवं पराक्रमी बेटी हैं. वे अपने माता पिता को अपने जीवन का सबसे समर्थ संबल मानती हैं उन्हें अपने बेटी होने पर गर्व है और विभाग की छात्राओं के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का एहसास उन्हें सदैव चौकन्ना रखता है. उनके अनुसार बेटी होना एक सुन्दर किन्तु सजग रहने वाला एहसास है. बतौर प्राध्यापिका वे बेटियों को मज़बूत एवं समर्थ रहने का सन्देश देते हुए अपने बेटी होने पर गर्व करती हैं उनका कहना है कि अगर दुबारा जन्म लेने का अवसर मिले तो भी वे अपने माता पिता की बेटी ही होना चाहेंगी.

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इसी महाविद्यालय की प्रोफ़ेसर प्रगति तारकश चौधरी, अपने महिला, बेटी और एक बिटिया की माँ होने को एक उपलब्धि से कम नहीं मानती. अपने मुस्कुराते हुए व्यक्तित्त्व के पूरे आत्मविश्वास को संजो वे कहती हैं “ बेटी होना ईश्वर का वरदान है और दुबारा जन्मने पर बेटी ही बने रहना मेरे हृदय की सबसे बड़ी कामना है.”


प्रबंधन की प्रोफ़ेसर डॉ शहाना, एक धीर गम्भीर युवती हैं. बेटी होना उनके लिए सौभाग्य की बात है. वे कहतीं हैं, बतौर बेटी आप जीवन को अपनी सबसे सकारात्मक ऊर्जा दे सकते हैं.

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वहीं प्रोफ़ेसर मसर्रत अपने सपाट लहजे और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध हैं. उनका कहना है , बेटी होना किसे बुरा लगता है! किन्तु बेटी होना सरल नहीं हैं, “ बेटी का अस्तित्त्व प्रश्नचिन्हों से प्रारम्भ होकर विस्मय वादिता पर समाप्त होता है, उसके जीवन में सब कुछ अनायास होता है; एक दिन अचानक वह बड़ी होती है; एक दिन अचानक ब्याह दी जाती है, एक दिन अचानक उसकी आचार संहिता बदल दी जाती है , बस इसी चुनौती को स्वीकार लेने का नाम बेटी है.” अपना अगला जन्म वह बेटी के रूप में ही पसंद करती हैं और उनका कहना है , “ बेटी, बेटे से ज़्यादा जीवटता रखती है”.

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महाविद्यालय की सबसे युवा प्रोफ़ेसर सुश्री दीक्षा को स्वयं के बेटी होने पर एक अलग एहसास होता है किन्तु वे बेटियों को आये दिन अत्याचार , यौनाचार और कुकृत्यों का शिकार देखते हुए दुखी हो जाती हैं, उनका कहना है “बेटी दिवस” से अधिक आवश्यकता संसार भर के बेटों के लिए एक “पाठशाला दिवस” की है जहां बेटों को सिखाया जाए कि बेटियों को किस प्रकार देखा जाना है. अगले जन्म में बेटी ही रहना उनकी परम इच्छा है.

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राधारमण इंजीनियरिंग कॉलेज भोपाल की संचार कौशल की प्राध्यापिका प्रोफ़ेसर आभा चतुर्वेदी संघर्ष करती सुन्दर युवतियों की श्रेणी में आती हैं, उनमें कलात्मकता है, और वे बेटियों को सज्जा और सौंदर्य का परिपाक मानती हैं, उनका कहना है “ बेटी बनना लब्धि है, बेटी जनना उपलब्धि है.” वे अपने बेटी होने को हर कोण से सराहती हैं , और हर जन्म में बेटी होना चाहती हैं.

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सिविल इन्जीनियर और साहित्यिक व्यक्तित्व का सुन्दर संगम श्रीमती नेहा व्यास एक सुन्दर पुत्री की माँ भी हैं. वे कहती हैं, “ बेटी इस्पात का वह जाल है, जिस पर संबंधों की छत ढलती है; वह नीव का ऐसा पत्थर है जिस पर दो परिवारों की आधारशिला खडी होती है. बेटी रिश्तों की दरारों को भरने वाली वह सीमेंट है, आपके भरोसे को कभी नहीं टूटने देगी.” बेटी होना उनके लिए एक सुखद एहसास है और हर जन्म में बेटी होना उनकी ख्वाहिश.

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किसी ज़माने के भोपाल की यादों में बसीं , श्रीमती किश्वर ‘शमा’ शहर की प्रतिष्ठित ब्यूटीशियन और नामचीन सौन्दर्य विशेषज्ञ रह चुकी हैं. वैसे तो वे तीन बेटों की माँ हैं किन्तु आगरा और लखनऊ तक की दुल्हिनें सजाते सजाते उन्हें बेटियों से कब प्रेम हो चला उन्हें अंदाज़ तक नही हुआ. वे कहती हैं बेटियाँ ईश्वर की मासूम हंसी का सुन्दर सा उदाहरण हैं. इनके बिना जीवन अधूरा है. समय सदा ही बेटियों के लिए चुनौतीपूर्ण रहा है पर इसका अर्थ यह तो न हुआ कि बेटियाँ जन्म लेना ही बंद कर दें! हमें बेटियों को मज़बूत बनाने का उपक्रम करना होगा . जिस दिन इस्पात में ढली बेटियाँ अपने जीवन की कार, जैक पर चढ़ा उसका पहिया सम पर ला सकेंगी समाज उस दिन मजबूत होगा.

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सुश्री रीना मेहता शीरीन रहवासी समिति की सक्रिय सदस्या, समाज सेविका, और गायिका हैं.और अगले जन्म में भी एक बेटी और एक गायिका बनना चाहती हैं. सुरों में ढला उनका व्यक्तित्व और सलीके से चयनित परिधान उनकी सुन्दर रूचि के परिचायक हैं. वे एक बेटी होने के साथ साथ एक सुन्दर बेटी की माँ भी हैं, बेटी बन कर जन्म लेना उनके लिए ईश्वर का उपहार है किन्तु उनका कहना है हमें बेटों को शिक्षित करना होगा कि बेटियाँ वस्तु नहीं और उनको भी सामाजिक सम्मान की आवश्यकता है.

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डॉ सरिता साहू जो सारे भोपाल शहर की खुराक तय करती हैं, शहर की नामचीन डाईटीशियन हैं. वे बेटी होने के एहसास को कुछ अलग शब्दों में बयान करती हैं. उनके अनुसार बेटी होना आपका अस्तित्व रचता है, पर आप सही मानों में, माँ के रूप में उस दिन जन्म लेते हैं जब एक बेटी को जन्म देते हैं.” वे अपने हर जन्म में बेटी ही बनना चाहती हैं.

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सुश्री प्रीति मालवीय एक प्रतिष्ठित संस्थान में ब्यूटी थैरेपिस्ट हैं. विधाता ने जहां एक ओर इन्हें मुक्त हस्त से सौन्दर्य दिया है इनके जीवन में एक कमी भी लिख दी है . इनके अनुसार वे दो सुयोग्य सुन्दर पुत्रों की माँ हैं किन्तु बेटी का आभाव वे सदा महसूस करती हैं. वे ईश्वर का आभार प्रकट करती हैं कि वे एक बेटी हैं.

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होममेकर श्रीमती सोलंकी अपनी दो सुन्दर पुत्रियों पिहू और कुहू के साथ और श्रीमती शीबा पठान अपनी एक पुत्री के साथ अपने स्वयं के पुत्री होने पर ईश्वर को धन्यवाद कहती हैं. इनका मानना है कि, “ बेटी होना बुरा नहीं, पर बुरा तब लगता है जब एक स्त्री, दूसरी स्त्री का तिरस्कार करे; हमें अपनों से ही घाव मिलें और अपने ही अपनी अग्नि परीक्षा ले डालें.” वे संसार की सारी बेटियों के लिये सुन्दर आशीर्वाद भी देती हैं और स्वयं की बेटियों पर भी गर्व करती हैं.

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झरने जैसी हँसी वाली लीना मैडम एक महाविद्यालय में लाब्रेरियन हैं, उनको लगता है कि दुनिया बेटियों के लिए निष्ठुर है, और क्रूर भी किन्तु स्वयं को प्रसन्न, और सुरक्षित रखने की ज़िम्मेदारी बेटियों की स्वयं की है

प्रोफ़ेसर शहाब अंक गणित के प्रोफ़ेसर और दो सुन्दर बेटियों के पिता हैं. उनका कहना है, “ संसार यदि चील है तो हमें अपनी बेटियों को बाज़ का अंदाज़ देना हैं/ वे अब आंगन की चिड़िया नहीं, उन्हें उड़ने को ऊंची परवाज़ देना है.” डॉ ताजदार एक निजी कॉलेज के, प्रबंधन के प्रोफ़ेसर, बेटियों के लिए बहुत गहन चिंतन रखते हैं. वे मानते हैं पृथ्वी विनाश के अंतिम दौर से गुज़र रही है, संसार भर के पुरुष लड़ने मरने में रत हैं, युग को अपने अंतिम अवतार की तलाश है , ऐसे में बेटियाँ ही अंतिम विकल्प हैं जो सुलगते संसार को सृजन की ओर मोड़ देंगी .”

हे आर्यावर्त की बेटियों उठो! इस बेटी दिवस पर जागो , कि संसार तुम्हारी ओर देख रहा है. युग परिवर्तन के लिए.