July 21, 2025
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World Bicycle World 3 जून पर बचपन के कच्चे कोमल कराहते किस्से

आलेख – स्मृति आदित्य

वो गहरे कत्थई और सांवले रंग की इकहरी सखी जिसे सब साइकिल कहते हैं वह मेरी स्मृति में यदा कदा ट्रिंग ट्रिंग कर जाती है और मैं उसकी तिकोनी सीट पर बैठ कर अपने बचपन की गलियों में भटक आती हूं… इस साइकिल ने मेरी जिंदगी को भी बैलेन्स करना सिखाया है, इसी ने मुझे आगे और आगे बस आगे ही आगे देखने की सीख दी है….

जब पहली बार थाम रही थी हैंडल तो दिल में कैसी कैसी तो गुल गुल हो मची थी… थोड़ा थोड़ा डर, थोड़ा थोड़ा रोमांच, थोड़ी थोड़ी खुशी का वो कैसा त्रिवेणी संगम था ….सर सर सर हवा चले और फर फर फर साइकिल बढ़े… फिर एक लहर आई और धड़ाम….गिरना सायकिल चलाने की अनिवार्य घटना है… और उस पर भी घुटना कोहनी छीलना जैसे जरूरी चैप्टर… इसे पढ़े बिना इस सखी के साथ दोस्ती संभव ही नहीं…. मुझे दो बड़े प्यारे लेकिन कराहते किस्से आज भी याद है….

उम्र तो याद नहीं… बचपन के ही दिन थे… बड़े मामाजी की सुंदर सी सायकिल की आगे लगी टोकनी में बैठ कर सैर करने का नियम था …एक दिन वह टोकनी किसी और साजसज्जा के लिए गई थी… मामाजी ने पूछा सीट के आगे जो जगह है वहां बैठ जाओगी …मन तो नहीं था पर बैठ गई उस डंडे पर…बैठे बैठे पैर हो गया सुन्न और साइकिल की ताड़ियाँ पैरों में चुभ गई… मुझे तो एहसास तक नहीं …जब मामाजी ने ही देखा तो डर के मारे पहले डॉक्टर के यहां ले गए फिर घर लाए… मां ने कोहराम मचाया तो ठीकरा मेरे माथे ही फूटा की ऐसी कैसी बेसुध है तुम्हारी लड़की… पैर साइकिल में फंसा तो दर्द हुआ होगा न बताना चाहिए उसे ही… महीने भर तक जब तक टांग और पंजे की खरोंच का इलाज चला पूरे घर में चर्चा का विषय यही था…. गुड्डी का पैर साइकल में फंसा और उसे पता तक न चला….

दूसरा किस्सा कुछ यूं है कि सखी ज्योति के साथ महाकाल मंदिर तक चुपचाप साइकिल लेकर गए और कीचड़ में लथपथ अस्त व्यस्त लौटे…. उस दिन जितना अपने आप पर और अपने हालात पर हम टूट टूट कर पेट पकड़ पकड़ कर हंसे थे वैसी हंसी तो अब आती ही नहीं है…. बहरहाल … बाद में सायकिल से दोस्ती भी रही और मोहब्बत भी… फिलहाल वर्ल्ड साइकिल डे पर उस कत्थई सांवली सखी के नाम मेरा ये प्यार भरा पैगाम…. आओ न कभी मेरे बचपन को लेकर मेरे आंगन में… बहुत धूल जमी है यादों के पन्नों पर …आओ थोड़ी फूंक मारें…