Colours ऐसे भी बनते हैं पता ही नहीं था
रोटरेक्ट अक्षत श्रीवास्तव व अध्यक्ष कनक शर्मा के साथ पूरी टीम जिमी मगिलिगन सेंटर, सनावदिया पहुंच कर यह जाना कि जनक दीदी कैसे एक सस्टेनेबल लाइफ जीती हैं और होली पर वो कैसे नेचुरल कलर्स बनाने का प्रशिक्षणण् दे रही हैं. सोलर कुकर ,ड्रायर, जैविक फार्म, पानी और खाद्य पदार्थों को सहेजने की विधि समझते हुए सभी रोटरेक्ट काफी प्रसन्न हुए. सत्र के दौरान, हमें आसानी से उपलब्ध पौधों का उपयोग करके गुलाल और पानी आधारित रंगों जैसे पर्यावरण-अनुकूल रंग तैयार करने के बारे में जानकारी दी गई. सबसे पहले, जनक मैडम ने हमें पोई बीजों से परिचित कराया, जिन्हें मालाबार पालक के बीज भी कहा जाता है, जो आश्चर्यजनक लाल या बैंगनी रंग देते हैं। बस बीजों को मसलने भर से, वे अपना जीवंत रंग छोड़ते हैं, जो पानी में आसानी से घुल जाता है. इसके बाद, उन्होंने बोगेनविलिया फूल से जैविक गुलाल बनाने के लिए उपयुक्त हैं. पंखुड़ियों को धूप में सुखाने के बाद, अक्सर गुलाब की पंखुड़ियों के साथ मिलाकर, हम रंग का सूखा रूप प्राप्त करने के लिए उन्हें बारीक पाउडर में पीसते हैं. पलाश के सूखे फूल से रंग बनाने की विधि भी बताई गई. रोटरेक्ट्स ने कहा कि हमें प्राकृतिक रंग बनाने की कला को समझने में आपकी अंतर्दृष्टि और मार्गदर्शन से हम सभी को बहुत लाभ होगा। हमारे लिए यह एक आकर्षक, रचनात्मक , रोचक और उत्पादक कार्यशाला हैं. ऐसी शिक्षा के प्रति आपकी प्रतिबद्धता और उदारतापूर्वक अपना समय और विशेषज्ञता प्रदान करने के लिए धन्यवाद.