Basant Panchami क्यों खास है यह त्योहार
बौराए आमों और मन के उल्लास को मिलाता वसंत
मौसम में गर्मी की आहट पर हमारी तंद्रा टूटती है कि शिशिर की कड़ी ठंडक अब गुलाबी हो चुकी है. लजाता सा वसंत आया है. गांव की पगडंडियों पर आम के बौर और फूलों के पीतांबर हैं तो सरसों हरे खेतों पर पीली आभा डाल देती है. वसंत में धरा लहलहा जाती है. वसंत धरती का वात्सल्य ही है. होली के सप्तरंग यहीं से तैयार होने लगते हैं. आम वसंत में ही बौराते हैं. वसंत हर आम को भी खास बनाता है. आम ही न बौराए बल्कि यह लहर लोगों के उल्लास तक पहुंचती है, वे भी बौराने लगते हैं.
कोई बौराए तो समझ लें कि उसे सब वांछित मिल गया है. वसंत इसी मिलन का नाम है. देवी सरस्वती की आराधना के मंत्र कान में गूंजने लगें तो उम्मीद यह कि अब तमस तो दूर हो ही जाएगा. वसंत, उत्तरायण में आए सूर्य का प्रमुदित हो आशीष बरसाना है. पतझड़ में गिर रहे पत्ते नव किसलयों को संदेश दे रहे होते हैं कि पालकों के ऋण से उऋण नहीं होना है. वसंत में खुशी, ज्ञान, मान, सम्मान और प्रकृति का गान सब एक साथ पल्लवित होते हैं. सब वसंत का प्रताप है. श्यामवर्ण कृष्ण तक को वासंती पीताम्बर प्रिय है. वे गीता में कहते हैं, “ऋतुनां कुसुमाकरः” रितुओं में मैं वसंत हूं. रुखी सी हर डाल वसंत का बेसब्र इंतजार करती है जिसे निराला ने शब्द दिए हैं ‘रुखी री यह डाल वसन वासंती लेगी’