Environment बारहनाजा पद्धति कैसे अब भी हमारे लिए काम की है
1980 के दशक में देसी बीज बचाने के लिए ‘बीज बचाओ आंदोलन’ की शुरूआत हुई थी. इसके तहत शंकर बीज आने के बाद लुप्त हो रहे पारंपरिक देसी बीज एकत्र कर उन्हें फिर खेती की मुख्यधारा में लाने की कोशिश की गई. ‘बारहनाजा’ का शाब्दिक अर्थ बारह अनाज है, पर इसके अंतर्गत दलहन, तिलहन, शाक-भाजी, मसाले व रेशा शामिल हैं. इसमें 20-22 प्रकार के अनाज होते हैं. इन अनाजों में कोदा (मंडुवा), मारसा (रामदाना), ओगल (कुट्टू), जोन्याला (ज्वार), मक्का, राजमा, गहथ (कुलथ), भट्ट (पारंपरिक सोयाबीन), रैयास (नौरंगी), उड़द, सुंटा, रगड़वांस, तोर, मूंग, भगंजीर, तिल, जख्या, सण (सन), काखड़ी इत्यादि. ये सभी कम पानी में हो जाते हैं. जब गेहूं नहीं था तब इन्हीं पौष्टिक अनाजों को खाया जाता था. बीज बचाने के पूरे आंदोलन में महिलाओं को प्राथमिकता दी. वे कहते हैं कि ‘बारहनाजा’ मिश्रित फसल पद्धति है, जिसमें खरीफ की फसलें होती हैं. इस पद्धति में मिट्टी के साथ रिश्ता कायम करके उसकी सेवा की जाती है. यह मिट्टी को उपजाऊ बनाने का काम करती हैं. ये फसलें एक दूसरे की पूरक हैं. रामदाना, मंडुवा, ज्वार ऊपर की तरफ ऊंची बढ़ती हैं. बेलवाली दालें उससे लिपट जाती हैं. एक दूसरे को सहारा देती हैं, नियंत्रित करती हैं और उन्हें बढ़ाने में सहायक होती हैं. ‘बारहनाजा’ की फसलें मई-जून में बोई जाती हैं और सितंबर-अक्टूबर में उनकी कटाई हो जाती है. इससे लोगों को काम भी मिलता है. चार महीने खेत खाली रहते हैं. यानी इस बीच खेतों की छुट्टी होती है, इससे खरपतवार का नियंत्रण होता है, मिट्टी फिर से उपजाऊ बनती है. पालतू पशु किसानी की रीढ़ हैं. लम्बे ठंडल वाली फसलों से जो भूसा तैयार होता था, उसे पशुओं को खिलाया जाता था. जंगल में भी चारा बहुतायत से मिलता था. पशुओं के गोबर व मूत्र से जैविक खाद तैयार होती थी जिससे जमीन उपजाऊ बनी रहती थी.
यह खेती लगभग बिना लागत वाली है. बीज खुद किसानों का होता है, खाने वाला अनाज खाओ किन्तु बीज जरूर रखो का सिद्धांत बेहदम काम का था. ‘बारहनाजा’ जैसी पद्धतियां स्थानीय हवा, पानी, मिट्टी और जलवायु के अनुकूल हैं. जलवायु बदलाव के दौर में यह और उपयोगी हैं, क्योंकि देसी बीजों में प्रतिकूल मौसम को सहने की क्षमता होती है. ‘बारहनाजा’ पद्धति से पर्यावरण रक्षा करते हुए उत्पादन वृद्धि को
टिकाऊ रूप दिया जाता है. इससे मिट्टी और पानी का संरक्षण भी होता है.