May 2, 2025
और भीलाइफस्टाइल

AI को भी होती है भूलने की बीमारी यानी डिमेंशिया

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल की रिपोर्ट में इंसानों जैसी परीक्षा रहे पुराने मॉडल फिसड्‌डी

विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट कह रही है कि एआई यानी आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ने दुनियाभर में करीब 50 करोड़ लोगों तक पकड़ बना ली है यानी इतने लोग तो इसका इस्तेमाल किसी न किसी तरह करना शुरु कर ही चुके हैं. 209 देशों में हर आठ में से एक कर्मचारी एआई को दफ्तर के काम में इस्तेमाल कर रहा है. लोग अपनी समस्याएं डॉक्टरों से पहले एआई को बताने लगे हैं. इस बीच ब्रिटिश मेडिकल जर्नल की रिसर्च कहती है कि एआई के पुराने मॉडल डॉक्टरों के लिए उपयोगी नहीं हैं क्योंकि एआई के सभी लार्ज लैंग्वेज मॉडल के पुराने संस्करण में डिमेंशिया यानी भूलने की बीमारी से ग्रस्त हो रहे हैं. जिन चैटबॉट के बारे में रिपोर्ट ने जिक्र किया है उन्हें लेकर कहा गया है कि इंसानों की ही तरह जेनेरेटिव एआई की भी याददाश्त धीरे धीरे खराब होने लगती है और लगातार घटती जाती है. यानी कृत्रिम बुद्धि की भी सोचने, समझने और सीखने की क्षमताएं समय के साथ घटती जाती हैं, इसका सीधा मतलब है कि एआई भी बूढ़ा होता जाता है.

मेडिकल जर्नल वाले वैज्ञानिकों ने इंसानों में डिमेंशिया के शुरुआती लक्षण बताने वाले ‘मॉन्ट्रियाल कॉग्निटिव असेसमेंट टेस्ट सीरीज का इस्तेमाल एआई चैटबॉट के लिए किया. इसमें एआई चैटबॉट के पुराने मॉडल का प्रदर्शन बहुत बुरा रहा. इस टेस्ट के लिए एआई को भी वही निर्देश पालन करने थे जो इंसानों की जांच में काम लिए जाते हैं. पेशेवर न्यूरोलॉजिस्ट ने जब रिजल्ट बनाया तो चैट जीपीटी ने 40 पाइंट लेकर ठीकठाक प्रदर्शन किया जबकि जेमिनी को चौथी रैंकिग मिली. बढ़ते क्रम में नंबरों और शब्दों को एक दूसरे से जोड़ने और एक तय समय दिखाती हुई घड़ी का चित्र बनाने में एआई फिसड्डी रहे. दरअसल लगातार सुधर रहे एआई चैटबॉट अच्छी ट्रेनिंग और डेटा की गुणवत्ता से सुधर रहे हैं जबकि पुराने मॉडल ज्यादा समय में भी अच्छा रिजल्ट नहीं निकााल सके. नए मॉडल का अलगोरिद्म बेहतर और नया होता है इसलिए वे ज्यादा अच्छी याददाश्त रखते हैं.