कामकाजी लड़की के लिए ग़ज़ल : एक लड़की जो ख़ुद में ही रहती मगन
-डॉ. सेहबा जाफ़री
-चांदनी से धुली, पर्वतों की थकन
एक लड़की जो ख़ुद में ही रहती मगन
उसके पैरों में बिजली की हैं पायलें
उसकी साँसों में खुशबू की हैं झाँझरें
उसके चेहरे पे सूरज ने कलमा लिखा
उसके माथे पे किरणों का झूमर खिला
उसका इमकां की फर्दा की एक आस है
उसके शबो रोज़ ही उसका एहसास है
ये घटा, ये फ़िज़ा, मस्त सरशार है
या पसीने से तर उसका रुखसार है
उसकी मेहनत से रंगत गुलाबी हुई
देखो कलियों को उससे चुराई हँसी
उसके जल्वे को देखें तो जल जाएँ सब
उस तजल्ली की ताब न ला पाएँ सब
वो एक लड़की जो कुहसार से लड़ पड़ी
वो जो लड़की है मासूम, ओ ज़िद्दी बड़ी
ग़ौर से देखो उससे से है ज़िंदा जहां
ग़ौर से देखो, जो दिल है धड़कता हुआ
डॉ. सेहबा जाफ़री ©️