Himachal में क्या विक्रमादित्य हो सकते हैं बागी
सुक्खू का अलग ही दुख, विक्रमादित्य पर हाईकमान का फोकस
हिमाचल प्रदेश में मंडी सीट को सबसे हॉट सीट्स में गिना जा रहा था क्योंकि विक्रमादित्य सिंह ने कांग्रेस से चुनाव लड़ना तय किया था और सामने से कंगना भाजपा से उतर गई थीं. अच्छी खासी फील्डिंग के बाद भी विक्रमादित्य हार गए लेकिन फिर भी राज्य में मंत्री तो बन ही गए हैं.
अब कंगना के बोल बचन से भाजपा परेशान है और खुद कंगना भी बार बार अपने शब्द वापस ले लेकर थकती नजर आ रही हैं, दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए विक्रमादित्य सिरदर्द बन रहे हैं. विक्रमादित्य ने योगी सरकार की तर्ज पर दुकानों पर मालिक और काम करने वालों के नाम लिखने की अनिवार्यता पर जोर दिया तो सुक्खू सकते में आ गए. बात दिल्ली दरबार तक पहुंची और वेणुगोपाल से मुलाकात के बाद कहा तो जा रहा है कि सब ठीक हो गया है लेकिन विक्रमादित्य सारी बातें लेकिन, किंतु और परंतु के साथ कह रहे हैं. सीएम सुक्खू के लिए वे तब तक परेशानी बने रहेंगे जब तक आलाकमान उनकी सुनता रहेगा.
दूसरी तरफ कंगाना की ‘इमरजेंसी’ के अटकने के पीछे भी भाजपा का ही एक गुट माना जा रहा है वरना अपनी ही पार्टी की सरकार में इमरजेंसी जैसे भाजपा के भुनाऊ मुद्दे पर बनी फिल्म अटकने का कोई कारण समझ नहीं आता. विक्रमादित्य कितने दिन तक दबाव सहन करेंगे यह देखने लायक बात है और यदि वो जिस अंदाज में चल रहे हैं वैसे ही चलते रहे तो कांग्रेस में रह पाना उनके लिए ज्यादा समय के लिए संभव नहीं होगा. कंगना को पिछले एक सप्ताह में दो बयान वापस लेने पड़े हैं और अब वो तीसरे मुद्दे पर यानी गडकरी जी के ढ़ाई सौ करोड़ से ज्यादा वाले हाइवे के खिलाफ खड़ी हो गई हैं. ऐसे में वो भी घुटन तो महससू कर ही रही हैं, यहां तक क एक माफीनामा तो उन्होंने इन शब्दों के साथ ही पढ़ा कि मेरे निजी विचार नहीं होना चाहिए बल्कि पार्टी का स्टैंड होना चाहिए, वो अपने निजी विचारों को कब तक काबू में रख सकेंगी यह भी देखने वाली बात होगी. कुल जमा यह कि मंडी सीट से लड़े दोनों प्रत्याशी अपनी अपनी पार्टी के लिए मुश्किल बन रहे हैं और यदि पाला बदल की नौबत आई तो मामला ज्यादा रोचक हो सकता है.