DAVV में नए कुलपति चुनने में ‘खेल’ क्यों हो रहा है
कुलपति चुनने वाली कमेटी ने आधार क्या तय किया है
इंदौर के देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में कुलपति के चयन को लेकर आखिर खेल क्या चल रहा है यही समझना मुश्किल है. तीन सदस्यीय स्क्रूटनी कमेटी ने दर्जन भर नाम शॉर्टलिस्ट किए थे और इनमें इंदौर से पांच नाम थे. प्रदेश भर से बाकी सात नाम और इंदौर से पांच नाम आवेदन कमेटी ने लिए लेकिन जिन्हें इंटरव्यू के लिए बुलाया गया वे नाम चार ही थे.
ये चार नाम डॉ. आशुतोष मिश्रा, डॉ. राजीव दीक्षित, कन्हैया आहूजा के साथ सचिन शर्मा हैं. डॉ. संजय दीक्षित भी इसमें शामिल होते लेकिन उन्होंने इंटरव्यू न देने का मन बना लिया. शॉर्टलिस्टेड नामों में सबसे ज्यादा डिग्रीधारी और अनुभवी प्रोफेसर मंगल मिश्रा हैं जिनके पास छह पीएचडी के अलावा डीलिट् भी है. दर्जन भर बड़ी डिग्रियों के बावजूद उन्हें इंटरव्यू में न बुलाया जाना समझ से परे है. वैसे और भी कई नाम हैं जिन पर विचार किया जाना था और इनमें जीएसआईटीएस के डायरेक्टर रहे राकेश सक्सेना से लेकर राजेश वर्मा तक के नाम थे.
सुरेश सिलावट का नाम भी हट जाने के बाद सवाल यही उठ रहा है कि यदि सक्रियता को मुख्य आधार माना गया है तो पप्पू सिलावट का नाम कैसे हटा और यदि विद्वत्ता को आधार माना जा रहा है तो डॉक्टर मंगल मिश्रा का नाम इंटरव्यू के लिए क्यों नही है. स्क्रूटनी कमेटी में जिन लोगों को रखा गया है वे कई पात्र उम्मीदवारों से योग्यता में कमतर हैं, ऐसे में यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि पहले तो स्क्रूटनी कमेटी तय करने का आधार ही क्या था और फिर यह कि उसने इतने बड़े शिक्षाविदों, अनुभवी प्रोफेसरों और ग्रेड दिलाने वाले लोगों को किस आधार पर खारिज कर दिया. स्क्रूटनी कमेटी में राज्यपाल की ओर से पाणिनी संस्कृत विश्वविद्यालय के विजय कुमार, शासन की ओर से चित्रकूट ग्रामोदय के भरत मिश्रा और यूजीसी की ओर से कामेश्वर नाथ सिंह रखे गए.
अब तक इस कमेटी ने जो इंटरव्यू किए हैं उनके आधार पर ही उसे कुलपति पद के लिए तीन नाम राज्यपाल को देना हैं और नियुक्ति का फैसला राज्यपाल के पास रिजर्व होगा. यहां तक कि राज्यपाल चाहें तो अनुशंसित नामों से हटकर भी किसी को कुलपति बना सकते हैं लेकिन सवाल तो इस बात पर है कि इतनी प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी के लिए आखिर किस स्तर पर और कौन से आधार पर फैसले लिए जा रहे हैं जिसमें या तो योग्य उम्मीदवार सामने ही नहीं आ पा रहे हैं और यदि आएं भी तो उन्हें स्क्रीनिंग से लेकर स्क्रूटनी के नाम पर ही बाहर किया जा रहा है और फिर प्रक्रिया के बीच में बिना किसी वजह के भी जब नाम इंटरव्यू लिस्ट से पहले काटे जा रहे हों तो पूछा ही जाना चाहिए कि आखिर तय मानक क्या हैं और क्या उन मानकों की धज्जियां तो नहीं उड़ाई जा रही हैं.