April 19, 2025
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ईदे-मिलादुन्नबी पर खास : ताजदारे हरम


डॉ. सहबा जाफ़री

ईद मिलादुन्नबी – “अरे कम्बखतों! मीठे हुए नीम में इतना पानी नहीं देते!” बीजी हाथों में तज्बीह लिए चीख़ो-पुकार मचाती दालान से राहदारी की तरफ आईं. बच्चों की फ़ौज छुट्टी में काम पर लगी थी, बड़े आज देर से जागने थे और बचे बचाए मंझलो को आज नौकरी की तलाश करने कहीं नहीं जाना था. आज कुछ मामूल पर नहीं था, इसी से बच्चे सुबह को जल्दी जाग दरख्तों का नास किये दे रहे थे. बीजी की ज़िन्दगी के कुछ गिने गिनाये सफ़हे ही बाकी थे बस इसलिए उनके शबो रोज़ हमेशा मामूल पर ही रहा करते थे.

आज ईदे-मिलादुन्नबी है, पैगम्बर की पैदाइश का दिन और बीजी के एक लाख दरूदो सलाम आज मुकम्मल होकर नबी ए करीम की ख़िदमत में पेश होने हैं. बच्चों की फ़ौज में से कुछ तितर बितर हो गए हैं, कुछ बीजी की टांगों से लिपट गए हैं और नन्ही उम्मे हानी बीजी की सच्चे मोतियों की तस्बीह के दानों में खो गयी है. “ अम्माँ! ए नेकलेछ हम के दे देइए” अपनी तुतालाई जुबान में उम्मे हानी अपनी फरमाइश बीजी से कर रही है . “अरी हट परे!” बीजी ने मुस्कुरा कर उसे धकेला और तज्बीह के दानों को आँखों से लगा, जाने किन यादों में डूब गईं . “इस तज्बीह को नाना मियाँ हज से लाये थे. अज़रबेजानी सौदागरों के एक जत्थे ने दरिया ए नील के कुछ गोताखोरों से सच्चे मोती के दानों का सौदा किया था . बस उन्हीं दानों की तज्बीह थी यह. जाने कितना अरसा इस पर इस्म पढ़, शहीदाने करबला, बुज़ुर्गाने दीन , पंजतन पाक और रसूले खातिम का नाम ले ले ईसाले सवाब भेजा गया, अरी!!! इस दुनिया से उस दुनिया का हरकारा है यह तज्बीह, और छटांक भर की छोकरी इसे दिल दे बैठी है!” बीजी उसे प्यार से झटक कर आगे को गुज़रने हुईं.

“ अम्माँ! दे देइए! इक्कूल में पहन कल जाउंगी!” उम्मे हानी ठुमकी. “ बीजी की आँखें हैरतज़दा सी उम्मेहानी का चेहरा तांकने लगीं. अरे! तुझे ख़बर भी है कि क्या मांग रही है! इस पर मूसा के हमज़ुबानों ने जिक्र ए इलाही किया, ईसा के हव्वारीन ने इस्म पढ़ा, मोहम्मद, सल्लललाहू अलियहि व सल्लम, ने रब के नाम लिए, अली, फातिमा, हसन और हुसैन ने इस्मे- आज़म पढ़े! और तब कहीं जाकर अब्बा ने इसे रियालों में ख़रीदा, औ तू कह रही है , ये तुझे दे दूं !!! न बच्चे, क़तई ना !!! “तो ये इछा, मूछा, औल बाकी लोग कौन थे, ये नेकलेछ अपने छाथ कूँ नई ले गए?” उम्मेहानी ने हाथ बाँध पुरखिनों के अंदाज़ में बीजी से लड़ाई मौल ली.

बीजी के बेसाख्ता हंसी निकल गई . “अरी बिटिया! ये ईसा, मूसा, मोहम्मद, अली, फातिमा , हसन, हुसैन, दुनिया से हीरे मोती साथ लेकर जाने नहीं आये थे. ये तो दुनिया को सच की राह दिखा, अम्नो-अमान का पाठ पढ़ाने आये थे. लेकिन अफ़सोस! दुनिया को सच से ज़्यादा सच के सायों से मोहब्बत है. दुनिया ने इनमें से कितने ही लोगों को सता, क़त्ल कर इन्ही की इबादतगाह बना, इन्हें ही बेच डाला” बीजी के चेहरे पर अफ्सुर्दगी छा गयी.

“लेकिन मिछ तो इक्कूल में कह लहीं थीं, दुनिया को छच्चा लाछता (सच्चा रास्ता) दिखाने लाम जी (राम जी ), किछन जी (कृष्ण जी), नानक, बुद्ध औल महावील छुआमी ( महावीर स्वामी) आये थे?

“हाँ बेटी ! ये सब भी रब ने ही भेजे थे ; अम्बर से रब का पैगाम लेकर आने वाले पैग़म्बर ! यूं कि दुनिया मुहब्बत करना सीखे, पर नफ़रत के सौदागरों ने भोले भाले लोगों को इनके नाम पर भी अलग अलग इमारतें तामीर कर, लड़ना सिखा दिया… आखिर शैतान ने बारगाहे रब्बुल इज्ज़त से दरमान्दा होकर यही तो कहा था कि “जिस आदम की खातिर तू मुझे अपनी बारगाह से निकाल रहा है, उसे मैं एक दूसरे के खून का इतना प्यासा कर दूंगा कि ज़मीन खून से भर जायेगी !” बीजी की आँखें दूर खला में निहार रहीं थीं..

“ पैग्म्बल क्या क्लाछ मॉनिटल थे, फिल जब थे तो छब को ललने छे मना कूँ नई कलते थे?”
उम्मेहानी की जंग जारी थी.

“हाँ बेटी! ये सब के सब अपने अपने दौर की क्लासों के मॉनिटर ही थे. और ऐसे मशरूबी अंदाज़ वाले, ऐसी शीरीं जुबां वाले कि जैसे रब ख़ुद बोल रहा हो, और सब्र का आलम ऐसा कि कोई ज़ख्म दे रहा है, कोई नेज़ा मार रहा है, कोई कचरा डाल रहा है और कोइ सरे आम ज़लील कर रहा है, पर न तो किसी का नाम लिखा और न ही किसी की शिकायत लगाई, बस समझाते रहे और उनके सुधरने की दुआ माँगते रहे …”बीजी की आँखें नम हो गईं .

फिल? इन लोगों ने छब लोगों को छमजाया नहीं कि ललाई मत कलिये ?

“ हाँ ! समझाया तो था, पर अगर समझाने से ही समझ आने लगता तो वो बंसीवाला महाभारत क्यों होने देता !!!”
तो फिल लोग ललते लहे, मलते मालते लहे?


हाँ मेरी जान ! फिर यूं हुआ कि पैगम्बरों के पैगाम को मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों , कलीसाओं में क़ैद कर ताले लगा दिए और बोर्ड लगा दिया गया “यह आम रास्ता नहीं है” …और हम …बाहर खड़े बेवकूफ बनते रहे, परीशांन …पसमांदा ….और एक दिन सब के रास्ते एकदूसरे को काटते हुए अलग अलग होते चले गए….और यकीन जानों इनमें से एक भी रास्ता रब की उस प्यारी दुनिया तक नहीं जाता ….

“ उछ दुनिया में का छनो वाईट (स्नो वाइट) है, छिन्देला (सिंड्रेला) है ?” उम्मे हानी एक अलग ही दुनिया के तसव्वुर में खो गई.

“ हाँ बेटी! वह तो बस परियों की सरज़मीन का ही रास्ता है, घने और हमेशा फूलों से लदे जंगलों के बीच, वादी से फूटते झरनों के इर्द गिर्द बस सिंड्रेला और स्नोवाईट, घूमती घूमती चेरियां और रातरानियाँ चुना करती हैं, नरगिस की कलियों से बाल सजाती गोल्डीलॉक्स दिन भर प्लम केक के मकान से बाहर निकल, चोकलेट के मैदान में घूम, अपनी मुश्को अम्बर की बड़ी सी फ्रॉक का घेरा पकडे , आइसक्रीम की बर्फ पर चला करती है….पर इस दुनिया के लोग वहाँ तक नही जा सकते…”
“ कूँ अम्माँ !” उम्मेहानी अपने सुनहले चमकीले बालों को माथे से हठा बड़ी कोफ़्त से बोली.

“ क्योंकि चीज़ों, रास्तों और अंधी रिवायतों से चिपक जाने वाले लोग वहाँ तक नहीं पहुँच सकते” बीजी ने एकदम से फुलस्टॉप लगाया.

“ हाँ! जैछे आप! इछ नेक्लेछ (नैकलेस) से चिपक गईं हैं” उम्मेहानी की बड़ी बड़ी , रोशन रोशन और नीली नीली आँखों में एकदम से बेनियाज़ी छाई ही थी कि बीजी को मानों चार सौ चालीस वाल्ट का झटका लगा.

बात तो सच है, ज़िक्र, दुरूद और सलाम तो अँगुलियों पर भी हो सकते हैं …और फिर कौन जाने अज़र बेजानी सौदागर ने अब्बा मियाँ को बेवकूफ ही बनाया हो! भला एक तज्बीह के पीछे बच्ची का दिल तोड़ना भी कोई कारे सवाब हुआ !! बीजी ने झट तज्बीह उम्मेहानी के गले में डाल दी. बच्ची उछलती कूदती अपने भाई बहिनों के पास भाग गई और बीजी के मुतमईन होंठ अँगुलियों पर गिन गिन दरूदो सलाम में मशगूल हो गए.

painting oil on canvas
symbolic photo of pradeep kanik’s painting BLOOM oil on canvass