Bangladesh में राष्ट्रगान बदले जाने की मांग जोरों पर
बंगबंधु की मूर्तियां तोड़ने के बाद अब गुरुदेव के गीत से दिक्कत
शेख हसीना की चुनी हुई सरकार को अपदस्थ करने और अल्पसंख्कों के साथ बेहद बुरी तरह पेश आने के बाद बांग्लादेश की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले वस्त्र उद्योग पर नकारात्मक असर पड़ने लगा है. ऐसे कई बड़े ब्रांड्स हैं जिन्होंने बांग्लादेश की अस्थिरता को देखते हुए अपने ऑर्डर्स भारत की तरफ मोड़ दिए हैं लेकिन अर्थशास्त्री कहे जाने वाले अंतरिम सरकार के मुखिया यूनुस साहब का ध्यान जिस बात पर सबसे ज्यादा है वह राष्ट्रगान बदलने की बात पर. हालांकि ऊपरी तौर पर अंतरिम सरकार ने कहा है कि राष्ट्रगान को बदलने की योजना नहीं है लेकिन जिस तरह से यह मांग उठी है और जिस तरह सोशल मीडिया पर इसे फैलाया जा रहा है उससे साफ है कि खुद सरकार इसके पीछे है. कुछ दिन पहले एक पूर्व सैन्यकर्मी ने दावा किया था कि “आमार सोना बांग्ला” वाला राष्ट्रगान भारत द्वारा 1971 में थोपा गया था.
उल्लेखनीय है कि रवींद्रनाथ टैगोर के ही रचे गीत भारत और बांग्लादेश में राष्ट्रगान बने, बांग्लादेश में उनकी रचना ‘आमार सोनार बांग्ला’ को राष्ट्रगान का दर्जा देश के उदय के साथर ही मिला था लेकिन अब बांग्लादेश में इस बात पर सेमिनार हो रहे हैं कि झंडा और राष्ट्रगान दोनों ही कैसे बदले जाएं और बदले जाने की दशा में उनका स्वरुप क्या हो. एक संगठन उदिची शिल्पीगोष्ठी ने बदलाव की मांग रखते हुए एक बड़ा कार्यक्रम रखा. राष्ट्रगान को लेकर विवाद तब शुरू हुआ जब कुछ लोगों ने राय दी कि यह स्वतंत्र बांग्लादेश की पहचान के साथ मेल खाता राष्ट्रगान नहीं है. इसके बारे में कहा जा रहा है कि यह बंगाल विभाजन और दो बंगालों के विलय के समय का गान है. यह राष्ट्रगान एक स्वतंत्र बांग्लादेश का राष्ट्रगान कैसे हो सकता है. यह भी तर्क दिया जा रहा है कि यह राष्ट्रगान 1971 में भारत ने थोप दिया था और अब इससे मुक्ति पानी चाहिए. यहां तक कि नया राष्ट्रगान चुनने के लिए आयोग बनाने की भी मांग सामने आई है और एक पूर्व ब्रिगेडियर जनरल ने वैकल्पिक गीत का सुझाव तक पेश कर दिया और पूछा कि आखिर इस गाने को राष्ट्रगान बनाने के बारे में क्यों नहीं सोचा जा रहा है.