Ganga को लेकर गंभीर चेतावनी देती रिपोर्ट
आने वाले समय में प्रवाह पांच से 35 प्रतिशत तक कम हो सकता है
भारत की जीवनरेखा और देश की आध्यात्मिकता से जुड़ी गंगा नदी को लेकर एक बार फिर कुछ शोध बता रहे हैं कि हम इसका अस्तित्व खतरे में डाल रहे हैं. आईआईटी गांधीनगर से लेकर यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना तक के शोधकर्ता इस बात पर सहमत हैं कि पिछले 1300 साल में गंगा नदी सबसे गंभीर सूखे की तरफ बढ़ रही है और यह स्थिति गंभीर है. भविष्य में जलवायु परिवर्तन के चलते इस नदी में बड़े हाइड्रोलॉजिकल बदलाव की भी चेतावनी है. स्टडीउ कहती हैं कि गंगा पर आने वाला कोई भी खतरा पूरे देश की जल सुरक्षा, कृषि और विद्युत उत्पादन पर असर डालेगा. रिसर्च में पिछले 1300 साल के आंकड़ों और मॉडलों से गंगा के वॉटर फ्लो की स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन किया गया. चार्ट से साफ हुआ कि 1990 के दशक से गंगा का फ्लो धीमा हुआ है और 2004 से 2010 के बीच तो गंगा सूखे की गंभीर समस्या से बमुश्किल निकली थी.
गंगा बेसिन 1991 से 2020 के बीच 1991 से 1997 और 2004 से 2010 के बीच बुरी तरह सूखे का सामना कर रही थी और अब भी हालात सुधरे हुए तो नहीं हैं. पिछले 30 सालों में गंगा प्रवाह में जो गिरावट दिखी है, वह चिंता बढ़ाने वाली है. गर्मी बढ़ने और कमजोर मानसून से इसके कैचमेंट में बारिश में दस प्रतिशत तक कम हुई है और कुछ हिस्सों में तो यह कमी तीस प्रतिशत तक है. आसपास के लोगों की पाानी की जरुरतें पूरी करने के लिए बहुत ज्यादा पानी लेने के चलते भी गंगा प्रवाह कमजोर हुआ है. आने वाले समय में प्रवाह के 35 प्रतिशत तक घटने की शंका जताई गई है. शोध में यह भी पाया गया कि गंगा के घटते ताजे पानी के प्रवाह से इसके पोषक तत्वों की आपूर्ति भी तेजी से घटी है यानी पानी की क्वालिटी ही नहीं समुद्री इकोसिस्टम पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है. अब गंगा बेसिन की जल सुरक्षा इस पर निर्भर है कि जलवायु विज्ञान, नीति और जल प्रबंधन को कैसे प्रभावी रूप से लागू किया जा रहा है.