October 4, 2025
देश दुनिया

Banaras से छन्नूलालजी जैसे एक रस का यूं चले जाना

पंडित छन्नूलाल मिश्र: एक युग का अवसान
भारतीय शास्त्रीय संगीत के अप्रतिम साधक, पद्म विभूषण से सम्मानित पंडित छन्नूलाल मिश्र का आज सुबह निधन हो गया. 89 वर्ष की आयु में उन्होंने मिर्जापुर स्थित अपने आवास ‘गंगा दर्शन कॉलोनी’ में अंतिम सांस ली. वे लंबे समय से अस्वस्थ थे और हाल ही में स्वास्थ्य की गंभीर जटिलताओं से जूझ रहे थे. बीते शनिवार उन्हें दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद उन्हें फिर अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था. डॉक्टरों ने जांच के बाद खून भी चढ़ाया लेकिन स्थिति लगातार बिगड़ती रही. उनकी पुत्री प्रोफेसर नम्रता मिश्रा ने बताया कि आज सुबह सवा चार बजे उनका निधन हुआ. अंतिम संस्कार आज शाम मणिकर्णिका घाट पर संपन्न होगा.
पंडित छन्नूलाल मिश्र का जीवन भारतीय संगीत की परंपरा का जीवंत प्रतीक था. बनारस घराने के प्रमुख गायक के रूप में उन्होंने ठुमरी, दादरा, कजरी, चैती और भजन गायन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया. उनकी गायकी में बनारसी ठाठ, भावनात्मक गहराई और तकनीकी परिपक्वता का अद्भुत संगम था. वे न केवल मंचों पर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते थे, बल्कि अपने संगीत के माध्यम से भारतीय संस्कृति की आत्मा को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने का कार्य भी करते रहे.
उनका योगदान केवल संगीत तक सीमित नहीं था. वे एक संवेदनशील शिक्षक, विचारशील कलाकार और सांस्कृतिक दूत भी थे. उन्होंने अनेक शिष्यों को संगीत की दीक्षा दी और भारतीय शास्त्रीय परंपरा को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनकी रचनात्मकता और साधना ने उन्हें संगीत जगत में एक विशिष्ट स्थान दिलाया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हुए लिखा, “सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पंडित छन्नूलाल मिश्र जी के निधन से अत्यंत दुख हुआ है. वे जीवनपर्यंत भारतीय कला और संस्कृति की समृद्धि के लिए समर्पित रहे. उन्होंने शास्त्रीय संगीत को जन-जन तक पहुंचाने के साथ ही भारतीय परंपरा को विश्व पटल पर प्रतिष्ठित करने में भी अपना अमूल्य योगदान दिया. यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे सदैव उनका स्नेह और आशीर्वाद प्राप्त होता रहा. साल 2014 में वे वाराणसी सीट से मेरे प्रस्तावक भी रहे थे.”
पंडित जी का जीवन एक साधना थी—संगीत के प्रति, संस्कृति के प्रति और उस आत्मिक अनुभव के प्रति जिसे वे हर राग में ढालते थे. उनकी आवाज में बनारस की गंगा की गहराई थी, सावन की फुहार थी, और भारतीयता की आत्मा थी. वे मंच पर नहीं, मन में गाते थे. उनकी गायकी में केवल सुर नहीं, संस्कार भी था.
उनके निधन से भारतीय संगीत जगत में एक रिक्तता उत्पन्न हुई है जिसे भरना असंभव है. वे एक युग थे, एक परंपरा थे, और एक प्रेरणा थे. उनका जाना केवल एक कलाकार का जाना नहीं है, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक चेतना के एक स्तंभ का अवसान है.पंडितजी अब नहीं हैं, परंतु उनका संगीत अमर है—हमारे हृदयों में, हमारी परंपरा में, और हमारी स्मृति में.