Vijayadashmi अहं और दंभ से दूर रहने की प्रेरणा देने वाला पर्व
दशहरे पर राम की रावण पर जीत ही नहीं बुराई पर अच्छाई की जीत का भी मनता है जश्न
अश्विन मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक शारदीय नवरात्रि का पर्व शक्ति की भक्ति के लिए जाना जाता है और इसके समापन पर यानी अश्विन शुक्ल दशमी तिथि को विजयादशमी कहा जाता है. इसका दूसरा नाम दशहरा भी है. इस साल शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर से शुरु हुई और इसका समापन 2 अक्टूबर को विजयादशमी यानी दशहरे पर हो रहा है. विजयादशमी यानी दशहरे के पर्व को काम, क्रोध, मोह, लोभ, मद, अहंकार और हिंसा जैसी बुरी आदतों से दूर रहने की प्रेरणा के तौर पर, बुराई पर अच्छाई की, असत्य पर सत्य की विजय के तौर पर मनाया जाता है. विजयादशमी पर अधिकांश जगहों पर रामलीला का भी समापन होता है क्योंकि चल रही रामलीला में यह दिन रावण के अंत के साथ समापन लाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान राम, माता सीता और हनुमान जी की उपासना विशेष फलदायी होती हैऔर इस दिन शिवशंकर स्वरूप माने जाने वाले नीलकंठ पक्षी के दर्शन को तो विशेष रुप से शुभ माना जाता है. इस दिन देशभर में बुराई के प्रतीक राण के पुतले जलाए जाते हैं और कई क्षेत्रों में गाय के गोबर से दस गोले बनाकर उनके ऊपर जौ के बीज लगाकर नेत्र बनाने और फिर भगवान राम के पूजन के बाद इन गोलों को जलाने की भी प्रथा है. दशहरे के त्योहार को अहंकारी रावण के पतन को इसलिए रेखांकित किया जाता है कि हम दंभ से दूर रहें.