Nepal में कार्यकारी पीएम पर पेंच, 15000 कैदी जेलों से भागे
सुशीला कार्की, बालेन और रबि के साथ अब घीसिंग पर लग रहा दांव
नेपाल में अब तक कुछ निर्णय नहीं हो सका है कि आखिर किसे सत्ता सौंपी जाए. जिन नेताओं को गद्दी मिलने की संभावना लग रही है वो पूरा जोर लगा रहे हैं और इस सबके बीच कथित जेन जी की गुटबाजी भी इतनी बढ़ गई हे कि आपस में लड़ाइयां होने लगी हैं. बालेंद्र और रबि के अलावा पूर्व चीफ जस्टिस सुशीला कार्की का नाम तो चल ही रहा है लेकिन सेना प्रमुख की प्रेस कांफ्रेंस के बाद यह तय हो गया है कि इस सबमें राजा और राजकुमार की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. नेपाल में मार्च 2008 में राजशाही खत्म हुई थी और तभी से ज्ञानेंद्र शाह एक आम नागरिक की तरह हैं लेकिन इस साल मार्च में उनके वापस काठमांडू पहुंचने पर जिस तरह से उनसे फिर नेपाल संभालने की मांग की गई वह अपने आप में एक बड़ा घटनाक्रम हो चुका था और अब पिछले दिनों जो युवाओं का आंदोलन चला, जिसके चलते ओली सरकार गिरी उसमें ज्ञानेंद्र के पोते हृदयेंद्र की भूमिका रही है और उन्हें जमकर समर्थन भी मिला है. अभी तक राजपरिवार काठमांडू के अपने मुख्य महल यानी निर्मल निवास में न रहते हुए पोखरा की पहाड़ियों के बीच बने फॉर्म हाउस में रह रहा था लेकिन पिछले कुछ समय राजपरिवार की काठमांडू वाले महलों में आवाजाही बढ़ी है. पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह कई तीर्थस्थलों का दौरा करते हुए जनता से भी लगातार मिल रहे हैं. ये सभी संकेत साफ हैं कि ज्ञानेंद्र शाह खुद भी वापसी चाहते हैं और मौजूदा हालात उन्हें इसका मौका दे भी रहे हैं. सेना प्रमुख ने अपने संबोधन और अपील के दौरान पूर्व राजा पृथ्वी नारायणशाह की फोटो को पीछे लगाए जाने के पीछे भी यही संकेत मिल रहे हैं कि सेना ने राजपरिवार की वापसी को समर्थन देना शुरु कर दिया है हालांकि आंदोलनकारियों में से एक बड़ा वर्ग इस बात का भी विरोधी है कि राजशाही वापस आए, ये लोग संविधान नए सिरे से लिखने और लोकतंत्र को मजबूत बनाने की बात करते हुए राजशाही का विरोध कर रहे हैं. सेना प्रमुख ने जिस तरह के फोटो बैकग्राउंड में लगाकर संदेश जारी किया उससे यह संकेत मिला कि वे राजशाही की वापसी चाहने वालों के साथ हैं यानी सेना का समर्थन राजशाही के पक्षधरों की तरफ है. सुशीला कार्की का नाम इसलिए आगे चल रहा है क्योंकि वो न्याय व्यवस्था का हिस्सा रही हैं और अब तक बेदाग करियर वाली रही हैं लेकिन उनकी उम्र उनके खिलाफ जा रही है और कथित जेन जी आंदोलन से कोई 74 वर्षीय व्यक्ति के पास सत्ता चली जाए यह आंदोलनकारियों को गले नहीं उतर रहा है. अन्य नामों में सुडान गुरुंग, रबि लामिछाने और बालेन यानी बालेंद्र शाह के नाम चल ही रहे थे कि अब कुलमान घीसिंग का नाम अचानक सबसे आगे आ गया है. वैसे सत्ता किसके हाथ में जाए इस पर अब युवा आंदोलनकारी भी दो गुटों में बंट गए हैं और इनके बीच आपसी झड्पों की भी खबरें आने लगी हैं लेकिन फिर भी दो दिन से जारी हिंसा और लूटपाट में कुछ हद तक कमी आई है. 2023 में टाइम मैगजीन ने बालेंद्र को पसंद करने वाले कार्की, घीसिंग और रबि को पसंद नहीं कर रहे हैं.
वैसे इस बीच यह भी खबर है कि ओली के भागने से लेकर सेना के पूरे नेपाल में कर्फ्यू लगाने तक के बीच में जेलों से लगभग 15000 कैदी भाग निकले हैं और इनमें से कई भारत आना चाहते हैं, ऐसे ही पांच भागे कैदी सीमा सुरक्षा बल ने कपड़कर नेपाल पुलिस को वापस भी कर दिए हैं लेकिन इनकी भारत में घुसने की कोशिशें जारी हैं. नेताओं के बाद आंदोलन कर रहे लोगों ने धनवानों को निशाना बनाना शुरु किर दिया है और नेपाल के तीसरे नंबर के सबसे धनी व्यक्ति और फिलहाल रुस में रह रहे कारोबारी उपेंद्र महतो के घर में बड़ी लूट और आगजनी करते हुए उनके घर का सामान लूटा गया है. अंतरिम प्रधानमंत्री के लिए प्रदर्शनकारी कुलमान घीसिंग को आगे बढ़ा रहे हैं.