व्यंग्य- हमसे तो अच्छे ‘वो’ हैं…
Majithia Wage मामला बनाम आवारा कुत्तों का मामला – आदित्य पांडे
हुआ यूं कि उनकी मौजूदगी के खतरे देखते हुए सबसे बड़ी अदालत ने खुद ही मामले को सुनने का फैसला किया और जो फैसला दिया उस पर कुछ दिन ले दे मची रही. सबसे बड़े जज साहब से लेकर जजों की पैनल तक इस पर माथापच्ची करती रही और आखिर दिए गए फैसले को बदल कर उनके पक्ष में कर दिया गया, मजे की बात इसमें ‘वो’ साहब ने न कभी न्याय की देहरी पर गुहार लगाई और न कभी काले कोट वालों को एक धेला दिया. अब इनकी बात को थोड़ा रोकें और हमारी बात कर लें, हमारे पक्ष में पहले एक संवैधानिक बोर्ड ने सिफारिशें दीं, ये सिफारिशें संसद से पारित हुईं, इन पर राष्ट्रपति ने अपनी चिड़िया भी बैठाई लेकिन इसमें लिखे का पालन न होना था, न हुआ. हम अदालतों में नीचे से ऊपर तक आते जाते रहे, सुप्रीम कोर्ट ने कम से कम आधा दर्जन बार कहा कि लिखे हुए को तो मानना पड़ेगा लेकिन सुनने वाला कौन? हमने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जानबूझकर आपकी अवमानना की जा रही है तो कहा गया कि नहीं जी ऐसी कोई खास अवमानना भी नहीं हुई है, बस इन्हें आदेश मानना पड़ेगा. फिर हमने पूछा कि साहब कोई समय बता दो कि आखिर कब तक नहीं मानेंगे तो आपकी अवमानना होगी तो कोर्ट ने कहा कि छह महीने का समय है इन्हें आदेश मानना होगा. बड़ी अदालत ने छोटी अदालतों से कहा कि जैसे भी हो अगले छह महीने में ये मामले निपटा दें और बेवजह कोई अडंगे लगाना चाहे तो ऐसा होने न दें. बड़ी अदालत को यह कहे हुए छह महीने की जगह छह साल बीत गए हैं. बड़ी अदालत से छोटी और छोटी से भी छोटी अदालतें तक सुनने को तैयार नहीं हैं.
जिन्हें कोर्ट की अदालतों के जुर्म में जेल में होना चाहिए था वो हमें ‘राष्ट्रपति, संसद और कोर्ट के सम्मान के लिए’जूते घिसते देखकर हंस रहे हैं और उनके गुर्गे हमें आकर कहते हैं कि ऐसे बीस जोड़ी जूते भी घिस दोगे तब भी हम पर असर नहीं होना है. ‘हम’ वो हैं जिस बिरादरी से बड़े बड़े घबराते हैं कि हमारी गड़बड़ी ये पकड़ न लें, हम वो हैं जो पूरी दुनिया के दुखदर्द सुनने के लिए और उन पर जिम्मेदारों से सवाल पूछने के लिए जाने जाते हैं और हम वो हैं जो दूसरों की मुश्किलें सुलझवाने के लिए पहचाने जाते हैं. हम हजारों हैं लेकिन अदालत को यह नहीं बता पा रहे कि संसद से लेकर राष्ट्रपति और खुद कोर्ट की अवमानना करने वाले किस कदर अमानवीय रुख अपना रहे हैं और दूसरी तरह ‘वो’ हैं जिनके लिए अदालतें अतिरिक्त समय दे रही हैं, विशेष रूप से जिनके मामले लिस्ट किए जा रहे हैं, जिनके लिए करोड़ों की फीस लेने वाले सिब्बल और सिंघवी तक बिना उनके इशारा किए ही खड़े हो जाते हैं. जिनके लिए देश भर के लाखों बड़े मामलों को पीछे छोड़कर विशेष सुनवाई होती हैं. 14 साल का वनवास झेलने के बाद तो रामजी भी अयोध्या में आकर सिंहासन पर विराजमान हो गए थे लेकिन राष्ट्रपति को जिस कागज पर साइन किए 14 साल हो गए उसको लागू करवाने में हम खत्म होते जा रहे हैं. कोर्ट को यूं तो अपनी अवमानना की बहुत चिंता होती है लेकिन कुछ ताकतें ऐसी भी हें जो अदालत की अवमानना करें तो अदालत कह देती है नहीं जी हमारी अवमानना नहीं हुई. आप बस तुलना कर लीजिए कि हमसे अच्छे ‘वो’ हैं कि नहीं…