Mercedez का बेड़ा बनाइये मेरे लिए, धनखड़ की थी मांग
केंद्रीय मंत्रियों को जलील करना और विपक्षी नेताओं को पार्टियां देना जगदीप धनखड़ का शगल बनता जा रहा था
उपराष्ट्रपति पद से दिए धनखड़ के इस्तीफे के बाद कयासों का दौर है, दावेदारों की नई सूचियां सामने आ रही हैं और इस बात पर बहसें जारी हैं कि आखिर वीपी धनखड़ के बिगाड़ की शुरुआत कहां से हुई जो मानसून सत्र के पहले दिन क्लाइमेक्स तक पहुंची. धनखड़ साहब के बारे में जो बातें सामने आ रही हैं उनसे तो यही लगता है कि वो मोदी सरकार के लिए लंबे समय से फांस बने हुए थे लेकिन सरकार चाहती थी कि वो समझ जाएं और जब पानी सिर से ऊपर ही हो गया तब उन्हें अपने बारे में फैसला लेने की चेतावनी दो टूक दी गई वरना इससे पहले इशारों में ही काम चल रहा था. पिछले साल शिवराज सिंह चौहान से भरी सभा में जिस तरह से उन्होंने सवाल जवाब किए थे तभी यह साफ हो गया था कि धनखड़ सरकार को घेरने वालों के साथ खड़े हो रहे हैं. मामला किसानों का थाऔर धनखड़ ने जिस अंदाज में कृषि मंत्री को डपटा उससे लगा ही था कि साहब खुद को किसानों का खैरख्वाह दिखाने में लगे हुए हैं और इसके लिए सरकार पर वार कर रहे हैं. शिवराज तो मामले को संजीदगी से निपटा ले गए लेकिन फिर तो एक के बाद एक केंद्रीय मंत्री उनके निशाने पर आने लगे. कभी उन्होंने अपने काफिले की सारी गाड़ियां मर्सिडीज करने की मांग कर एक मंत्री को उलझाया तो कभी कोई भी सिफारिश भेजकर दूसरे मंत्री को. हद तब हुई जब अमेरिकी उप राष्ट्रपति जेडी वेंस भारत दौरे पर आए तो धनखड़ ने जिद पकड़ ली कि वो मेरे समकक्ष हैं इसलिए उनसे मेरी मुलाकात होनी ही चाहिए. पहले तो समझाने की कोशिश हुई कि वे राष्ट्रपति ट्रंप का संदेश प्रधानमंत्री मोदी के नाम ला रहे हैं इसलिए ऐसी कोई जरुरत नहीं है लेकिन आखिर उनकी जिद के बाद मुलाकात तय हुई तो धनखड़ साहब ने जयशंकर जैसे विदेशमंत्री पर रौब गांठते हुए कहा कि वेंस और आपके बीच जो भी चर्चा हो उसका ब्रीफ आप मुझे देंगे. जाहिर है यह सरकार को सीधी चुनौती थी. इसके बाद तो हर मौके पर उप राष्ट्रपति ने स्पीड ब्रेकर बनने की ठान ली और सत्ता धारी पार्टी वालों को जलील करने में जितनी खुशी उन्हें मिल रही थी उससे ज्यादा मजा उन्हें विपक्षी नेताओं से मिलने में आ रहा था. ऐसा भी हुआ कि धनखड़ की पार्टी में भाजपाई या सरकार वाले इक्का दुक्का लोग हों लेकिन विपक्ष वाले काफी रहें. केजरीवाल फिलहाल कुछ भी नहीं हैं लेकिन उनसे मिलने में भी साहब की खास रुचि रही और कपिल सिब्बल से लेकर हर वो विपक्षी जो इस सरकार के पुर्जे ढीले करने में लगा हो, धनखड़ का विशेष प्रिय बनता गया.
ऐसे में जब राज्यसभा में बोलने का मौका देने की बात आई तो भी धनखड़ ने सरकार को उलझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी और विपक्षी नेता खड़गे को सारे कायदे तोड़कर 45 मिनट दे दिए ताकि वो सरकार के खिलाफ जितना बोल सकें बोलें. यहां यह भी तथ्य है कि संसद टीवी भी उप राष्ट्रपति के ही अधिकार क्षेत्र में है और वहां भी साहब का आदेश चलता था इसलिए खड़गे का पूरा भाषण लाइव दिखाने की भी पूरी व्यवस्था रही. इन सब में ताबूत की आखिरी कील साबित हुई जस्टिस वर्मा मामले में विपक्ष का प्रस्ताव राज्यसभा में धनखड़ द्वारा स्वीकार कर लिया जाना, यह प्रस्ताव सरकार लोकसभा से लाना चाहती थी लेकिन सरकार को धता बताने के उद्देश्य से जानबूझकर यह कदम उठाया गया जिसमें अब तो यह भी पता चल रहा हैं कि कुछ सांसदों के दो बार हस्ताक्षर हैं या कहें कुछ फर्जी साइन होने की संभावना बताई जा रही है. जब अति हो गई तो धनखड़ साहब को संदेश दे दिया गया कि वे अपने बारे में फेसला ले लें वरना कई सांसद उन कागजों पर साइन दे चुके हैं जो कभी भी उप राष्ट्रपति के इंपीचमेंट वाले मामले में काम आ सकते हैं. बताया जा रहा है कि भाजपा सांसदों के बीच में यह बात लंबे समय से चर्चा का विषय थी कि धनखड़ साहब दूसरे सतपाल मलिक बनने जा रहे हैं जबकि मलिक अधिकतम एलजी या राज्यपाल तक रहे थे लेकिन धनखड़ साहब तो प्रोटोकॉल में देश में दूसरे नंबर पर होने के बाद भी बागी तेवर धारण कर चुके थे. इस सबके पीछे एकमात्र कारण जो बताया जा रहा है वह यह कि धनखड़ का करियर सरकार यहीं खत्म करना चाहती थी यानी उन्हें न दूसरे मौके की संभावना बनती दिख रही थी और न ही प्रमोशन की यानी राष्ट्रपति पद के लिए भी उनका नाम कट ही चुका मान लिया गया था जबकि जाट साहब चाहते थे कि नंबर एक होने का मौका मिले न मिले लेकिन कम से कम उनका नाम तो दौड़ में बना रहे. कहानियां अभी खत्म नहीं हुई हैं यानी पिछले लगभग साल भर में धनखड़ ने कहा कहां सरकार को उलझाने की कोशिशें कीं इसे लेकर और भी खुलासे आ रहे हैं, काफी समय तक आते भी रहेंगे.