अनेक स्मृतियों की तरफ से एक स्मृति की लिखी किताब है ‘अब मैं बोलूंगी’
- गरिमा जोशी पंत की कलम से स्मृति की डायरी
-सिर्फ एक स्मृति नहीं है, अनेक स्मृतियां हैं इस किताब को लिखने वाली. स्व अनुभव जनित स्मृतियां हैं लेकिन ये अनुभव साझे हैं. बस उन अनुभवों को स्वर इस स्मृति की लेखनी से मिल गया. उस लेखनी से जिसकी ना विधा तय थी, ना विषय पता था. लेकिन जिसे पता था कि अपने कार्यकाल में उसके शत्रु भी बने. इसीलिए यह पुस्तक बिना भेद भाव दोस्तों के साथ साथ उन दुश्मनों को भी समर्पित है जो एक उत्साहित, नवोदित, लगनशील ख़ांटी, पत्रकार को झेल नहीं पाए. लेकिन एक ख़ांटी टीचर को पत्रकारिता पढ़ने वाले आज के बच्चों ने प्यार से अपनाया जिन्हें टेंशन अटेंशन दोनों से ही कुछ लेना देना न था. इसलिए उन्हें स्मृति ने ना केवल सहेजा, उनसे सीखा भी. डबडबाई आंखों से हर रात स्मृतियां स्वयं को दर्ज़ कर रही हैं लेकिन उस से कुछ धुंधला नहीं हुआ. बल्कि उस अश्रु जल ने कार्य स्थल पर कर्तव्यनिष्ठ, कर्म निष्ठ लोगों के साथ होने वाले अन्याय की तस्वीर को धो पोंछ के सबके सामने कर दिया.
अपने ही नाम, अपने परिश्रम के पैसों के लिए कार्यस्थल पर संघर्षों की स्मृतियां, फील्ड वर्क की चुनौतियों के बीच अपनी सुरक्षा के भय की स्मृतियां, स्मृतियां अपने हक की आवाज़ मुखर करने पर नौकरी से हाथ धोने की और तत्पश्चात एक सुकून भरी नींद की भी, अपने पसंदीदा कामों को करने की आज़ादी, दोस्तों से बतियाने के पल, किताबें पढ़ने और चित्रकारी कर पाने के सुख की सुखद स्मृतियां. स्मृतियों का यह लेखा जोखा स्वार्थ का पुलिंदा नहीं क्योंकि उनमें हर उस कर्मनिष्ठ व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की चिंता है. एक हिदायत है. अच्छे , उदार वरिष्ठों, मित्रों के सहयोग की, प्रेरणाओं की स्मृतियां हैं उनके प्रति कृतज्ञता है. अवॉर्ड की कठोर सच्चाइयों की कथा है. किस्से हैं परंपरा को बदलने वाली नन्हीं ज्योत्सना के, रोज़ के जीवन की आपाधापी के बीच अपनी सुरक्षा खोजती स्त्रियों के. इन स्मृतियों के स्वर तल्ख हैं लेकिन भाषा की लुनाई उस तल्खी को ढांप लेती है. वह आपको कहीं कहीं गुदगुदा देती है तो कहीं भाव विभोर भी कर देती है. इसे पढ़ा जाना ही चाहिए क्योंकि दिल से लिखी है हर दिल तक पहुंचाने को.
पढ़िएगा ज़रूर. स्मृति आदित्य ने लिखी है. किताब का नाम है: अब मैं बोलूंगी
शिवना प्रकाशन से आई है यह किताब.