1982 A Love Story-क्रिस्पी, क्रस्टी लव ट्राएंगल
शुचि कर्णिक–स्वतंत्र पत्रकार, लेखक
यह कोई फिल्मी कहानी नहीं जिसमें अक्सर एक प्रेम त्रिकोण होता है बल्कि एक त्रिकोण से प्रेम की कहानी है ये. यहां त्रिकोण से मेरा मतलब उस चीज़ी ट्राएंगल से है, जिसे हम सब पिज़्ज़ा के नाम से जानते हैं. फ्लेटब्रेड का यही क्रिस्पी करारा तिकोना टुकड़ा इस कहानी का हीरो है. वैसे है तो यह गोल पर प्लेट में इसका एक चौथाई तिकोना टुकड़ा परोसा जाता है.
ख़ैर, कहानी शुरू होती है अस्सी के दशक में जब हमारी जनरेशन ने पिज़्ज़ा का नाम भी नहीं सुना था. मोहल्ला कल्चर में पली ठेठ देसी खान पान वाली हमारी पीढ़ी के लिए यह एक नितांत ही नया स्वाद था. उन दिनों मेरी मामी कॉन्टिनेंटल फूड की अलग- अलग रेसिपी ट्राई कर रही थीं. उन्होंने ही मेरा पहला परिचय इस फ्लेट ब्रेड के चीज़ी फ्लेवर से करवाया. बिना टॉपिंग्स वाले थिन क्रस्ट पिज़्ज़ा का हल्की सी खटास वाला वो स्वाद और उस पहले बाइट का क्रंच आज भी जे़हन में ताजा़ है.
इंदौर में अपनी गर्मी की छुट्टियों के दौरान हुआ था इस इटालियन डिश के साथ पहला एनकाउंटर. इस नए स्वाद को चखने का अनुभव तो शानदार था ही, पर तब इस बात का ज़िक्र दोस्तों में करने का आनंद भी किसी बड़े अचीवमेंट की तरह लगता था. पिज़्ज़ा के इस पहले अनुभव के बरसों बाद जब इंदौर में टीआई मॉल की एंट्री हुई तब फिर एक बार पिज़्ज़ा हट में इस स्वाद का आनंद उठाया. अबकी बार इस स्वाद में कुछ नयापन था, रंग बिरंगी टॉपिंग्स और ज़्यादा चीज़ी. साथ में थी गार्लिक ब्रेड और आइस्ड लेमन टी की संगति. सब मिलाकर एक शानदार प्रस्तुति. रेस्त्रां में बिल अदा करते वक्त काउंटर पर टंगी घण्टी ने सबसे ज़्यादा ध्यान खींचा.अगर आप रेस्त्रां के भोजन और स्टाफ की सेवा से खुश हैं तो इसका इज़हार कीजिए. आपके घण्टी बजाते ही प्रफुल्लित स्टाफ का समवेत स्वर में धन्यवाद आ जाता है.स्टाफ की हौसला अफज़ाई का बहुत अच्छा तरीका है यह.
इस खुशनुमा अनुभव के बाद जब कभी शॉपिंग के लिए टीआई जाना होता लंच के लिए पिज़्ज़ा हट ही मेरी पहली पसंद होती. एक देश से अपना सफर शुरू करके कैसे एक फूड आइटम दूसरे देशों, शहरों यहां तक कि दूरस्थ कस्बों तक अपनी पहचान बना लेता है यह जानना दिलचस्प है. अट्ठारहवीं शताब्दी के आसपास इटली में रानी मार्गरीटा के लिए रंग बिरंगी टॉपिंग्स वाला एक ख़ास पिज़्ज़ा बनवाया गया था. यह उन्हें इतना पसंद आया कि इसे मार्गरीटा पिज़्ज़ा कहा जाने लगा. यूनान में मिट्टी के अवन से अपना सफर शुरू करके पिज़्ज़ा इटली अमेरिका होते हुए 1995- 96 के दौरान भारत आ पहुंचा. भारत में इसकी लोकप्रियता बहुत तेजी से बढ़ती गई. एक रोचक तथ्य ये भी है कि पिज़्ज़ा में प्रयुक्त मोज़रिला चीज भारतीय भैंस के दूध से बनाई जाती है.

वैसे 1905 में गेनेरो लोम्बार्डी ने न्यूयॉर्क में पहला पिज़्ज़ेरिया शुरू किया था. पर 1958 में डेन और फ्रेंक कार्ने के एक विचार को आकार मिला जब यूएस की पहली रेस्तरां चेन पिज़्ज़ा हट की शुरुआत हुई. जो लोग कुछ नया करना चाहते हैं, प्रयोग करने में नहीं झिझकते जोखिम उठाने को तैयार होते हैं सफलता उनके सर पर ताज सजाती ही है. छह लोगों की छोटी सी टीम आॉंखों में बड़े-बड़े सपने और मॉं के बरकती छह सौ डॉलर्स की मदद से शुरू यह सफर आज हजारों लाखों लोगों की टीम के साथ कामयाबी की कहानी लिखता चला जा रहा है. दो वर्ष बाद ही 1960 में एक और फूड चेन डॉमिनोज़ शुरू हुई. और आज सारी दुनिया में पिज़्ज़ा हट और डॉमिनोज़ के कई आउटलेट्स हैं.
किसी भी रेस्त्रां या पिज़्ज़ेरिया में बच्चों और युवाओं के खिले- खिले, चहकते चेहरे देख कर पिज़्ज़ा की लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है.
जब कभी बच्चों को डॉमिनोज़ या पिज़्ज़ा हट में ट्रीट देने का वादा करती हूॅं उनके चेहरे की खुशी और चमक देखकर पिज़्ज़ा हट की टैगलाइन; “वी जस्ट डोंट मेक पिज़्ज़ा, वी मेक पीपल हैप्पी, वी डिलीवर फूड विद अ स्माइल” जस्टिफाइड लगने लगती है.
अबकी बार जब कहीं पिज़्ज़ा का मज़ा लें तो एक घण्टी कार्ने ब्रदर्स के साथ ही उन सबके लिए भी बजाइएगा जिन्होंने पिज़्ज़ा को आप तक पहुंचाया.
