April 19, 2025
धर्म जगतलाइफस्टाइल

Hanumanji से क्या सीखें और उन्हें क्यों पूजें

अतुलितबल धामं, हैमशैलाभ देहं’ और हनुमत बजरंगी

जब तुलसीदास लिखते हैं ‘अतुलित बल धामं, हैमशैलाभ देहं’ तो लगता है कि हनुमानजी का संपूर्ण व्यक्तित्व इसमें शामिल है. अतुलनीय बल, शरीर सोने के पर्वत जैसा, बुद्धिमानों में अग्रणी, समस्त गुणों के भंडार, वानरों के स्वामी, श्रीराम के प्रिय, पवन से उत्पन्न जैसी उपमाओं से अलंकृत करते हुए जब स्तुति की जाती है तो लगता है कि इससे सटीक उपमाएं हो ही नहीं सकती थीं. भक्ति की पराकाष्ठा से संसार को चकित करने वाले हनुमत अहंकाररहित है. मानस में हनुमानजी किष्किन्धाकाण्ड से छोटी सी भूमिका से शामिल होते हैं लेकिन सुन्दरकाण्ड तक वे सम्पूर्ण सामर्थ्य से सामने आते हैं और आगे वे अपरिहार्य संकटमोचक की तरह होते जाते हैं. श्रीराम उनकी जब जब तारीफ करते हैं तब तब वे विनयपूर्वक उनसे अटल भक्ति मांगते हैं और महान भक्त के रूप में प्रतिष्ठापित होते जाते हैं. शक्तिशाली वज्र अंग वाले बजरंग पर इन्द्र ने वज्र प्रहार किया तो इनकी हनु (ठोड़ी) क्षतिग्रस्त हो गई और यहां से उनका नाम हनुमान हुआ. बचपन की शरारतों पर उन्हें महर्षियों ने श्राप दिया था तो इन्हें स्मरण कराने पर ही अपने बल का बोध होता था. जामवंत ने इन्हें बल का यदि ध्यान न दिलाया होता तो समुद्र लांघना मुश्किल होता लेकिन यह भी उनके गुण की ही तरह सामने आता है. उनका सबसे बड़ा गुण है चुनौती में सबसे आगे और श्रेय में सबसे पीछे होना. हनुमानजी को जो काम सौंपा गया था उसके अतिरिक्त वो लंका में कई दूसरे काम भी कर आते हैं. सीता की खोज, विभीषण से मित्रता, लंका दहन और कई शत्रुओं को मार कर उनका पक्ष कमजोर कर आए. यह हनुमानजी का वह पक्ष है जो हमें अपने जीवन में उतारने के लायक है और बाकी के गुण तो वे हैं ही जो उन्हें पूज्यनीय बनाते हैं.