Population Day: यहां से कहां तक जा रहे हैं हम
आज नहीं समझे तो भविष्य में बड़ा खतरा
11 जुलाई को जब ‘विश्व जनसंख्या दिक्स’ मनाया जा रहा है तो यह समझना जरुरी है कि इस मामले में भारत कहां है और किस दिशा में जा रहा है क्योंकि इसी कारण हम शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों के मामले में पिछड़ रहे हैं. नए रोजगार जुटाने के कार्यक्रम भी इसी वजह से कुछ खास नतीजे नहीं दे पा रहे हैं. आबादी और संसाधनों का असंतुलन खतरनाक स्तर की तरफ जा रहा है. 40 फीसदी आबादी के गरीब होने के पीछे सबसे बड़ा कारण आबादी है. ज्यादा बच्चे यानी ज्यादा कमाने वाले हाथ वाली सोच हमारी अर्थव्यवस्था के लिए भारी पड़ रही है. जब तक ऐसी सोच को बदलने के कार्यक्रम नहीं बनेंगे तब तक कोई भी जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम सफल नहीं हो सकता. कुछ लोगों का मानना है कि कड़े कानून मददगार हो सकते हैं लेकिन ये बात कितनी तर्कसंगत है इस पर ही सवाल हैं. हालांकि कुछ जगहों पर दो से ज्यादा बच्चों के बाद सरकारी नौकरी जैसी जगहों पर अयोग्य घोषित करने जैसे उपाय भी लगाने की कोशिश हुई है लेकिन इनसे कोई बड़ा फायदा अब तक तो नजर नहीं आया है. दरअसल जनसंख्या वृद्धि एक संतुलन का मामला है, चीन में 1980 से पहले केवल एक बच्चे की अनुमति थी लेकिन इससे असंतुलन पैदा होने लगा तो 2016 में दो बच्चों की अनुमति देनी ही पड़ी. हो सकता है कुछ समय बाद चीन को आबादी बढ़ाने के लिए अलग से प्रयास करने पड़ें क्योंकि वहां सामान्य प्रजनन दर में गिरावट आ रही है और माना जा रहा है कि कुछ सालों बाद भारत में भी यही स्थिति होना है.
दरअसल मोटे तौर पर महिलाओं की सामान्य प्रजनन दर 2.1 होनी चाहिए, चीन में यह 1970 में 5.8 थी लेकिन 2020 में यह घटकर केवल 1.3 रह गई है. भारत में 1994 में महिलाओं की सामान्य प्रजनन दर 3.4 थी जो 2015 में 2.2 रह गई यानी आज की तारीख में कम से कम इस दर के मामले में तो हम आदर्श स्थिति में हैं. 2020 में नेशनल कमीशन ऑन पॉपुलेशन का कहना है कि 2011 और 2036 के बीच के 25 सालों में भारत की जनसंख्या 152 करोड़ होगी और जनसंख्या घनत्व 368 से बढ़कर 463 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर होगा. तब तक जनसंख्या दबाव से प्राकृतिक संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. कृषि उत्पादकता और पानी की कमी और पर्यावरण असंतुलन खतरनाक हो सकता है. भारत में गरीब महिलाओं की प्रजनन दर 3.2 है जबकि सम्पन्न महिलाओं में यह 1.5 है. अशिक्षित महिलाओं के औसतन 3.1 बच्चे होते हैं जबकि शिक्षित महिलाओं में यह 1.7 है. यानी जनसंख्या विस्फोट का सीधा संबंध सामाजिक और शैक्षिक स्थितियों से जुड़ा है.