Gangtok यात्रा और तीस्ता नदी का हमसफर होना…
ट्रैवल ब्लॉग… शुचि कर्णिक (पत्रकार, स्वतंत्र लेखक)

और भी ग़म हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा
जैसे मेरे गम में ग़म है, यानी मेरे मसूढ़े में दर्द है
पेट के अंदरूनी हालात भी कुछ ज़्यादा अच्छे नहीं और….
उफ्फ! मेरे सरदर्द की कहानी तो सदियों पुरानी है ही. माइग्रेन ने एक बार रिश्ता जोड़ा तो फिर ये फेविकोल वाला जोड़ कभी टूटता नहीं. सीधे पैर के घुटने में पांचवीं बार चोट आई है, इससे बुरा तो कुछ हो ही नहीं सकता….… पर इससे अच्छा तो हो सकता है.हां वही जो (जब वी मेट में) शाहिद कपूर कहते हैं. हमारे साथ भी हुआ. अच्छा ये हुआ कि हमने काफी पहले एक छोटा सा प्लान बनाया था. नार्थ ईस्ट इंडिया को एक्सप्लोर करने का. उसे पूरा करने का समय आ चुका था. तो बस ज़िन्दगी की तमाम प्रतिकूलताओं और बाधाओं को पार किया, अपने बैग पैक्स उठाए और चल पड़े अपनी मंजिल की जानिब.
शुरू से शुरू करते हैं, इंदौर से सड़क के रास्ते भोपाल के लिए प्रस्थान किया. इन्द्र देव की कृपा भी हम पर बरसी और मौसम खुशनुमा हो गया. भोपाल पहुंच कर मेल- मुलाकात का एक छोटा -सा दौर! दिल- दोस्ती ज़िंदाबाद.
फिर ट्रेन से दिल्ली. एक दिन नोएडा में रुक कर यहां भी यारी दोस्ती निभाई और अगली सुबह दिल्ली से बागडोगरा की फ्लाइट पकड़ी. नई जगह पर जाने से पहले जो उत्सुकता और उत्साह होता है वो अपने चरम पर था. बागडोगरा में एयरपोर्ट से बाहर आते ही चिलचिलाती धूप ने अपने तीखे तेवरों से हमारा इस्तकबाल किया. कोई बात नहीं,सब दिन ना होत एक समान. यहां से टैक्सी से गंगटोक के लिए निकले,कुछ ही देर में प्रकृति ने अपने सुंदर रंग बिखेरने शुरू कर दिए. सड़क के दोनों तरफ घने जंगलों, रंग-बिरंगे फूलों वाले सुंदर पेड़ों ने कब सफर की थकान को सोख लिया पता ही नहीं चला. धूप हालांकि बहुत चुभने वाली थी परंतु रास्ते की हरियाली ने पचास एसपीएफ की सन स्क्रीन का काम किया और धूप की तेजी को कम करके हम पर बड़ा उपकार किया.
ऐसे ही क्षणों में हमें समझ आता है कि हरियाली का कितना महत्व है और जंगलों को बचाना हमारा कर्तव्य. तीस्ता नदी,इस रास्ते की सबसे ख़ूबसूरत हमसफ़र!

बहुत दूर तक हमारे साथ- साथ चलती रही, बहती रही. इतने धीर गंभीर भाव से बहती नदी को येशुदास जी ने चंचला क्यों कर कहा होगा? बरसात के बाद ये नदी निश्चित ही अपना रूप बदल लेती होगी. बचपन से ये गीत मेरे प्रिय गीतों में से एक है. येशुदास जी ने अपनी मीठी आवाज़ से इसे कर्ण प्रिय और रवानीदार बना दिया है. इस सरिता के सौन्दर्य पर मोहित अनगिनत पेड़ पौधे इस पर झुके जा रहे थे. ऊपर आसमान, एक तरफ़ घने जंगल और जंगल से सटकर बहती ये मोहक नदी ऐसा सुंदर दृश्य उपस्थित कर रही थी कि एकबारगी अपने होने न होने का भान ही नहीं रहा. इन रास्तों से गुज़रते वक्त एक ही ख़याल दिल में उभरता रहा,काश! ये रास्ता कभी ख़त्म न हो.इस सुंदर दृश्यावली को मन के फोल्डर में कॉपी पेस्ट करते करते हम गंगटोक पहुंच गए. बीच में नाश्ते का ब्रेक लेना भी ज़रूरी था.एक शांत रिसॉर्ट में हमने ब्रन्च किया. इससे शरीर को भी ऊर्जा मिली और यहां की सुन्दरता से आंखों को भी भरपूर खुराक मिली.
गंगटोक पहुंचकर हमने अपनी होटल में कुछ देर आराम किया और पास ही में एमजी रोड की तरफ चल दिए .थोड़ा लोकल फूड का ज़ायका लेने और स्थानीय हैंडीक्राफ्ट की खरीदारी करने. आज बस इतना ही…..और हां पहाड़ी बारिश का भी थोड़ा सा आनंद ले लिया. हम सुविधाओं के बीच में रहने वाले पहाड़ों की जिंदगी को जब नजदीक से देखते हैं तब समझ आता है कि असली संघर्ष क्या होता है. हमारे चार दिन के इस प्रवास में हमने ढाई दिन गंगटोक और डेढ़ दिन दार्जिलिंग में बिताए.

दोस्तों पिक्चर अभी बाकी है. अगली किश्त में आपको भी अपने साथ उन जगहों की सैर करवाने का इरादा है. मुझे यकीन है आप भी इस सफर का पूरा मज़ा लेंगे.
क्रमशः