Chhindwara भी छिन गया कांग्रेस से, नकुल की हार है बड़ी
एनडीए की सत्ता में वापसी के बाद अब विष्लेषण का दौर जारी है और भाजपा समझने की कोशिश में है कि आखिर उसकी सीटें कम क्यों हुईं या इंडी की सीटें कैसे बढ़ गईं, इस बीच भाजपा जिस सीटों पर जीत को लेकर खुश है उनमें छिंदवाड़ा मुख्य है. भाजपा 1980 से मध्यप्रदेश में क्लीन स्वीप की कोशिश में थी और एक दो बार तो सभी सीटें जीतने की हालत बन भी गई लेकिन छिंदवाड़ा की सीट हमेशा इस अभियान को रोक देती थी. 1977 में कांग्रेस के गार्गी शंकर मिश्र ने छिंदवाड़ा से चुनाव जीता और उसके बाद से यह कांग्रेस का ऐसा गढ़ माना जाने लगा जहां सेंध लगाना भाजपा के लिए सबसे मुश्किल था. मध्य प्रदेश में लगभग 20 साल के कार्यकाल में भाजपा ने हर लोकसभा चुनाव में यहा पूरी ताकत लगाई लेकिन वह सफल नहीं हो पा रही थी.
बंटी के लिए पिछले चुनाव से क्या बदला
पिछले चुनावों में भाजपा प्रत्याशी विवेक साहू बंटी के लिए चार पीढ़ियों से उनके व्यापार यानी ब्याज बट्टे का धंधा और फिर निजी जिंदगी के किस्से आम होने से मुश्किल खड़ी हो गई थी जिससे वे इस बार पार निकल सके. चुनावों में हरियाणा से बंगाल तक संभाल चुके कैलाश विजयवर्गीय को इस बार छिंदवाड़ा की कमान मिली थी और उन्होंने शिवराज के उस संकल्प को पूरा करा दिया जो उन्होंने विधानसभा चुनाव में जीत के तुरंत बाद छिंदवाड़ा में जाकर लिया था. इस जीत में एक बड़ी भूमिका मुख्यमंत्री यादव की रही. 44 साल से कांग्रेस नेता कमलनाथ की पूरे लोकसभा क्षेत्र में पकड़ मजबूत थी जिसे विजयवर्गीय नेटवर्क तोड़कर कमजोर किया. जब उन्होंने यहां डेरा ही डाल दिया तो भाजपा कार्यकर्ताओं को भरोसा हुआ कि पार्टी जीत सकती है. मुख्यमंत्री यादव 9 दिन यहां अड़े रहे और पांच रोड शो, आठ जनसभाएं कर माहौल बना दिया. यहीं से कमलनाथ के गढ़ में उनके बेटे के हार जाने की पटकथा लिखी गई और नतीजा अप्रत्याशित आया. कमेाबेश यही रणनीति दिग्विजय के गढ़ के लिए भी अपनाई गई थी और वहां भी भाजपा ने जीत हासिल कर ली.