Relationship… संज्ञा का ‘संज्ञा शून्य’ हो जाना…
- डॉ. छाया मंगल मिश्र
‘सामान्य भाषा में किसी भी व्यक्ति, वस्तु, जाति, द्रव्य, गुणभाव, स्थान और क्रिया के नाम को संज्ञा कहते हैं.’ पर जब केवल कागज पर ही नाम के रूप में संज्ञा का भान हो बाकि “संज्ञा शून्य” तो कैसा लगता है? पैदा होते ही कोई नाम दे दिया जाता है जो जिंदगी भर आपको परिचित करने के काम आता है. पर अगर इसकी जगह आपकी कोई कमी, खामी, कमजोरी, चिढ़ावनी, रंग-रूप के आधार पर संज्ञा को बदल दे तो कितना कष्टकारी है न. जैसे – वो काली, भेंगी, लंगड़ी, गेठी, नाटी, लांबडी, भैंस, भालू, राक्षसी, डाकन, चुड़ैल, दंतडी, खेबडी, चपटी, मिच्ची, भोंथरी, गंजी, कोचरी, घोड़ी, ऊंटडी, टूंडी, घोड़ी और भी कई शील-अश्लील नाम जो विशेषण और संज्ञा बना दिए जाते हैं. असल में ये आपकी मनोदशा का परिचायक होते हैं कि आप जिस औरत या व्यक्ति के बारे में इन शब्दों का प्रयोग करते हैं उसको ले कर आपकी मानसिकता का क्या स्तर है.
क्यों हम इतने बुरे हो जाते हैं कि उसके असली नाम के उच्चारण को छोड़ दूसरे विशेषण तैयार करने में अपनी ऊर्जा नष्ट करते हैं? कई तो परिवार के लोग ही नाम ऐसे रख देते हैं कि बच्चे बड़े बड़े हो कर शर्मिंदा होते हैं. दूसरे यदि जरा भी कोई असामान्य गुण/अवगुण हो तो फिर बची खुची कमी पूरी हो जाती है. नाम बिगाड़ना, उपनाम रखना जन्मसिद्ध अधिकार हो जाता है. यही नहीं वो एड्रेस हो जाते हैं जैसे – वो काली वाली के पास, वो गंजी के पीछे, वो मोटी वाली के सामने जैसे वाक्यों का प्रयोग हो जाते हैं. कितना बुरा असर डालते हैं ये सब क्रिया-कर्म. इनसब बातों से अनजान जब हम ऐसा कर रहे होते हैं तो सामने वाले के दिल में अपने लिए नफरत का बीज बोते हैं. उसके मनोबल को निर्दयता के साथ कुचल रहे होते हैं, उसकी मानसिक स्थिति को खलल पहुंचा रहे होते हैं. उसके आत्मविश्वास के साथ खिलवाड़ कर रहे, उसकी प्रगति में रोड़ा डाल रहे, समाज में उसकी नकारात्मकता को बढ़ाने में अपनी कुटिल भूमिका निभा रहे.
छोटे बच्चे कभी भी इन बातों से उबर नहीं पाते. डरे-सहमे, शर्मिंदा होते रहने के खौफ से उनका विकास रुकने लगता है वे कुंठित होने लगते हैं. ये सब तो बुरा है ही पर हम महिलाएं भी इस काम को बखूबी अंजाम देतीं हैं. एक दूसरे के अजीबोगरीब नाम रखने की अच्छीखासी लत लगी होती है. पर कभी सोचा है इसका कभी कभी बहुत बुरा परिणाम भुगतना पड सकता है. शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है. मुंह तोड़ जवाब मिल सकता है. आपको भी तो इसका शिकार होना पड़ सकता है या होते हों, हुए हों. या शायद इसीलिए अपनी कुंठा को अभिव्यक्त करते हों. कुलजमा बात इतनी सी है कि किसी के लिए अच्छा नहीं बोल सकते तो बुरा भी नहीं बोलें, शब्द ब्रह्मास्त्र हैं उनका सुन्दरता और कोमलता के साथ उपयोग कीजिये ‘संज्ञा को संज्ञा शून्य’ मत होने दीजिये.