ANALYSIS Indore Episode गजब है सच को सच कहते नहीं वो…
इंदौर के कांग्रेस प्रत्याशी ने अपना ऐसे समय पर नाम वापस लिया जब न डमी के लिए कोई गुंजाइश थी और न कांग्रेस किसी और को समर्थन दे सकती थी, इसके बाद प्रत्याशी ने भाजपा में दस्तक दे दी और उनके लिए भाजपा ने दरवाजे खोल भी दिए. जब से यह घटनाक्रम सामने आया है कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस से लेकर अखबार के संपादकों तक की एक ही बात सामने आ रही है कि यह तरीका गलत है. इसमें उस बात को भी जोड़ लीजिए जब कहा जाता है कि मोदी विपक्ष को खत्म कर रहे हैं और लोकतंत्र के लिए विपक्ष जरुरी है. मेरे लिए इस बात का मतलब है कि मोदी को अपने कुछ सांसद विपक्ष को देने चाहिए क्योंकि खुद विपक्ष तो जीत नहीं पा रहा.कमोबेश यही बात इंदौर और खजुराहो के संदर्भ में कही जा रही है. यह चिंता भी भाजपा को करना चाहिए कि कांग्रेस के प्रत्याशी उसके दरवाजे पर हों तो वह मना कर दे कि नहीं हमें तो आपसे लड़ना है. सच कहें तो ठीक यही बात इसी इंदौर में हो चुकी है और मुझे तब ज्यादा बुरा लगा जब विधानसभा चुनाव निपटने के बाद रामकिशोर शुक्ला ने बताया कि वे तो ऊषा ठाकुर के साथ नूरा कुश्ती लड़ रहे थे क्योंकि उन्हें ऐसा करने के लिए भाजपा ने ही कहा था. चूंकि सच को सीधे कहने, सुनने और सहने की ताकत हम कम ही रखते हैं इसलिए हमें यह ज्यादा अच्छा लगता है कि अक्षय बम भाजपा के लिए काम करते रहें लेकिन चुनाव कांग्रेस के लिए लड़ते दिखते रहें.वरना ऐसे आग्रह की क्या वजह होनी चाहिए? कांग्रेस बार बार कह रही है कि बिक गए या दबाव में आ गए यह तो नहीं पता लेकिन कुछ तो हुआ. अब इस ‘कुछ’ में गिनाया जा रहा है कि उन पर जो केस है उसमें एक धारा बढ़ा दी गई है, लो लोग इसका हवाला दे रहे हैं वे सीधे सीधे अदालती प्रक्रिया को प्रभावित बता रहे हैं और यदि उन्हें अदालतों पर इतना सा ही विश्वास है तो कुछ नहीं कहा जा सकता. मुझे तो आज भी इस बात पर शंका है कि हाइकोर्ट के जज को कोई नेता यह कह सकता होगा कि आप फलां मामले में फलां व्यक्ति पर एक हत्या के प्रयास की धारा बढ़ा दीजिए और जज बिना किसी पहले से मिली पुलिस जांच को दरकिनार कर ऐसा कर भी देंगे. दूसरा आरोप है बिक जाने का या भाजपा द्वारा खरीद लिए जाने का तो जरा बताइये कि अक्षय कांति बम को लेकर जो शहर कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष देवेंद्र यादव सवाल उठा रहे हैं वो सही हैं या नहीं. अक्षय को कांग्रेस ने टिकट इसलिए दिया ही नहीं कि वो सालों से पार्टी के लिए कड़ी मेहनत करने में लगे हुए थे बल्कि यही देखा गया कि वे कितना पैसा पार्टी फंड में दे सकते हैं और कितना अपने चुनाव में खर्च करने को तैयार हैं.जब पार्टी ने सारे हिसाब किताब देखकर बम को चुना तो उन्होंने हिसाब देखकर पाला बदला तो शिकायत क्यों होना चाहिए.प्रेस कांफ्रेंस में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने बार बार जब मीडिया को यह कहा कि आपको भी भाजपा का विरोध करना चाहिए तो पत्रकारों ने सीधे ही जवाब दिया कि जब आपने बम को चुना था तब आपने हमसे पूछा था? हद यह कि खुद कांग्रेसियों को बम के पाला बदलने से पहले खबर थी, मीडिया के पास खबर थी कि वे धता बता सकते हैं लेकिन कांग्रेस सबकुछ जानकर भी अनजान बनने का नाटक करती रही. जिस सवाल पर जीतू प्रेस कांफ्रेंस से उठ खड़े हुए वह यही था कि उन्हें टिकट दिया किसने और दिलाया किसने? अब कांग्रेस नोटा के लिए हवा बनाती नजर आ रही है यानी नोटा से लोकतंत्र मजबूत किया जाएगा. चलिए यहां एक और बात बता देते हैं कि फिलहाल बहुजन समाज पार्टी का उम्मीदवार अब भी इंदौर के मैदान में हैं. कांग्रेस बहुजन की हितैषी हो न हो दिखने के लिए ही सही यह तो कह सकती थी कि इंडी गठबंधन में बहुजन समाज पार्टी के न होने के बाद भी हम बसपा प्रत्याशी को जिताने के लिए मेहनत करेंगे. पहली नजर में यह बात अजीब लग सकती है लेकिन राहुल यदि इसे राजनीतिक नजरिए से भी देखें तो यह फायदे का सौदा हो सकता था.मायावती यदि बातचीत से नहीं मानी थीं तो इस कदम से उनका दिल बदल भी सकता था और न भी बदले तो इसका असर तो होता लेकिन कांग्रेस ने तय कर रखा है कि वह अपना ही भट्टा बैठाए बिना बाज नहीं आएगी. कांग्रेस उस बात के लिए विक्टिम कार्ड खेल रही है जिसमें उसने अति समझदारी दिखाई थी. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कल एक भी सवाल का जवाब नहीं देना चाहते थे जबकि सवालों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी.कांग्रेस ने विक्टिम कार्ड से माहौल बनाने की कोशिश की है और यह बताया जा रहा है कि उनके साथ अन्याय हो गया लेकिन यह बताने को कोई तैयार नहीं कि दशकों से चुनाव लड़ती आ रही कांग्रेस को क्या चुनावी प्रक्रिया की इतनी सी समझ नहीं थी? हां यह जरुर है कि कांग्रेस के मैदान में न होने से मतदाता उदासीन हो जांएंगे लेकिन यह भी भाजपा जैसी राजनीतिक पार्टी का पहला काम चुनाव जीतना है और मतदाता जागरुकता उसका मूल काम नहीं हो सकता. इंदौर चुनाव में अब कांग्रेस नहीं है लेकिन यह चुनाव तो अब भी आपका है कि आप रामिकशोर शुक्ला के मुंह से चुनावों के बाद यह सुनना पसंद करेंगे कि उन्हें तो भाजपा ने ही खड़ा कराया था या अक्षय कांति बम के चुनाव से पहले ही पाला बदल लेने को पसंद करेंगे.