Irffan Khan जीवंत अभिनय और दमदार टाइमिंग वाला कलाकार
सहज और स्वाभाविक अभिनय के लिए पहचाने जाने वाले इरफ़ान कहते थे कि मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती मेरा चेहरा है. उन्हें निर्देशक ख़लनायक जैसे नेगेटिव रोल ही देना चाहते थे एनएसडी में उनके जूनियर रहे निर्देशक तिग्मांशु धूलिया ने फ़िल्म ‘पान सिंह तोमर‘ से उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार सहित वह सब दिलाया जिसकी वे तलाश में थे. इसके बाद तो हिन्दी मीडियम, पीभिनय कू से होते हुए लाइफ़ इन ए मेट्रो जैसी फ़िल्मों की कतार लग गई.
जयपुर में शुरुआत में वे नाटकों से जुड़े और यहीं से एनएसडी की राह खुली. 1987 में बमुश्किल कोर्स पूरा हुआ और इस दौरान वे कई बेहतरीन नाटकों में पहचान बना चुके थे.
दूरदर्शन की तब शुरुआत ही थी और इसमें इरफ़ान पहुंचे तो चंद्रकांता से चाणक्य व भारत एक खोज तक उन्होंने कई सीरियल धड़ाधड़ किए.वे यहां भी नहीं रुके और अपनी पहली पसंद यानी फ़िल्मों की तरफ बढ़े. 1988 में मीरा नायर ने ‘सलाम बॉम्बे’ में उन्हें छोटे से रोल में लिया. जो एडिट के बाद बहुत छोटा रह गया लेकिन इतनी सी देर में भी उन्हें पसंद किया गया. फ़िल्म के ऑस्कर तक जाने का फ़ायदा यह हुआ कि उन्हें छोटे-छोटे रोल मिलने लगे. ‘द वॉरियर’ उन्हें देर से जरुर मिली लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों तक गई. हेमलेट पर विशाल भारद्वाज ने जब मक़बूल बनाकर 2003 में रिलीज़ की तो इरफान का अभिनय जादू चरम पर था. कई फिल्मों में केंद्रीय पात्र बनते बनते वे हॉलीवुड की तरफ बढ़े और यहां ‘जुरासिक वर्ल्ड‘, द नेमसेक, ‘अ माइटी हार्ट’ और ‘द इन्फ़र्नो‘ से अपना लोहा मनवाया.‘स्लमडॉग मिलेनियर‘ और ‘लाइफ़ ऑफ पाई’ तो दुनियाभर में सराही और पुरस्कृत की गईं. फ़िल्मफ़ेयर से लेकर ‘पद्मश्री’ की राहें वे 2011 से पहले ही तय कर चुके थे. इसी दशक के बीच वे स्वास्थ्य से जूझते रहे और ‘न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर’ से लड़कर वे 2019 में वापस लौटे. 2020 में इंग्लिश मीडियम रिलीज हुई लेकिन इसकी सफलता की पार्टियां करने से पहले ही
29 अप्रैल, 2020 को उन्होंने दुनिया छोड़ दी. शानदार कलाकार को नमन