Shree Ram और लोकतंत्र की कड़ी जोड़ता ‘श्रीराम का लोकतंत्र’ कार्यक्रम
‘ कोऊ नृप होय हमें का हानि’ मंथरा का वाक्य है यदि आपको मंथरा होना मंजूर है तो ही इस वाक्य का इस्तेमाल कीजिए
अध्येता, मनीषी और पूर्व आईएएस मनोज श्रीवास्तव ने इंदौर के जाल ऑडिटोरियम में जो श्रीराम के लोकतंत्र विषय वर आख्यान दिया वह कई मायनों में विलक्षण रहा. भ्रांतियों और आम सोच से परे कई ऐसे तथ्यों पर उन्होंने वृहद विश्लेषण देकर बताया कि श्रीराम किस तरह से राजवंश की पंरपरा के निर्वाहक न होकर लोक चयन से युवराज चुने गए थे और वन गमन उनका पहला स्व चेतना का पहला कदम था. सेवा सुरभि ने इस कार्यक्रम का आयोजन विशेष रुप से 14 अप्रैल को रखा ताकि बाबा आंबेडकर, संविधान और लोकतंत्र की कड़ियों से श्रीराम की प्रासंगिकता रखी जा सके और संस्था अपने उद्देश्य में परी तरह सफल रही. श्री मनोज श्रीवास्तव ने वाल्मीकि रामायण के उद्धरण देते हुए बताया कि न सिर्फ युवराज चयन से पूर्व किस तरह दशरथ ने जनपद और प्रधानों को इआमंत्रित कर उनसे अनुमति ली बल्कि अनुमति से भी पहले उन्होंने यह प्रश्न भी खुद उठाया कि मेरे होते युवराज पद पर आप राम को क्यों अभिषेक देना चाहते हैं यानी यहां भी वे जनपद प्रमुखाें को अपनी बात रखने का पूरा अवसर देते हैं. जब यही कड़ी आगे बढ़ती है तो कैकेई के वचन मांगने पर वे निर्णय नहीं लेते बल्कि लोकतांत्रिक तरीके से वे समझते हें कि वे निर्णय ले ही नहीं सकते क्योंकि यदि राम को जनपद व अन्य जन प्रतिनिधियों ने चुना था तो निर्णय पलटने के लिए उन सभी की आवश्यकता होती, यही वजह है कि दशरथ अचेत हो जाते हें लेकिन निर्णय नहीं पलटते और यह काम श्रीराम के हिस्से आता है क्योंकि वे खुद के ख्यन से तो इंकार कर ही सकते थे (जो वे करते भी हैं) जब राम वनगमन करते हैं तो वे एक राज्य की सीमा से ही बाहर नहीं होते बल्कि यहां से वे आम लोगों के बीच प्रवेश करते हैं.
इसी संदर्भ को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं कि पूरे मानस में आपको यह लोकतंत्र कई बार साफ दिखेगा और यह भी कि कैसे एक अन्य व्यवस्था रावण की थी जिसके दरबार में सही बात भी कहने की अनुमति नहीं थी, जबकि राम हर एक को बात कहने का अवसर देते हैं, हनुमान पूरे वानर दल में सबसे पीछे थे लेकिन राम की पारखी नजरें और प्रतिभा को सही अवसर देने की उनकी प्रवृत्ति ही थी कि वे उन्हें बुलाते हैं और उनकी प्रतिभा पर भरोसा कर सिर्फ उन्हें ही मुद्रिका देते हैं. जब सुग्रीव को भाई लात मारकर बाहर निकाल देता है तो सभी वानर अपनी अपनी राय देते हैं और सभी की राय अलग अलग थी लेकिन श्रीराम सबको सुनने के बाद उसमें से सही राय चुनते हैं. लोकतंत्र और उसके सम्म्मान का यह चरम ही तो है.
कार्यक्रम में मनोज श्रीवास्तव के व्याख्यान से पूर्व और पश्चात संगीत गुरुकुल के छात्रों ने श्रीराम के भजन व संगीतमय पद सुनाए. कार्यक्रम का सूत्र संचालन संजय पटेल ने किया.