Good Read- हथेलियों पर गुलाबी अक्षर…
पुस्तक समीक्षा- शैली बक्षी खड़कोतकर
स्मृति आदित्य, मीडिया जगत का सुपरिचित और प्रतिष्ठित नाम| शानदार फीचर्स के लिए तीन बार लाड़ली मीडिया अवार्ड विजेता स्मृति दी का एक अलग रूप सामने आया है, उनकी पहली पुस्तक, काव्य संग्रह के रूप में| हालांकि, दोस्तों, परिचित लंबे समय से पलकें-पांवड़े बिछाए इंतजार में थे| जाहिर तौर पर मैं भी उनमें से एक थी| यहां ये स्पष्ट करना जरुरी है कि न तो मैं कविताओं की गहरी शास्त्रीय समझ का दावा करती हूं, न यह पोस्ट दोस्ती के नाते लिखी गई है| सिर्फ एक उत्सुक संवेदनशील पाठक की तरह इस काव्य-संग्रह को पढ़ना शुरू किया और इसमें डूबती चली गई| जितना समझा, जो महसूस किया तुरंत उसे लिपिबद्ध करने के मोह से खुद को रोक नहीं सकी|
‘हथेलियों पर गुलाबी अक्षर’ जितना सुंदर शीर्षक, उतना ही लुभावना कवर| किताब उठाई तो लगा जैसे ओस से भीगी भोर में किसी ने चुपके से हाथ पर हरसिंगार रख दिया हो या पूजा घर से उठती भीनी, पावन सुगंध अंतस में गहरे समा गई हो| स्मृति दी के रचना संसार को एक शब्द में बांधना हो तो वह होगा, ‘सच्चा’| आज की बनावटी दुनिया में स्मृति दी सा सच्चा इंसान पा लेना मुश्किल है, यही सच्चाई उनकी कविताओं की सबसे बड़ी खूबी है और यही उनके संग्रह को अनोखा बनाती हैं| मुझे यह संग्रह नदी के प्रवाह की याद दिलाता है| यहाँ कविताएँ जैसे कलकल बहती पारदर्शी भावनाएं है, जिनके साथ पाठक अविरल बहता चला जाता है, कभी चहरे पर मुस्कान लिए और कभी आंखों में आंसू थामे|
पुस्तक की सार्थक शुरुआत हुई है, ‘मां के आशीष’ से जो स्मृति दी के व्यक्तित्व और भाषित संस्कारों की नींव का पता दे जाती है| प्रसिद्द साहित्यकार आदरणीय ज्योति जैन जी ने अपनी काव्यात्मक भूमिका में कवियत्री और कविताओं सुंदर चित्र खिंचा है| प्रकाशक आदरणीय रीमा दीवान चड्ढा जी ने कविताओं के मर्म को छुआ है और बहुत सुंदर पुस्तक के रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत किया है|
सत्तर कविताओं के संकलन में प्रेम एक प्रमुख और मुखर स्वर है| प्रेम का शायद ही कोई संभव आयाम इस संग्रह में अछूता रहा हो| प्रेम की चाह की अकुलाहट है, अधूरे प्रेम की विकल पुकार है, प्रेम पा लेने का मीठा संतोष है, परस्पर गहरा विश्वास है, संपूर्ण समर्पण है| इनमें भावुकता ज्यादा होते हुए भी, इनकी अभिव्यक्ति मधुर और सहज है कि पाठक उन शब्दों और भावों के प्रेम में पड़ जाए| उनके लिए प्रेम अकेले भोगने का सुख नहीं, बल्कि जितना मिला उससे कई गुना बांट देने का उदात्त भाव है –
‘इन रंगों को रख दो मेरी हथेलियों पर
कि जब मैं निकलूं तपती हुई पीली दोपहर में अकेली
तो इन्हें छिडक सकूं… दुनिया की कालिमा पर
मुझे इसी कैनवास पर तुम्हारे दिए रंग सजाना है
प्यार कितना खुबसूरत होता है
सबको बताना है…’ (तुम्हारे दिए रंग)
प्रेम यहां मोह के नाजुक धागों में बंधा रंगीन स्मृतियों की झालर है, जो सदा के लिए मन के द्वार पर टंग गई है, खास कर जहां प्रेम की दस्तक तो है पर न आ पाने की पीड़ा भी| जब वे लिखती हैं,
‘कुछ मत कहना तुम
मुझे पता है
मेरे जाने के बाद
वह जो तुम्हारी पलकों की कोर पर रुका हुआ है
चमकीला तरल मोती
टूट कर बिखर जाएगा
गालों पर’
(पलकों के कोर पर) तो अनायास पलकों की कोर तरल हो जाती है| ‘वासंती फूल’ ‘वसंत देकर चले जाओ’ ‘तुम’ आदि इसी श्रेणी की कविताएं हैं, जो मन को उदास कर जाती हैं|
वहीं दूसरी ओर परिपक्व प्रेम भी है जहाँ दिन भर नौकरी की दौड़-धूप में फंसे दंपत्ति का छोटी-छोटी व्यवहारिक दिक्कतों के बीच शेष रहा प्यार और आपसी समझ है| (हर ‘मनका’ हमारे मन का हो, करवाचौथ, गृहस्थी..)
मां पर इस संग्रह में पांच कविताएं शामिल की गईं हैं और सारी ही गहरे अहसासों की कविताएं हैं, जो स्मृति दी की तेजस्वी, विदुषी मां के वात्सल्य को समर्पित हैं| सच ही है –
मेरे विचार और संस्कार में
ख़ामोशी से झांकती हो
क्योंकि तुमसे जुड़ी है मेरी पहचान… (मां तुम जो मंत्र पढ़ती हो)
पूरे संग्रह में मेरी पसंदीदा वे कविताएं हैं, जहां स्त्री मन की बात हुई है| इन कविताओं में वह वैश्विक अपील है, जिसमें हर स्त्री कहीं न कहीं उसमें खुद को शामिल पाती है| ‘झूठी होती हैं संस्कारी लड़कियां..’ और ‘जन्म लेती रहीं बेटियां’ ‘लड़कियां’ कितनी ही बेटियों की व्यथा है, पढ़ते हुए मन तार-तार हो जाता है,
‘चाहती हूं कि
हर बार बेटों के इंतजार में
जन्म लेती रहें बेटियां
पोंछ कर अपने चहरे से
छलकता तमाम
अपराध-बोध…
आगे बढती रहे बेटियां
जन्म लेती रहें बेटियां…
इसी तरह जब वे मायके का आंगन छूटने की कसक बयां करती हैं, तो हर ब्याहता बेटी की पीड़ा कहती हैं|
स्मृति दी सजग पत्रकार हैं और संवेदनशील नागरिक भी| सामयिक घटनाओं पर भी तीखे तथ्यात्मक लेख उनकी पहचान रहे हैं, साथ ही कविताओं में भी इन पर उनकी कलम चली है, जैसे मणिपुर की घटना हो, बोरवेल के बीज या तेजाब|
स्मृति दी के परिचित और पाठक जानते हैं कि उनके पास खूबसूरत शब्दों का अकूत भंडार है, सौंदर्य से भरपूर भाषा है और यह इस संग्रह का भी खास आकर्षण है| वे बिंबों और प्रतिबिंबों का बखूबी प्रयोग करती है| इन कविताओं की दुनिया में चांद एक मुख्य किरदार है| इसके अलावा भी प्रकृति के प्रतिकों का खूब इस्तेमाल हुआ है, जैसे हरसिंगार, गुलाब, मोगरा, नीम, आम, वसंत, शरद…|
पुस्तक का कलेवर और प्रिंटिंग इतनी सुंदर और त्रुटीहीन है कि इसके लिए सृजनबिंब प्रकाशन को शत-प्रतिशत अंक दिए जाने चाहिए| मनोहारी कवरपेज के लिए सारंग क्षीरसागर जी बधाई के पात्र हैं|
समग्रता में कहें तो ‘हथेलियों पर गुलाबी अक्षर’ नर्म नाजुक अहसासों के साथ, स्त्री मन और कठोर यथार्थ का वह सच्चा दस्तावेज है, जिसे जरुर पढ़ा जाना चाहिए|
-शैली
पुस्तक : हथेलियों पर गुलाबी अक्षर
रचनाकार :स्मृति आदित्य
कीमत :175 रुपए
प्रकाशन:सृजनबिम्ब प्रकाशन-नागपुर
