Dark tourism में मौतों का सिलसिला जारी
टाइटेनिक जिस जगह डूबा वहां जाने और समुद्रतल में डूबे हुए जहाज को देखने का रोमांच ऐसा है कि लोग इसके लिए करोड़ों रुपए खर्च करने को भी तैयार हैं और यह कहानी अकेले टाइटेनिक की नहीं है बल्कि ऐसी कई जगहें हैं जो दुर्घटनाओं वाली हैं लेकिन इन जगहों पर पर्यटन का बड़ा क्रेज है. ऐसे टूरिज्म को डार्क टूरिज्म कहते हैं. लाल सागर में एक बार फिर एक पनडुब्बी ऐसे ही डार्क टूरिज्म वालों को ले जा रही थी और डूब गई जिसमें छह लोग मारे गए. इससे पहले टाइटेनिक के लिए भेजी गई ऐसी ही पर्यटन पनडुब्बी टाइटन भी डूब गई थी जिसमें अरबपति टूरिस्ट के अलावा टाइटन पनडुब्बी की कंपनी का मालिक भी शामिल था. आइये जानें डार्क टूरिज्म के कुछ पहलुओं को.
दुर्घटना वाली जगहों पर पर्यटन को कहते हैं डार्क टूरिज्म
टाइटैनिक के समुद्र तल में पड़े मलबे को देखने के लिए दो करोड़ देने के लिए दुनिया भर से सैकड़ों लोग तैयार हो जाते हैं और यह खेल बड़ी शांति से तब तक चलता रहता है जब तक कि कोई टाइटन नाम की पनडुब्बी जैसी सबमर्सिबल उसी टाइटैनिक के पास पांच अरबपतियों को लेकर दफ़न नहीं हो जाती, डूबने वालों में से एक तो वो भी हैं जिन्होंने इस खेल में पैसा कमाने का सबसे पहले सोचा था. ऐसी फैरी पहले भी लगती रही हैं जिनमें कुछ बाकायदा मंजूरी के साथ थीं तो कुछ खतरे में जान डाल कर चोरी छुपे की गई समुद्र तल में लगभग 13000 फीट की गहराई की यात्रा भी थीं। जब फिल्म टाइटैनिक बनने लगी तो रिसर्च के लिए भी यहां के दौरे हुए. उससे पहले और उसके बाद भी न इन दौरों में कमी आई और न इस मलबे से सामान चोरी कर महंगी कीमत पर बेचने के मामलों में, बल्कि दिन ब दिन यह चलन बढ़ता ही गया.
टाइटन डूबा लेकिन फिर भी उत्साह
टाइटन को बनाने और उसे ‘टाइटैनिक दर्शन’ के लिए चलाने वाले डार्क टूरिज्म के चक्कर में न जाने कितनी बातों को नज़र अंदाज़ कर दिया गया. कोई कह रहा है कि हवाई जहाज बनाने वाले सामान को सस्ती कीमत पर लेकर और बिना अच्छी तैयारी के ही इसे बना दिया गया. इसमें पहले यात्रा कर चुके कई लोग भी अब सामने आ कर कह रहे हैं कि इस सबमर्सिबल में इतनी गड़बड़ियां थीं कि ऐसी दुर्घटना तय ही थी, इंप्लोजन से लेकर एक्सप्लोजन तक की हर संभावना इसमें मौजूद थी. इसके सिलेंडर आकार के होने से लेकर अंदर कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा तक न नाप पाने तक की बीसियों खामियां गिनवाई जा रही हैं. इसके रजिस्ट्रेशन से लेकर डिक्लेरेशन तक पर सवाल हैं लेकिन ऐसे हजार सवालों के बीच यह सवाल भी बड़ा है कि आखिर ऐसे डार्क टूरिज्म को बढ़ावा मिलता कैसे है. आखिर वह कौन सा फैक्टर है जिसके चलते लोग इतना पैसा देते हैं और ऐसी जगह जाने के लिए जान जोखिम में डालने से भी नहीं बाज आते हैं. यहां मामला सिर्फ रोमांच का नहीं है। इतिहास के एक हिस्से से जुड़ने की ललक भी इसका एक पहलू है और फिर हर किसी के अपने कारण तो हैं ह.। जिन्हें टाइटन के अंदर की परिस्थिति समझना हो वे बस इतना ही समझ लें कि आप अंदर एक छोटी सी जगह में पांच लोग बैठे होते हैं और खतरा लगने पर भी आप कुछ नहीं कर सकते क्योंकि इस 22 फीट के कैप्सूल को बाहर से बंद किया गया है यानी यदि अंदर कोई खतरा महसूस भी हो तो आपके हाथ में कुछ नहीं है यहां तक कि ऑक्सीजन लेने की कोई वैकल्पिक व्यवस्था तक नहीं। आप पूरी तरह अपने मदर शिप पर निर्भर रहते हैं. 1973 में एक ऐसे ही दुर्घटना से दो ब्रिटिश नागरिक जिंदा बच आए थे जहां उन्हें मौत की टिक टिक सिर्फ ग्यारह मिनट दूर दिख रही थी क्योंकि ऑक्सीजन का कोटा इतना ही बचा था लेकिन इन ग्यारह मिनट से पहले उन्हें रेस्क्यू कर लिया गया और उनके अनुभवों के कई पहलू भी यही कहते हैं कि शोध तक तो ठीक है लेकिन पर्यटन के लिहाज से ऐसी अनुमति कतई नहीं दी जानी चाहिए लेकिन उस स्थिति का क्या जहां लोग तब भी जाना पसंद करें जब खर्च करोड़ों में हो, सारे खतरों के लिए खुद की जिम्मेदारी होने का डिक्लेरेशन देना हो और यह भी पता हो कि सबमरीन के तौर पर यह सवारी खतरनाक है.ओसिनगेट के मुखिया स्टॉकटन रश भी इस डार्क टूरिज्म के कॉन्सेप्ट यानी टाइटन के साथ ही समुद्र की अतल गहराइयों में टाइटैनिक के पास ही जलसमाधि ले चुके हैं लेकिन उनकी सोच के रुकने की कोई सूरत नजर नहीं आ रही है. बरमूडा लंबे समय तक ऐसी दुर्घटनाओं का केंद्र रहा लेकिन उसका खौफ ऐसा था कि वहां पर्यटन नहीं हो सका लेकिन टाइटैनिक के मलबे जैसी जगहों के साथ ऐसा कोई खौफ नहीं है. टाइटन और टाइटैनिक के पास पास दुर्घटनाग्रस्त होने से शायद इस जगह के प्रति ऐसे काले पर्यटन की संभावना और बढ़ जाए। कुछ लोगों का तर्क है कि एक बार टाइटैनिक को ही किनारे लाकर पर्यटन रख दिया जाए तो शायद समस्या हल हो जाए लेकिन ऐसी सम्भावना न होने की एक बड़ी वजह तो यही है कि 1912 में डूबे इस जहाज का हर हिस्सा अब बेहद कमजोर हो चुका है और फिर उसे समुद्री मिटटी ने भी जकड़ रखा है और फिर भी इसे किनारे लाने की कवायद करें तो खर्च भी काफी बड़ा है लेकिन इन सबसे बड़ा कारण यह है कि अमेरिका और ब्रिटेन बाकायदा एक समझौते पर सहमत हैं कि इसे मेरीटाइम मेमोरियल के तौर पर संरक्षित और सुरक्षित रखा जायेगा। समय और समुद्र से संरक्षित रखना तो मुश्किल है ही ऐसे डार्क टूरिज्म के चलते भी इसे सुरक्षित रखना मुश्किल है और यही वजह है कि टाइटैनिक मलबे के कई हिस्से और यहाँ तक कि उसके आसपास की समुद्री मिट्टी भी सही गलत तरीके से महंगे दामों बिक रही है.