Govardhan Poojan आइये जानें इससे जुड़ी कथा
दीपावली के दूसरे दिन होती है गोवर्धन पूजा
मान्यता है कि ब्रज परिक्रमा मार्ग पर स्थित गोवर्धन पर्वत का आकार अब भी घट रहा है और लगातार कम होती ऊंचाई की वजह उस श्राप को माना जाता है जो पुलस्त्य ऋषि ने इस पर्वत को दिया था. हर साल कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मनाए जाने वाले गोवर्धन पूजा पर अन्नकूट का भी आयोजन किया जाता है. श्रीकृष्ण के पूजन के साथ मनाया जाने वाला गोवर्धन पर्व गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बना कर पूर्ण किया जाता है.
गोवर्धन पूजन और इस पर्वत की ऊंचाई कम होते जाने से जुड़ी पुरातन कथा में बताया जाता है कि जब पुलस्त्य ऋषि गोवर्धन पर्वत के पास पहुंचे. सुंदर पर्वत देखकर उन्होंने गोवर्धन पर्वत के पिता द्रोणाचल से कहा कि आप गोवर्धन पर्वत मुझे दें. मैं उसे काशी में स्थापित कर उसका प्रतिदिन पूजन करुंगा. द्रोणाचल जवाब दें उससे पूर्व ही गोवर्धन ने कहा मंजूरी देते हुए कहा कि मेरी यह शर्त होगी कि बीच में आप मुझे जहां रख देंगे मैं वहीं पर स्थापित हो जाऊंगा. पुलस्त्य ऋषि ने शर्त मान ली. पुलस्त्य ऋषि ने अपने तपोबल से विशाल पर्वत को उठाया और ले जाने लगे, रास्ते में ब्रजधाम को देखकर गोवर्धन ने सोचा कि भविष्य में होने वाली श्रीकृष्ण की लीलाएं देखने के लिए यदि मैं यहीं स्थापित हो जाऊं तो कितना अच्छा हो. ऐसे विचार आने पर पर्वत का वजन बढ़ने लगा और पुलस्त्य ऋषि के लिए उसे उठाना मुश्किल हो गया. ऋषि को विश्राम करने के लिए रुकना ही पड़ा और अपनी शर्त के अनुसार ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को ब्रज में जैसे ही रखा वह वहीं स्थापित हो गया. पुलस्त्य की तमाम कोशिशों के बाद भी गोवर्धन वहां से नहीं हिले. इस पर क्रोधित ऋषि ने उन्हें तिल-तिल कर क्षरण होने का श्राप दे दिया. मान्यता है कि कलियुग के अंत तक यह पूरी तरह समाप्त हो जाएगा.